गारो जनजाति के एक महत्वपूर्ण पारंपरिक अनुष्ठान को "मंगोना" कहा जाता है, जो मृतक के अंतिम संस्कार के बाद किया जाता है. इसमें घर के आंगन में बांस से एक छोटी सी झोपड़ी बनाई जाती है, जिसे 'डेलांग' कहते हैं.
मृतक के जलाए गए अस्थि-पिंजरों को मिट्टी के बर्तन में रखा जाता है, जो बाद में मृतक के घर के दरवाजे के पास दफन किया जाता है. इस अवसर पर गीत, नृत्य और पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्रों के साथ रात भर उत्सव मनाया जाता है.
गारो जनजाति के लोग कृषि में विशेष रूप से झूम खेती (जंगल की सफाई कर कृषि) पर निर्भर करते हैं. इनकी पारंपरिक कृषि पूजा में "अ'आ ओ' पाटा" नामक समारोह शामिल है, जिसमें लोग अंडा तोड़कर खेत में खेती के लिए अनुमति मांगते हैं. इसके बाद, "मिनी रोकिमे" देवी की पूजा कर फसल की सुरक्षा की कामना की जाती है.
गारो जनजाति का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार वांगला है, जिसे "पोस्ट-हार्वेस्ट फेस्टिवल" भी कहा जाता है. यह उत्सव कृषि कार्यों के समाप्त होने और फसल की कटाई के बाद मनाया जाता है. इस दौरान ढोल की आवाज, गीत-संगीत और नृत्य से पूरा गांव गूंज उठता है. पुरुष और महिलाएं पारंपरिक वस्त्र पहनकर नृत्य करती हैं और मीट और चावल से भरी दावतें दी जाती हैं.
अटोंग, जो गारो जनजाति का एक प्रमुख समूह है, वांगला के समान "सारम चा'आ" नामक उत्सव मनाते हैं, जो फसल कटाई के बाद धन्यवाद अर्पित करने का एक साधारण रूप होता है. इस उत्सव में नृत्य और संगीत का आयोजन नहीं होता, लेकिन यह आभार प्रकट करने का अवसर होता है.
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