मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सरकार गठित करने के बाद से ही राजनीतिक चौसर खेलने में जुटे हैं. उनके सामने कांग्रेस से आए विधायकों के साथ भाजपा के पुराने नेताओं को भी साधने की चुनौती है. इसे मैनेज करने के लिए उन्होंने भाजपा जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की है.
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भोपाल: ज्योतिरादित्य सिंधिया(jyotiraditya scindia) के भाजपा(BJP) में शामिल होने के बाद से ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए राजनीतिक गोटियां सेट करनी मुश्किल हो गई है. सिंधिया समर्थक नेताओँ को पार्टी में शामिल कराने के बाद उनके प्रतिद्वंदी रहे भाजपा नेताओं को एडजस्ट करने के लिए शिवराज को बड़ी कवायद करनी पड़ रही है.
उपचुनाव के पहले शुरु की कवायद
मध्य प्रदेश की 24 विधानसभा सीटो पर अगले कुछ ही महीनों में उपचुनाव होने वाले हैं. जिसके बाद ये तय होगा कि शिवराज सरकार का भविष्य क्या होगा. इसलिए मुख्यमंत्री ने इसकी तैयारी अभी से शुरु कर दी है.
इसमें से ज्यादातर सीटें कांग्रेस छोड़कर आए विधायकों की हैं. सिंधिया से हुए समझौते के तहत सभी 22 पूर्व कांग्रेसी विधायकों को टिकट दिया जाना है. लेकिन इन सीटों पर जो पुराने भाजपा नेता चुनाव लड़ते रहे हैं. उन्हें संतुष्ट करना भी जरुरी है. अन्यथा उनकी बगावत उपचुनाव से पहले भाजपा को भारी पड़ जाएगी.
नए भाजपा जिलाध्यक्षों की घोषणा
भाजपा के मध्य प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने 24 जिले के भाजपा अध्यक्षों की घोषणा कर दी है. इसमें युवा चेहरों को प्राथमिकता दी गई है. उनके चयन में ऐसे कई भाजपा नेताओं को स्थान दिया गया है जो पिछला विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं.
उदाहरण के तौर पर सांवेर से 2018 में चुनाव लड़ने वाले राजेश सोनकर को इंदौर ग्रामीण का जिला अध्यक्ष बनाया गया है. क्योंकि सांवेर सीट से तुलसी सिलावट को चुनाव लड़वाना है. जो कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के खासमखास हैं. सिलावट ने भाजपा में आने के लिए अपनी विधायकी छोड़ी है. इसलिए राजेश सोनकर को जिलाध्यक्ष बनाकर एडजस्ट किया गया.
दरअसल उपचुनाव से पहले भाजपा किसी तरह का कोई भी रिस्क नहीं लेना चाहती है. अन्यथा शिवराज सरकार का भविष्य संकट में पड़ जाएगा. लेकिन भाजपा चाहती है कि सिंधिया के साथ आए पूर्व कांग्रेसियों के साथ उसके अपने पुराने भाजपा नेता भी नाराज न हों, इसके लिए पार्टी ने उन्हें जिलाध्यक्षों के रुप में एडजस्ट करने का नया फॉर्मूला अपनाया है.