Pakistani Film: पाकिस्तानी फिल्म ‘द लूजिंग साइड’ को कान फिल्म फेस्टिवल (Cannes Film Festival) में 'बेस्ट फिल्म' का अवॉर्ड मिला तो कट्टरपंथी बौखला गए. अब पड़ोसी को समझ में नहीं आ रहा है कि वो फिल्म की सफलता पर खुश हो या शर्मिंदा हो.
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Pakistani film The Losing Side: आम तौर पर जब किसी देश की कोई फिल्म अंतरराष्ट्रीय मंच पर सम्मानित होती है और अवॉर्ड जीतती है तो ये उस देश और वहां के नागरिकों के लिए बेहद गर्व की बात होती है, लेकिन पाकिस्तान के मामले में ऐसा नहीं है. पाकिस्तानी फिल्म ‘द लूजिंग साइड’ को कान फिल्म फेस्टिवल (Cannes Film Festival) में 'बेस्ट फिल्म' का अवॉर्ड मिला तो कट्टरपंथी बौखला गए. सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्म ‘द लूजिंग साइड’ पाकिस्तान में हिंदू लड़कियों के अपहरण और जबरन धर्मांतरण की कहानी बयां करती है, लेकिन इस फिल्म को लेकर पाकिस्तानियों की राय मिली-जुली है और लोग दो गुटों में बंट गए हैं. मानवाधिकार के पैरोकार फिल्म डायरेक्ट जावेद शरीफ की तारीफ कर रहे हैं, लेकिन कट्टरपंथी लोग डायरेक्टर जावेद पर पाकिस्तान को दुनियाभर में बदनाम करने का आरोप लगा रहे हैं. सोशल मीडिया पर भी डायरेक्टर जावेद शरीफ के खिलाफ मुहिम चलाई जा रही है.
फिल्म में क्या है
जावेद शरीफ की फिल्म ‘द लूजिंग साइड’ सिंध की 4 हिंदू लड़कियों की रियल लाइफ पर आधारित है, जिनका अपहरण के बाद मुस्लिम शख्स से जबरन निकाह करा दिया गया. इस फिल्म को ‘ह्यूमन राइट’ श्रेणी में बेस्ट फिल्म का अवॉर्ड मिला है. फिल्म के डायरेक्टर जावेद शरीफ खुद भी पाकिस्तानी हैं और उनकी इस फिल्म को और भी कई अवॉर्ड मिल चुके हैं.
अवॉर्ड मिलने के बाद डायरेक्टर का पोस्ट
डायरेक्टर जावेद शरीफ ने इंस्टाग्राम पर पोस्ट किया था और लिखा था, 'साल 2022 के आखिरी दिन ऐसी एक अच्छी खबर मिली, हमारी फिल्म 'द लूजिंग साइड' ने कान्स में सर्वश्रेष्ठ मानवाधिकार फिल्म का पुरस्कार जीता है, इस यात्रा का हिस्सा बनने के लिए आप सभी का धन्यवाद.'
पहले भी सामने आते रहे हैं ऐसे मामले
पाकिस्तान में अक्सर जबरन धर्म परिवर्तन और हिंदू लड़कियों की किडपैनिंग के मामले सामने आते रहे हैं. इसके खिलाफ दुनियाभर में विरोध भी होता रहा है और आवाजें भी उठाई जा चुकी हैं, लेकिन अब जब पाकिस्तानी फिल्ममेकर ने ही अल्पसंख्यकों के हालात को पर्दे पर उतार दिया तो कट्टरपंथी बौखला गए और अपना गुस्सा निकाल रहे हैं.
पाकिस्तान में धर्मांतरण का ना'पाक' खेल
पाकिस्तान में हिंदू-सिख लड़कियों की वास्तविक हकीकत जावेद शरीफ की फिल्म ‘द लूजिंग साइड’ से अलग नहीं है. मूवमेंट ऑफ सॉलिडेरिटी एंड पीस की एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में हर वर्ष करीब 1000 अल्पसंख्यक लड़कियों का निकाह उनसे उम्र में बड़े मुस्लिम युवकों से जबरदस्ती करा दिया जाता है. इनमें से कई लड़कियों की उम्र तो महज 10 से 12 वर्ष ही होती हैं, जबकि उनका निकाह 30-35 वर्ष या उससे भी ज्यादा उम्रदराज युवकों से करा दिया जाता है. इन लड़कियों में सबसे बड़ी संख्या सिंध प्रांत के हिंदुओं की होती है.
जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानून नहीं
अमेरिका ने इसके चलते पाकिस्तान को अल्पसंख्यक सुरक्षा के मामले में ‘गंभीर चिंता’ वाले देशों की श्रेणी में शामिल रखा है, लेकिन पाकिस्तान में इसे रोकने के लिए कोई ठोस कानून नहीं है. वर्ष 2016 में जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ पाकिस्तान में एक कानून पास किया गया, लेकिन कट्टरपंथियों के विरोध के बाद सरकार ने इस कानून वापस ले लिया गया.
हिंदू मैरिज एक्ट पास करने में लग गए 70 वर्ष
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की घटनाएं कोई नई बात नहीं हैं, जब से पाकिस्तान बना है तभी से हिंदू, सिख और क्रिश्चियन महिलाओं पर वहां अत्याचार होते रहे हैं. हर साल अपहरण और जबरन धर्मांतरण के हजारों मामले आने के बावजूद भी पाकिस्तान की सियासत ने कभी इस तरफ ध्यान नहीं दिया. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि पाकिस्तान को हिंदू मैरिज एक्ट पास करने में 70 वर्ष का समय लग गया. वर्ष 2017 तक पाकिस्तान के हिंदुओं को अपनी शादी रजिस्टर कराने का भी हक नहीं था. यानी पाकिस्तान में होने वाली हिंदू शादियों की कोई कानूनी वैधता नहीं थी. इसके अभाव में शादीशुदा हिंदू महिलाओं के अपहरण के बाद मुस्लिम युवकों से जबरन शादी करा दी जाती थी. हिंदू महिलाओं की मजबूरी ये थी कि वो कानून के सामने अपनी पिछली शादी की वैधता नहीं दिखा पाती थीं.
हिंदू मैरिज एक्ट पास होने के बाद भी नहीं सुधरे हालात
70 वर्षों तक पाकिस्तान ने अपने सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय को शादी का भी कानूनी हक नहीं दिया था. जबकि, भारत में मुस्लिमों को न सिर्फ शादी रजिस्टर कराने का हक मिला, बल्कि शादी, तलाक और दूसरे मामलों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का गठन भी किया गया, ताकि मुस्लिम समुदाय अपने धर्म के मुताबिक अपनी परंपराओं को निभा सकें. वर्ष 2017 में पाकिस्तान में हिंदू मैरिज एक्ट पास तो हुआ, लेकिन बावजूद इसके अपहरण और जबरन धर्मांतरण के मामले कम नहीं हुए, क्योंकि इस एक्ट में इस मुद्दे को छुआ ही नहीं गया.
न्यायपालिका भी नहीं है इन लाचार लड़कियों के साथ
पाकिस्तान की न्यायपालिका ने भी इन लाचार लड़कियों को उनके हाल पर छोड़ दिया. इसका सबसे बड़ा उदाहरण नाबालिग पाकिस्तानी लड़की हुमा युनुस की कहानी है. अक्टूबर 2019 में 14 वर्ष की हुमा युनुस का सिंध प्रांत से अपहरण किया गया और इसके एक महीने बाद उसके माता-पिता को ये खत मिला कि उसने धर्म बदलकर 40 वर्ष के एक मुस्लिम युवक से निकाह कर लिया है. हुमा के माता-पिता ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और दलील दी कि 'सिंध चाइल्ड मैरिज एक्ट 2013' के तहत ये शादी अवैध है. लेकिन, कोर्ट ने हुमा की शादी को वैध करार दिया. पाकिस्तान में ऐसे कई मामले हैं जब वहां की न्यायपालिका ने नाबालिग लड़कियों की जबरन शादी को वैध माना.
फिल्म के जरिए दुनिया के सामने आई पाकिस्तान की सच्चाई
भारत समेत दुनिया के ज्यादातर देशों में ऐसे मामलों को बाल यौन शोषण की श्रेणी में रखा जाता है और ये कानूनन अपराध है, लेकिन पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ ऐसा हो रहा है. और अब तो पाकिस्तान के फिल्म-मेकर ने भी वहां की हिंदू लड़कियों के साथ हो रहे पाप की सच्चाई को फिल्म के जरिए दुनिया के सामने रख दिया है. अब पड़ोसी को समझ में नहीं आ रहा है कि वो फिल्म की सफलता पर खुश हो या शर्मिंदा हो.
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