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पिता जूझ रहे थे कैंसर से, हिम्मत जुटा बेटी ने 22 साल में क्रैक किया UPSC, पोस्टिंग से पहले पेरेंट्स ने कहा अलविदा

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा क्लियर करने वाले कुछ एस्पिरेंट्स की कहानियां इतनी प्रेरणादायक होती हैं, जो आपको बेहद मुश्किल हालातों में भी डटकर खड़े रहने की ताकत देती हैं. ऐसी ही एक सफलता की कहानी है आईएएस रितिका जिंदल की, जिन्होंने 22 साल की छोटी सी उम्र में यूपीएससी

संघर्ष भरी है रितिका की सफलता की राह

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संघर्ष भरी है रितिका की सफलता की राह

पंजाब के मोगा में जन्मी रितिका जिंदल ने संसाधनों की कमी का रोना नहीं रोया और न ही उसे अपनी मंजिल तक पहुंचने में बाधा बनने दिया. लबासना तक पहुंचने के लिए रितिका ने जो संघर्ष किया, उसे सुनकर आपके भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे. आइए जानते हैं रितिका की संघर्ष भरी सफलता की कहानी क्या है...

कॉलेज में रहीं टॉपर

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कॉलेज में रहीं टॉपर

रितिका बचपन से ही पढ़ाई में अव्वल रही थीं. कक्षा 10वीं और 12वीं बेहतर मार्क्स से पास करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में एडमिशन किया. उन्होंने ग्रेजुएशन में भी टॉप किया. उनके ग्रेजुएशन में 95 फीसदी मार्क्स थे. इसके साथ रितिका ने यूपीएससी की तैयारी भी शुरू कर दी थी.

रितिका के लिए बेहद कठिन दौर था

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रितिका के लिए बेहद कठिन दौर था

रितिका ने जब पहली बार यूपीएससी का अटैम्प्ट दिया, उस दौरान उनके पिता को जीभ में कैंसर डिटेक्ट हुआ था. मुश्किलों ने यहीं साथ नहीं छोड़ा और रितिका के दूसरे अटैम्प्ट के दौरान उनके पिता को लंग कैंसर हो गया. वह तमाम मुश्किलों के बीच अपने और पिता के सपने को पूरा करने के लिए डटी रहीं. रितिका यूपीएससी के पहले ही प्रयास में इंटरव्यू राउंड तक पहुंची थीं.

 

दूसरे प्रयास में मिली कामयाबी

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दूसरे प्रयास में मिली कामयाबी

रितिका ने यूपीएससी दूसरा अटैम्प्ट साल 2018 में दिया. इस दौरान उन्होंने अपनी कमियों को सुधारा और ऑल इंडिया 88वीं रैंक साथ यूपीएससी पास की. इतनी परेशानियों के बीच भी रितिका ने आईएएस बनकर अपना ख्वाब पूरा किया. आप यो जानकर हैरान रह जाएंगे कि यूपीएससी की तैयारी रितिका ने हॉस्पिटल में पिता की देखभाल करते हुए की थी.

माता-पिता की मौत ने दिया बड़ा झटका

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माता-पिता की मौत ने दिया बड़ा झटका

यूपीएससी एग्जाम क्लियर करके जब आईएएस की ट्रेनिंग कर रही थीं, तब उनके पिता की मृत्यु हो गई थी. यह उनके लिए बड़ा झटका था. इतने पर ही उनकी परेशानी ख्तम नहीं हुई. पिता के जान के केवल दो महीने बाद ही रितिका की मां भी चल बसीं. इस तरह मां-पिता दोनों ही अपनी बेटी की सफलता को नहीं देख पाए. 

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