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अमेरिका-UK जैसी नहीं भारत में पार्टियों के लिए वोटरों की वफादारी, 'नॉर्थ-साउथ' वाली बात बेमानी

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद आपने टीवी डिबेट या नेताओं के मुंह से उत्तर-दक्षिण वाली बात जरूर सुनी होगी। राजनीतिक जानकार भले ही नॉर्थ-साउथ डिवाइड की बात कर रहे हों पर डेटा कुछ और कहानी कहते हैं। हां, 3 दिसंबर के नतीजे देख कई पॉलिटिकल पंडितों ने घोषित कर दिया कि देश में भाजपा और कांग्रेस के बीच स्पष्ट रूप से नॉर्थ-साउथ की लकीर खिंच गई है। वे कहना चाहते हैं कि भाजपा अब उत्तर भारत और कांग्रेस दक्षिण में प्रभाव रखने वाली पार्टी बन गई है। क्या सच में ऐसा है? रिजल्ट्स को जरा गहराई से देखिए। भारतीय राजनीति अभी इस तरह के क्षेत्रीय स्तर पर बंटी नहीं दिखती। इसे पांच पॉइंट्स में समझते हैं। 

1. कांग्रेस को BJP से ज्यादा वोट!

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1. कांग्रेस को BJP से ज्यादा वोट!

हां चौंकिए मत. मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना की बात करें तो ग्रैंड ओल्ड पार्टी को बीजेपी की तुलना में कुल वोट ज्यादा मिले हैं. नॉर्थ-साउथ डिवाइड वाले समीकरण की बात अगर है तो वह व्यापक रूप से केवल तेलंगाना के वोट शेयरों में दिखाई देता है. यहां बीजेपी का वोट शेयर 13.9 प्रतिशत रहा जबकि कांग्रेस का प्रतिशत 39.4 है. वैसे 2018 की तुलना में बीजेपी का वोट शेयर डबल हो गया है.

2. तीन राज्यों में खिला कमल लेकिन...!

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2. तीन राज्यों में खिला कमल लेकिन...!

बीजेपी का वोट शेयर राजस्थान में कांग्रेस से केवल 2 प्रतिशत ज्यादा है, छत्तीसगढ़ में 4 पॉइंट और एमपी में 8 पॉइंट. कांग्रेस को क्रमश: 39 प्रतिशत, 42 प्रतिशत और 40 प्रतिशत जनादेश मिला है. ऐसे में खुद को राजनीतिक विशेषज्ञ बताने वालों का यह कहना बिल्कुल भी उचित नहीं है कि कांग्रेस अब दक्षिण में सिकुड़ गई है. इस तरह की बातें भ्रमित करने वाली हैं.

3. राजस्थान में कर्नाटक जैसा हाल

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3. राजस्थान में कर्नाटक जैसा हाल

जैसे इस बार राजस्थान में वोट शेयर में ज्यादा अंतर न होने के बाद भी भाजपा ने 115 सीटें जीती हैं और कांग्रेस को केवल 69 मिलीं, कर्नाटक में भी ऐसा ही हुआ था. जी हां, वहां कांग्रेस को बीजेपी से दोगुना ज्यादा सीटें मिली थीं और वोट शेयर में अंतर केवल 7 प्रतिशत का था. तब बीजेपी मुक्त साउथ इंडिया कहा गया था लेकिन उसे 36 प्रतिशत मैंडेट मिला था.

4. भारत की तुलना यूके से

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4. भारत की तुलना यूके से

देश के अलग-अलग हिस्सों का किसी एक पार्टी के प्रति निष्ठा या वफादारी का नजरिया यूनिक नहीं है. एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के चुनावों की तुलना ब्रिटेन से कीजिए तो वहां कंजरवेटिव और लेबर पार्टी के लिए सपोर्ट भारतीय दलों से कहीं ज्यादा मजबूत दिखाई देता है. वहां पूरा का पूरा इलाका या कहिए स्टेट एक कलर में दिखता है.

5. अमेरिका का क्या हाल

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5. अमेरिका का क्या हाल

वहां तो ज्यादातर रेड स्टेट और ब्लू स्टेट होते हैं. यकीन मानिए कलर बदलने में एक पीढ़ी बीत जाती है. नीतियों के हिसाब से राज्यों में डेमोक्रेट और रिपब्लिकन के बीच राजनीतिक प्रभाव गहरा होता जाता है. यह महामारी के समय देखा गया था और दूसरे मुद्दों जैसे इमिग्रेशन से वोटिंग में भी नजर आता है. भारत में भाजपा और कांग्रेस सरकारों के बीच ज्यादा पॉलिसी ओवरलैप दिखाई देता है.

इस तरह से देखें तो यह न तो देश के हित में है न ही प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों के हित में कि वे केवल एक निश्चित इलाके में ही बंधकर रह जाएं. अभी जो कहा जा रहा है यह हकीकत से कोसों दूर है.

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