भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा भारत की सांस्कृतिक धरोहर है. यह सिर्फ भक्त और भगवान के बीच भावनात्मक बंधन का प्रतीक नहीं है. बल्कि यह प्रत्येक मनुष्य को उसके जीवन में भावनाओं का मर्म समझाती है.
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नई दिल्लीः बताइए न मां, जाम्बवंती ने बड़ी ही सहजता से बच्चों जैसा हठ रोहिणी मां से किया. उसकी इस निश्छलता और प्रेम भरे निवेदन को देखकर बलभद्र माता रोहिणी को वात्सल्य उमड़ आया. जाम्बवती श्रीकृष्ण की सभी पत्नियों में सबसे छोटी थीं तो देवकी और रोहिणी दोनों ही माताएं उसे सुभद्रा जितना ही प्रेम करती थीं.
देवी जाम्बवन्ती ने की कृष्ण कथा सुनने की इच्छा
अरे जाम्बवंती, मेरी पुत्री, वह सब तो पुरानी बातें हैं, छोड़ो न. कहां से आज द्वारिका में तुम गोकुल और नंदगांव का प्रसंग ले आई. इसके बाद उनका स्वर कुछ रुंध गया, गालों पर आंखों से निकले जल की दो बुंदे ढलक आईं. अवरुद्ध कंठ से उन्होंने कहा- वैसे भी गोकुल-नंदगांव, मथुरा इन सभी के साथ विध्वंस और संहार का दुख भी जुड़ा है. देवकी बहन के छह पुत्रों की चीत्कार का स्मरण न कराओ.
देवी रुक्मणि ने मां को दी सांत्वना
वातावरण में क्षोभ घुलता देख, बड़ी बहू रुक्मिणी ने माता रोहिणी के हाथ थाम लिए. जाम्बवंती को एक मीठी झिड़की देते हुए कहा- मां को ऐसे न सताओ छोटी. और मां, आप मामाश्री कंस के अत्याचारों को क्यों स्मरण करती हैं.
आपको तो अपने पुत्रों के बल और आत्मविश्वास का स्मरण रखना चाहिए. बड़े भ्राता बलभद्र और द्वारिकाधीश के कारण आज सब कुछ शुभ है. आप तो उनकी मुरली कीतान याद कीजिए, गोकुल की फूटी मटकियों को याद कीजिए, माखन और माखन चोर को याद कीजिए. युद्ध के विलाप को नहीं रास लीला के गान को याद कीजिए.
इसलिए सुनना चाहती थीं बाललीला
रासलीला का प्रसंग आते ही जाम्बवंती फिर बोल पड़ीं, क्षमा करें दीदी, मैं मां को दुखित नहीं करना चाहती थी. मैं तो बस इसी रासलीला और द्वारिकाधीश की उन सभी लीलाओं के विष में सुनना चाहती थी, जो स्वामी ने बालपन में की थी. कल कक्ष में विश्राम करते हुए स्वामी कोई स्वप्न देख रहे थे.
अकस्मात ही उन्होंने राधा नाम लिया, मैं इस विषय में कम ही सुना है, लेकिन जितना सुना है इस नाम में खोती चली जाती हूं. बस इसीलिए मां से संपूर्ण कथा सुनना चाहती थी. वह तो यशोदा मां के साथ गोकुल में रही हैं. देवकी मां भी कहती हैं कि कदाचित उनका सौभाग्य यह देखने का नहीं था. मुझे क्षमा कर दें मां, मैं आपको दुख नहीं देना चाहती.
माता रोहिणी मान गईं
यह सुनकर माता रोहिणी द्वित हो गईं और कहा, नहीं पुत्री निराश न हो, मैं तुम्हें कान्हा का बालपन सुनाऊंगीं. सारी कथा प्रस्तुत करूंगी. लेकिन मेरी एक शर्त है. यह कथा सिर्फ तुम वधुओं के लिए ही है. श्रीकृष्ण और बलभद्र इसे न सुनें, यहां तक कि सुभद्रा भी नहीं. तुम सबको यह सुनिश्चित करना होगा.
अगर उन्होंने इसे सुना तो वे सब त्याग कर फिर से ब्रज चले जाएंगे, तब तुम सभी कुछ नहीं कर पाओगी.
देवी सत्य़भामा ने बनाई योजना
इस पर सत्भामा प्रसन्न होते हुए बोलीं, आप चिंतित न हों माता, यह मैं सुनिश्चित करूंगी. हम सभी उचित तिथि में रैवतक पर्वत पर मां अम्बिका के पूजन के लिए चलेंगे. सुहागिन स्त्रियों के इस पूजन के लिए दीदी सुभद्रा की मंदिर के भीतर आवश्कता नहीं होगी, तो हम उनसे विहार करने के लिए कह देंगी या फिर उन्हें मंदिर के बाहर पहरे पर बिठा देंगे.
ऐसी योजना बनाकर द्वारिका के राजमहल की सभी वधुएं, श्रीकृष्ण की बालकथा सुनने के दिन की प्रतीक्षा करने लगीं.
नियत तिथि पर सभी वधुएं रोहिणी मां के साथ रैवतक पर्वत पर देवी अंबिका के मंदिर पहुंची और सुभद्रा को विहार पर भेजकर कथा का प्रारंभ किया. देवी रोहिणी ने देवकी और यादव श्रेष्ठ वसुदेव के विवाह से कथा का आरंभ किया. आकाशवाणी, ऋषि की हत्या, नवदंपती को कारागार में डालना और उनके छह पुत्रों की हत्या की घटना सुनकर सभी स्त्रियां द्रवित हो उठीं.
द्रवित हो उठीं कृष्ण वधुएं
माता रोहिणी एक-एक कर घटनाक्रम का वर्णन करती जा रही थीं. उन्होंने कहा- कि जिस तरह अमावस्या के बाद पूर्णिमा का चांद भी खिलता है, इसी तरह की एक काली रात में कान्हा ने बहन देवकी के गर्भ से जन्म लिया.
इस दौरान वर्षा ऋतु का समय था और अपने पुत्र के प्राण बचाने के लिए स्वामी ने उसे उफनती यमुना से गोकुल के पार पहुंचा दिया. तुम सबके दाऊ बलभद्र को मैं पहले ही गोकुल पहुंचा चुकी थी.
कान्हा के गोकुल में पहुंचते ही सारी सृष्टि मुस्कुराने लगी. दिन बीतने लगे और बलभद्र कान्हा की शरारतों. अठखेलियों, नटखट लीलाओं से सारा ब्रज खिलखिलाने लगा. उसने बालपन में ही कंस के भेजे राक्षसों का वध कर दिया.
शकटासुर, पूतना, वकासुर, अजासुर सभी को सद्गति दी. माता रोहिणी कथा सुनाते जा रही थीं और उनकी वधुएं इस कथा के सागर में डूबती जा रही थीं
जब सुभद्रा ने जाना सत्य
इधर, अपनी भाभियों को अब तक पूजन करके न लौटने के कारण सुभद्रा यह जानने को उत्सुक हुईं कि सभी अंदर क्या कर रही हैं. वह मंदिर के पास पहुंची पर द्वार बंद होने के कारण उत्सुकता वश इधर-उधर देखने लगीं. अचानक एक झरोखे से उन्होंने अंदर झांककर दृश्य देखना चाहा. उन्होंने जब देखा-सुना तो माता रोहिणी उनके प्रिय भ्राता कृष्ण की मुरली के चमत्कार सुना रही थीं.
कृष्ण जब मुरली बजाना शुरू करते तो गोपियां अपने कार्यों से विमुख हो जातीं, गायों के थन से खुद दूध झरने लगते, रसोई में दूध उफन कर बह जाता तो चूल्हे पर रोटियां जल जातीं. स्त्रियां श्रृंगार भूल जातीं. काजल गाल पर लगा लेतीं, कुमकुम होंठ पर मल लेतीं और ध्यान में बैठी गोपियां भी सुध भूल जातीं. सबसे विचलित होती राधा, जो मुरली की तान सुनकर ही वन में दौड़ी चली जाती थी.
कथा सुनते हो जड़वत हो गए तीनों भाई-बहन
सुभद्रा यह सब सुनते-सुनते जड़वत हो गईं. उधर, राजमहल में राज परिवार की स्त्रियों के न होने से हलचल मच गई. कृष्ण-बलराम ने सुना तो किसी अनिष्ट की आशंका से खुद सुभद्रा व अन्य सभी को खोजते हुए वहीं मंदिर के झरोखे के पास पहुंच गए. उनकी भी वही स्थिति होने लगी जो बहन सुभद्रा की थी.
अपनी बालकथाएं सुनते-सुनते तीनों भाई-बहन जड़वत हो गए. उनके अस्तित्व खोने लगे. नेत्र फैलने लगे. हाथ-पैर लुप्तप्राय से लग रहे थे. ऐसा लगता था कि जैसे शरीर से कोई धारा ही फूट पड़ी हो. बाललीला का प्रसंग अंदर जारी था और इधर प्रभु अपने ज्येष्ठ और बहन के साथ परमलीला कर रहे थे. सुदर्शन ने भी लंबा आकार ले लिया था.
देवर्षि नारद ने की विनती
इतने में देवऋषि नारद वहां पहुंचे. प्रभु को इस रूप में देखकर वह भी विह्वल हो गए. नारद मुनि के चेताने पर प्रभु अपने वास्तव में लौटे तो देवर्षि ने उनसे इसी स्वरूप में दर्शन की विनती की. कहने लगे कि प्रभु मैंने जिस स्वरूप के दर्शन किए हैं, मैं चाहता हूं कि धरतीलोक में चिरकाल तक आपका इस स्वरूप में दर्शन हों.
इसलिए होती है रथयात्रा
प्रभु ने कहा-देवर्षि, एव मस्तु. कलिकाल में इसी रूप में नीलांचल क्षेत्र में अपना स्वरूप प्रकट करूंगा. आपने जिस बालभाव वाले रूप में मुझे अंगहीन देखा है. मेरा वही विग्रह प्रकट होगा. मैं स्वयं अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए उनके बीच जाऊंगा.
प्रभु के ब्रह्म वाक्यों के अनुसार कलयुग में उसी दिव्य स्वरूप के विग्रह ने प्रकट होकर जगन्नाथ प्रभु के रूप में भक्तों को दर्शन दिया. रथयात्रा के स्वरूप में भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा के साथ भक्तों के बीच आते हैं. उनके हाथ-पैर नहीं हैं. केवल आंखें ही आंखें हैं ताकि वे अपने भक्तों को जी भरकर देख सकें.