Japan में ट्रैफिक लाइट नीली क्यों होती है? वजह जानकर सोच में पड़ जाएंगे
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Japan में ट्रैफिक लाइट नीली क्यों होती है? वजह जानकर सोच में पड़ जाएंगे

Traffic signal Japan: कभी आपने ऐसी ट्रैफिक लाइट देखी है जिसमें नीला रंग भी होता हैं, जाहिर है नहीं देखी होगी. लेकिन कई बार जो होता है वो दिखता नहीं और जो दिखता है उस पर यकीन करना मुश्किल होता है. इस देश में भाषाई झोल के चलते कुछ ऐसा गजब हुआ, जिसे जानकर हैरत में पड़ जाएंगे.

Japan Traffic Signal

Why are Traffic Lights Blue in Japan: भारत की ट्रैफिक लाइट में तीन रंग होते हैं. लाल, पीला और हरा यानी देश का ट्रैफिक 'रुको.. दायें बाएं देखो फिर जाओ' की थीम पर चलता है. दुनिया के बहुत से देशों में ऐसे ट्रैफिक रूल का पालन किया जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि जापान में गो (Go) के लिए ग्रीन (Green Signal) नहीं बल्कि नीली लाइट (Blue Traffic Lights) का इस्तेमाल किया जाता है. यानी एक देश ऐसा भी जहां हरी की जगह नीली ट्रैफिक लाइट्स चलन में है. ऐसा क्यों है आइए बताते हैं.

जापान की अनसुनी कहानी

जापान तकनीक के मामले में हमेशा से आगे रहा है. वो दुनिया की टॉप 3 इकॉनमी में शामिल है. अपनी काबिलियत के दम पर एक विकसित देश है. छोटा होने के बावजूद जापान की बहादुरी से चीन भी भय खाता है. जापान के जलवे की एक और बात बता दें तो वो ये है कि भारतीय बाजार में दशकों पहले जापान के टॉर्च, रेडियो, ट्रांजिस्टर और टीवी का एकछत्र राज चलता था. कहा जाता है कि उस दौर में लगभग हर घर में कोई न कोई मेड इन जापान प्रोडक्ट जरूर होता था. जापान में ट्रैफिक लाइट की शुरुआत 1930 के दशक में हुई. यानी जो देश टेक्नोलॉजी के मामले में शुरुआत से अव्वल है, तो फिर यहां पर रंग को लेकर इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई?

भाषा का झोल

सदियों से जापान में सिर्फ 4 प्रमुख रंग, काला, सफेद, लाल और नीला के लिए ही शब्द बने थे. यहां नीले रंग को 'एओ' बोला जाता था. अगर किसी हरी चीज के बारे में बताना होता था, तो उसे भी 'एओ' ही कहते थे. लंबे दौर के बाद वहां हरे के लिए मिडोरी शब्द का प्रयोग होने लगा. जापान के गोल चक्कर यानी चौक चौराहों पर पहले अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से हरा रंग ही सिग्नल के लिए चुना गया था. यानी दिखने में भी यह हरे रंग की ही थी. लेकिन आधिकारिक दस्तावेज या लिखित रूप में ट्रैफिक लाइट के हरे रंग को ‘मिडोरी’ न लिखकर ‘एओ’ लिखा गया, जिसका अर्थ होता है नीला.

अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाम अंदरूनी दबाव

सरकार हरे रंग को चुन रही थी, पर जापान की आम जनता और जापानी भाषा के जानकार इसके विरोध में थे. उनका मानना था कि अगर जापान के नियमों में एओ रंग का इस्तेमाल करना है, तो उन्हें वही करना चाहिए. शायद यही वजह रही होगी कि जापान ने 1968 में वियना कन्वेन्शन ऑन रोड साइन एंड सिग्नल की संधि पर दस्तखत नहीं किए थे. गौरतलब है कि वियना अंतर्राष्ट्रीय संधि का मतलब ट्रैफिक सिग्नल को मानकीकृत करना है.

अब अंतरराष्ट्रीय दबाव और आंतरिक विरोध यानी अंदरूनी दबाव से बचने के लिए एक बीच का रास्ता निकाला गया. 1973 में जापानी अफसरों ने फिरोजी रंग (Turquoise colour) की लाइट चुनी. तब दावा किया गया कि उनका जो हरा रंग है, वो हरे का सबसे ज्यादा नीला शेड है. यानी ऐसा रंग जो हरा है, पर नीला दिखता है. भले ही आज के वक्त में लोग बोलें की जापान में नीली ट्रैफिक लाइट्स हैं, पर सरकार का तर्क था कि यह नीला नहीं, हरे का ऐसा शेड है जो नीला लगता है. यानी आज जापान में चलने के लिए ग्रीन लाइट का है जो असल स्वरूप में नीली है.

ट्रैफिक लाइट का हिस्ट्री

दुनिया में सबसे पहली ट्रैफिक लाइट वर्ष 1868 में लंदन के ब्रिटिश हाउस ऑफ पार्लियामेंट के सामने लगाई गयी थी. जिसे जे.पी नाइट नाम के एक इंजीनियर ने इंस्टाल किया था. 155 साल पहले तब रात में दिखने के लिए इस ट्रैफिक लाइट में गैस का प्रयोग किया जाता था. आपको बताते चलें कि उस समय इसमें सिर्फ लाल और हरे रंग का ही इस्तेमाल होता था.

 

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