भारत रत्न डॉ.अंबेडकर के नजरिए से देखिए कैसा है इस्लाम का भाईचारा
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भारत रत्न डॉ.अंबेडकर के नजरिए से देखिए कैसा है इस्लाम का भाईचारा

 देश में उथल-पुथल मचा रहे वाम पंथियों और बात-बात पर हर किसी को सहिष्णुता का पाठ पढ़ाने वाले यह बताएं क्या किसी ने बाबा साहेब डॉक्टर साहब को उस शिद्दत से पढ़ा भी है. उनके विचार आज के भारत के निर्माण में जरूरी भी हैं और समसामयिक भी. जयंती के इस मौके पर डॉक्टर साहब के नजरिए से भारत की स्थिति और इस्लाम की बात

भारत रत्न डॉ.अंबेडकर के नजरिए से देखिए कैसा है इस्लाम का भाईचारा

नई दिल्लीः 14 अप्रैल, संविधान निर्माता की जयंती का दिन. संविधान निर्माता यानी कि बाबा साहेब डॉ. भीम राव अम्बेडकर. भारतीय राजनीति की यह विडंबना रही है कि बड़े-बड़े महापुरुष आगे आने वाले दिनों में केवल खास राजनीतिक दलों के मणिमुकुट बने रहे गए. उनके विचारों और उनके किए कार्यों को वह व्यापकता नहीं मिली जिसके वे हकदार थे, या जो ऊंचाई मिलनी चाहिए थी. 

  1. 1945 में डा.अम्बेडकर की पुस्तक “थाट्स ऑन पाकिस्तान” प्रकाशित हुई जिसने उनके प्रखर देशभक्त के विचारों से अवगत कराया.
  2. डा. अम्बेडकर के शब्दों में- "इस्लाम का भ्रातृत्व सिद्धांत मानव जाति का भ्रातृत्व नहीं है. यह मुसलमानों तक सीमित भाईचारा है. 

भारत रत्न की उपाधि से विभूषित डॉ. अम्बेडकर भी संविधान निर्माता के तौर पर केवल रस्मी तरीकों से ही याद कर लिए जाते हैं. लेकिन देश में उथल-पुथल मचा रहे वाम पंथियों और बात-बात पर हर किसी सहिष्णुता का पाठ पढ़ाने वाले यह बताएं क्या किसी ने डॉक्टर साहब को उस शिद्दत से पढ़ा भी है, उनके विचार समझने की कोशिश भी की है, जो कि आज के भारत के निर्माण में जरूरी भी है और समसामयिक भी. जयंती के इस मौके पर डॉक्टर साहब के नजरिए से भारत की..

आखिर भारत रत्न अंबेडकर के नजरिए की बात क्यों
आज देश-दुनिया समेत चारों तरफ कोरोना ने हाहाकार मचा रखा है. भारत में 24 मार्च से 21 दिनों का लॉकडाउन किया गया था, जिसकी मियाद आज से ही और बढ़ाई जा रही है. सारा विश्व परेशान है. महा शक्ति अमेरिका त्रस्त है और फ्रांस-ब्रिटेन, ईरान, इटली जैसे देश इससे बुरी तरह जूझ रहे हैं.

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भारत में यह स्थिति नियंत्रण में थी कि एक रोज सामने आया कि सरकारी निषेधों के बावजूद दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में मरकज के नाम पर 3000 से अधिक लोग जमा हैं. यही नहीं ये सभी लोग इसके बाद देश भर में फैल गए और फिर कोरोना के बड़े वाहक बने. संक्षेप में कहें तो अब तक सांस अटकी हुई है. 

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ये वही लोग हैं...
आप कहेंगे, सवाल पूछेंगे, इतनी कट्टरता, इतना मजहबी रोध कहां से आया. इस दौरान जब सभी धर्मस्थल बंद हैं, ताले में हैं तो ये कौन सी कौम है जो घरों से इबादत नहीं कर पा रही है. दरअसल यह वही लोग हैं, जो अपनी जमुना हमेशा उल्टी बहाते रहे हैं. धार्मिक कट्टरता का और एक घोषित जाहिल पन को सामने रखते रहे हैं. यह नहीं समझना चाह रहे कि इस वक्त सारे विश्व के साथ, अपने देश वासियों के साथ सबके हित के लिए घर में रहना क्यों और कितना जरूरी है. 

बाबा साहेब ने इस बारे में चेताया था
अस्पृश्यता एवं जन्माधारित विशेषाधिकारों पर चल रही समाज व्यवस्था के वे कट्टर विरोधी थे. हिन्दू समाज रचना के विविध पहलुओं का गंभीर चिन्तन करने के साथ भारत में मुस्लिम राजनीति का भी विस्तृत अध्ययन किया था. डा. अम्बेडकर ने भारत पर मुसलमानों के क्रूर तथा रक्तरंजित आक्रमणों का गहराई से अध्ययन किया था. उन चाटुकारों तथा दिशाभ्रमित वामपंथी इतिहासकारों को फटकारते हुए लिखा कि “यह कहना गलत है कि ये सभी आक्रमणकारी केवल लूट या विजय के उद्देश्य से आए थे. 

डा.अम्बेडकर ने अनेक उदाहरण देते हुए बताया कि इनका उद्देश्य हिन्दुओं में मूर्ति पूजा तथा बहुदेववाद की को नष्ट कर भारत में इस्लाम की स्थापना करना था.  इस सन्दर्भ में उन्होंने कुतुबुद्दीन ऐबक, अलाउद्दीन खिलजी, फिरोज तुगलक, शाहजहां तथा औरंगजेब की विस्तार से चर्चा की है. 

हां ठीक है इस्लाम में भाईचारा है, लेकिन कहां तक?
डा.अम्बेडकर ने साफ साफ बताया कि "इस्लाम विश्व को दो भागों में बांटता है, जिन्हें वे दारुल-इस्लाम तथा दारुल हरब मानते हैं. जिस देश में मुस्लिम शासक है वह दारुल इस्लाम की श्रेणी में आता है. जिस देश में मुस्लिम शासक है वह दारुल इस्लाम की श्रेणी में आता है. लेकिन जिस किसी देश में जहां मुसलमान रहते हैं परन्तु उनका राज्य नहीं है,

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वह दारुल-हरब होगा. इसके अनुसार उनके लिए भारत दारुल हरब है. इस तरह वे मानव मात्र में और भाईचारे में बिल्कुल भरोसा नहीं रखते हैं.

सिर्फ इस्लाम मानने वालों तक सीमित है भाईचारा
डा. अम्बेडकर के शब्दों में- "इस्लाम का भ्रातृत्व सिद्धांत मानव जाति का भ्रातृत्व नहीं है. यह मुसलमानों तक सीमित भाईचारा है. समुदाय के बाहर वालों के लिए उनके पास शत्रुता व तिरस्कार के सिवाय कुछ भी नहीं है. उनके अनुसार “इस्लाम एक सच्चे मुसलमान को कभी भी भारत की अपनी मातृभूमि मानने की स्वीकृति नहीं देगा.

मुसलमानों की भारत को दारुल इस्लाम बनाने की मह्त्वाकांक्षा हमेशा रही है. 

आखिर क्यों बाबा साहेब बौद्ध धर्म की ओर ही गए
अंबेडकर ने इस्लाम और इसाईयत को विदेशी मजहब माना है. वह धर्म के बिना जीवन का अस्तित्व नही मानते थे, लेकिन धर्म भी उनको भारतीय संस्कृति के अनुकूल स्वीकार्य था. इसी वजह से उन्होंने ईसाईयों और इस्लाम के मौलवियों का आग्रह ठुकरा कर बौद्ध धर्म अपनाया क्योंकि बौद्ध भारत की संस्कृति से निकला एक धर्म है. 

बाबा साहेब के विचारों को समझने की जरूरत
1945 में डा.अम्बेडकर की पुस्तक “थाट्स ऑन पाकिस्तान” प्रकाशित हुई जिसने उनके प्रखर देशभक्त के विचारों से अवगत कराया. भारत की राजनीतिक एकता को मूर्तरुप देने का जैसा शानदार कार्य सरदार पटेल ने अंजाम दिया, उसी कोटि का कार्य राष्ट्र की सामाजिक एकता को शक्तिशाली बनाने का काम बाबा साहेब डॉक्टर अंबेडकर ने किया.

लेकिन दुखद है कि अलगाव वाद की नीति अपनाने वाले भारत में रही रहने वाले कई लोग और वामपंथी ताकतें हमेशा इस देश को और इस एकता को खंडित करने में जुटे रहे हैं. कोरोना के बीच भी उनके यह प्रयास जारी हैं. जरूरी है कि बाबा साहेब को ही नहीं उनके विचारों को भी व्यापक तरीके से तरजीह देते हुए उसे समझा जाए. अपनाया जाए. 

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