जो क्रिकेट का भगवान है! ...यूं ही नहीं महान बन गए सचिन तेंदुलकर, जानिए 'सफलता का मंत्र'
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जो क्रिकेट का भगवान है! ...यूं ही नहीं महान बन गए सचिन तेंदुलकर, जानिए 'सफलता का मंत्र'

कोई शख्स यूं ही महान नहीं बन जाता, वो कहते हैं ना पत्थर से मूर्ति बनने के लिए भी हथौड़े की मार सहनी पड़ती है. हर मंजिल को पाने के लिए घोर तपस्या करनी पड़ती है. ऐसा नहीं है कि आप सचिन की तरह शख्सियत नहीं बन सकते, हर कोई महान बन सकता है. लेकिन सफर में जीत दर्ज करना है तो सचिन की सफलता के मंत्र को जरूर पढ़ें...

जो क्रिकेट का भगवान है! ...यूं ही नहीं महान बन गए सचिन तेंदुलकर, जानिए 'सफलता का मंत्र'

सचिन रमेश तेंदुलकर... वो खिलाड़ी जिसने क्रिकेट यानी लंब डंड गोल पिंड धड़ पकड़ प्रतियोगिता में ना सिर्फ अपना डंका बजाया, बल्कि पूरी दुनिया के लिए God of Cricket (क्रिकेट के भगवान) बन गए. सचिन इस खेल में महान हैं. और उनकी महानता का परिचायक ना सिर्फ उनके खेल, देश प्रेम और उनकी निजी जिंदगी ही नहीं है, बल्कि उनके सफर का एक-एक कदम पूरी दुनिया के बड़े-बड़े खिलाड़ियों के लिए पदचिन्ह बन गया.

  1. मास्टर-ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर को पूरी दुनिया का सलाम
  2. जिसने पूरी दुनिया को अपने खेल से बना दिया मुरीद
  3. सचिन बनने का सफर आसान नहीं था, जज्बे ने दिया मुकाम
  4. ना रुके, ना झुके, सिर्फ बढ़ते चले गए... और सचिन बन गए
  5. सचिन के नाम है क्रिकेट से जुड़े सबसे अधिक और बड़े कीर्तिमान
  6. सचिन को जिसने चैलेंज दिया, मानों उसने अपनी शामत बुलाई

वो कहावत है न, 'है वही सूरमा इस जग में जो अपनी राह बनाता है कोई चलता पदचिह्नों पर, कोई पदचिह्न बनाता है.' सचिन रमेश तेंदुलकर ने क्रिकेट को ऐसा ही एक पदचिन्ह दिया. जिसे पूरी दुनिया सदियों तक याद रखेगी.

सचिन के सफर को सलाम

एक 16 साल, 205 दिन का बालक... यही उम्र थी जब 15 नवंबर 1989 को अपने जीवन में पहला बार इंटरनेशनल मैच पाकिस्तान के खिलाफ खेलने के लिए खेल के मैदान पर उतरे थे. वो मैच कराची के नैशनल स्टेडियम में टेस्ट क्रिकेट में खेला जा रहा था. सचिन ने उस मैच में 24 गेंदो को सामना किया जिसमें 15 रन बनाकर वो वकार यूनुस की बॉल पर बोल्ड हो गए.

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भला किसी ने उस वक्त सोचा भी होगा? ये 16 साल का बच्चा आने वाले दिनों में क्रिकेट का महान बल्लेबाज, भारत की आन बान शान, दुनियाभर के खिलाड़ी की जान और जिसकी क्रिकेट के भगवान के नाम से होगी पहचान... वो मास्टर ब्लास्ट सचिन तेंदुलकर बनेगा? सचिन ने क्रिकेट के आसमान को अपनी ओर झुका दिया. हर किसी को अपने खेल का मुरीद बना दिया. सचिन की एक या दो कहानी नहीं है, जिसे पूरी दुनिया पढ़ने या सुनने में दिलचस्पी दिखाती है... ऐसे करोड़ों पल आए जब सचिन तेंदुलकर को देश ही नहीं पूरी दुनिया ने क्रिकेट का अभिमान के तौर पर स्वीकार किया.

इस बीच उन्हें एयरपोर्ट पर 17 साल की उम्र में ही अंजली से प्यार हो गया. दोनों ने शादी भी कर ली और सचिन के दो बच्चे भी हैं. बड़ी बेटी सारा तेंदुलकर और बेटा अर्जुन तेंदुलकर है.

वड़ापाव के दीवाने हुआ करते हैं सचिन

सचिन का जन्म और बचपन सबकुछ सपनों की नगरी मुंबई में हुआ है, मुंबई में उन्होंने बल्ला थामा और चौके छक्के लगाकर वानखेड़े स्टेडियम को अपना दीवाना बना दिया. लेकिन क्या आपको इस बात की जानकारी है कि सचिन तेंदुलकर को वड़ापाव बहुत पसंद है. खास तौर पर उन्हें मुंबई के दादर का वड़ापाव बहुत पसंद है, वो भी शिवाजी पार्क के बाहर उस वक्त जब सचिन क्रिकेट की प्रैक्टिस करने आते थे, वो एक दादा जी के वड़ापाव के दीवाने हो गए थे. कहा जाता है कि ढ़ेर सारे वड़ापाव के बीच से सचिन दादा के दुकान के बने वड़ापाव को पहचान लेते थे.

कहा तो ये भी जाता है कि सचिन सिर्फ खाने के शौकीन नहीं, बल्कि गजब के कुक भी हैं. उनके हाथों में मानों जादू है. एक छोटे कद के इंसान में न जाने कितने सारे गुण विद्यमान हैं. वाह सचिन रमेश तेंदुलकर, वो जिसने पूरी दुनिया को अपने परफार्मेंस के बलबूते जीत लिया है.

रिकॉर्ड के मामले में सचिन को कोई जवाब नहीं

सचिन की लगन भी बेहद अद्भुद है. न जाने कितने सारे रिकॉर्ड्स को अपने नाम कर लिया जो कभी किसी और का नहीं हो पाएगा. उन्होंने ढ़ेर सारे रिकॉर्ड्स तोड़े और सैकड़ों रिकॉर्ड्स पहली बार बनाए. रिकॉर्ड की कतार बहुत लंबी है. लेकिन कुछ तो वाकई अहम है.

सचिन के जीवन में कभी हार नाम की कोई चीज ही नहीं थी. उन्हें पीछे नहीं जाना था, सिर्फ आगे बढ़ते रहना था. और वो इस काम में माहिर होते गए. लेकिन करियर में उतार चढ़ाव तो हर किसी के जीवन में आता रहा है. लेकिन, सचिन के बुरे दिन उनके खेल में कम और शतक में ज्यादा देखने को मिला. सचिन ने अपने इंटरनेशनल करियर में 100 शतक तो मारे हैं, लेकिन उसमें 49 वनडे और 51 टेस्ट क्रिकेट में है.

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क्या आपको मालूम है, सचिन तेंदुलकर करीब 20 बार 90 से 99 रन के बीच आउट हो गए. हर बार वो निराश होकर ग्राउंड से वापस आते थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. लगे रहे अपने बुरे वक्त को मात देने के लिए लगातार खेलते रहे, खेलते रहे और 24 फरवरी 2010 सचिन तेंदुलकर ने अपने एक दिवसीय क्रिकेट के 442वें मैच में 200 रन बनाकर ऐतिहासिक पारी खेली, वो विश्व क्रिकेट का पहली डबल सेंचुरी थी. जिस रिकॉर्ड को भी सचिन ने अपने नाम कर लिया.

इसके बाद मीरपुर में करीब दो साल बाद 16 फरवरी 2012 को बांग्लादेश के खिलाफ 100वां शतक जड़ा, पूरा का पूरा स्टेडियम झूम उठा, क्या इंडियन क्या बांग्लादेशी हर कोई उस वक्त जश्न में सराबोर था. वनडे इंटरनेशनल मुकाबले में सचिन ने ही सबसे अधिक 18000 से अधिक रन का रिकॉर्ड अपने नाम कर रखा है.

वनडे इंटरनेशनल विश्व कप मुकाबले में सचिन ने साल 2003 के वर्ल्ड कप में रिकॉर्ड 673 रन बनाए थे. सचिन तेंदुलकर के नाम टेस्ट और वनडे में सबसे अधिक रन अरपे नाम करने का कीर्तिमान हासिल है.

वनडे में सबसे अधिक बार सचिन रमेश तेंदुलकर को मैन ऑफ द सीरीज और मैन ऑफ द मैच से नवाजे जाने का रिकॉर्ड बनाया है. इंटरनेशनल मैचों में सबसे ज्यादा 30000 रन बनाने का कीर्तिमान सचिन के नाम ही है. ये सबकुछ एक दिन या एक झटके में नहीं मिला है. इसके लिए सचिन की तपस्या की जितनी प्रशंसा की जाए शायद वो कम ही हो. क्योंकि सचिन ना तो रुके और ना ही झुके, वो बस आगे बढ़ते चले गए, बढ़ते चले गए. उन्होंने अपनी कमजोरी को ही सबसे बड़ी ताकत बना लिया. यही कारण है कि सिर्फ क्रिकेट के मैदान ही नहीं बल्कि सारे हिंदु्स्तान की शान हैं सचिन रमेश तेंदुलकर...

सचिन का सपना था कि उनके क्रिकेट से सन्यास लेने से पहले देश विश्व कप जीते, भारत के सिर पर विश्व विजय का सेहरा बंधा हो... वैसा हुआ भी, उनके इस सपने को इंडियन क्रिकेट टीम ने महेंद्र सिंह धोनी के नेतृत्व में पूरा किया. वो लम्हा भी बेहद यादगार है, जो इतिहास के पन्नों में हमेशा-हमेशा के लिए दर्ज हो गया. विश्व कप जीतने के बाद सचिन तेंदुलकर को पूरी टीम ने अपने कंधे पर उठाकर क्रिकेट ग्राउंड का चक्कर लगाया था. और उस वक्त सचिन तिरंगे को ओढ़कर देशभक्त के रंग में सराबोर थे.

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सचिन की इस आदत को क्या आपने देखा?

मैदान में हर खेल से पहले और हर कीर्तिमान के तुरंत बाद सचिन रमेश तेंदुलकर अपने सिर को उपर करते, आंखों को बंद करते और आसमान में देखते थे. क्या भला कोई जानता है कि इसके पीछे का लॉजिक क्या है? इसके बारे में खुद सचिन ने बताया था. वो उपर आसमान में सूरज भगवान को नमन करते हैं. इतना ही नहीं, वो जब भी पिच पर सामने वाली टीम को जवाब देना चाहते थे तो वो अपने बल्ले के कमाल से देते थे. हर कीर्तिमान को हासिल करने के बाद वो अपने हेलमेट पर लगे तिरंगे को चूमते और फिर ये साफ कर देते थे कि वो भारत के सपूत हैं, जो देश का मान ऐसे ही बढ़ाता रहेगा.

क्रिकेट के लिए सचिन का पागलपन

सचिन के लिए क्रिकेट ही सबकुछ है, ये बताने की आवश्यकता नहीं है. क्योंकि, उन्होंने इस बात को साबित किया है. क्रिकेट के प्रति उनके लगाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वो दौर वर्ल्ड कप का था, जब सचिन के पिता का स्वर्गवास हो गया था. उन्होंने इस बात की खबर पाते ही घर आए, पिता के अंतिम संस्कार में शामिल हुए और वापस अपने देश के लिए खेलने पहुंच गए. उसके अगले ही दिन वाले मैच में सचिन ने शतक जड़कर अपने दिवंगत पिता को श्रद्धांजलि अर्पित की.

खास बात तो कई हैं, लेकिन सबसे बेहतरीन बात तो ये है कि सचिन बेहद ही शांत स्वभाव के व्यक्तित्व हैं. उनका विश्वास करने में है ना कि बोलकर जवाब देने में.. इस बात को भी उन्होंने हर बार साबित किया है.

'उधर देख तेरा बाप खड़ा है'

क्रिकेट के मैदान पर भारत का जलवा कायम रहा है, लेकिन वो दौर ही कुछ और हुआ करता था. जब सचिन और सहवाग की जोड़ी बैटिंग करने मैदान पर उतरते थे. दोनों की जोड़ी का कोई जवाब नहीं है. एक बार का किस्सा हर किसी ने देखा था, जब वीरेंद्र सहवाग को शोएब अख्तर ने बाउंसर फेंक कर हड़काने की कोशिश की. सहवाग ने शॉट ना लगाकर सिंगल लिया तो शोएब ने तंज कसा कि तुम मेरी बॉल नहीं खेल पा रहे हो तो सिंगल ले रहे... तो उस वक्त सहवाग ने कहा, उस तरफ देख तेरा बाप खड़ा है. जिसके तुंरत बाद बाउंसर को भी सचिन ने खूबसूरत बाउंड्री में तब्दील कर दिया. शोएब की जबरदस्त धुनाई हुई. सहवाग ने फिर शोएब अख्तर की चुटकी लेते हुए कहा, "बाप-बाप होता है और बेटा-बेटा"

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सचिन के नाम सबसे बड़ा सम्मान

16 नवंबर, 2013 को अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से सन्यास लेने के बाद सचिन रमेश तेंदुलकर को देश के सबसे बड़े सम्मान से नवाजा गया. वो सम्मान भारत रत्न है, हालांकि, सचिन ने करीब 11 महीने पहले ही यानी 23 दिसंबर, 2012 को वनडे क्रिकेट से सन्यास लेने की घोषणा कर दी थी. और साल 2014 में सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न से सम्मानित किया गया.

भारत रत्न के अलावा सचिन को 1994 में अर्जुन पुरस्कार, 1997-98 में राजीव गांधी खेल रत्न, 1999 में पद्मश्री, 2001 में महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार, 2008 - पद्म विभूषण सम्मान से नवाजा जा चुका था. अनेकों उपाधि और सम्मान हासिल करने वाले सचिन तेंदुलकर ने आज ही के दिन इस दुनिया में कदम रखा था. 24 अप्रैल को वो 47 साल के हो गए हैं. भारत की शान सचिन को इस लॉकडाउन के बीच भी सोशल मीडिया पर बर्ड-डे विश करने की लंबी कतार लगी हुई है. सचिन ने भले ही क्रिकेट से सन्यास ले लिया हो, लेकिन उनका क्रिकेट सिर्फ भारत ही नहीं पूरी दुनिया के दिल-ओ-दिमाग और धड़कन से कभी सन्यास नहीं ले पाएगा.

इसे भी देखें: Birthday Special: सबसे कम उम्र में वनडे और टेस्ट मैच खेलने वाले खिलाड़ी हैं सचिन

क्या आपको इस बात की ज़रा भी जानकारी है कि सचिन रमेश तेंदुलकर को ये ऊंचाई कैसे हासिल हुई है. देश के लिए, देश के बेटे ने कैसे पूरी दुनिया को भारतीय क्रिकेट का मुरीद बना दिया? आखिर सचिन की सफलता का असली मंत्र क्या है? 

"रुकना नहीं, झुकना नहीं, सिर्फ चलते रहना... हार को हराकर जीत को भी अपना दीवाना बना देना, हर चुनौती को इतना आसान बना देना कि चुनौती भी ये समझ ले कि अगर वो इस इंसान की जिंदगी में आएगी तो चुनौती के लिए चुनौती बन जाएगी. अपनी हर कमी से हर बार सीखना, कमजोरी का जीवन में नामोनिशां नहीं छोड़ना, जिसे दुनिया आपकी कमजोरी समझे उसी को अपनी ताकत बनाकर पूरी दुनिया को ये दिखा देना कि जिंदगी के खेल में कितना भी मुश्किल मैच हो... 'मैं खेलेगा, मैं खेलेगा और जीतेगा' सचिन ने पदचिन्ह बनाया है, पदचिन्ह बनाने वाले को ही दुनिया में पूजा जाता है. और सचिन तो भगवान है, क्रिकेट का... अगर जिंदगी में एक सफल व्यक्ति बनना है, तो सिर्फ एक ही मंत्र है कर्मा, कर्म, मेहनत, लगन, सहनशीलता, शालीनता ऐसे हजारों गुणों को अपने जीवन में उतारकर ही एक व्यक्ति महान बनता है."

महान क्रिकेटर, क्रिकेट का भगवान, मास्टर-ब्लास्टर सचिन रमेश तेंदुलकर...

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