सुब्रत रॉय के अंतिम संस्कार में नहीं आए उनके दोनों बेटे, क्या पिता-पुत्र में था मनमुटाव?
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सुब्रत रॉय के अंतिम संस्कार में नहीं आए उनके दोनों बेटे, क्या पिता-पुत्र में था मनमुटाव?

सहारा समूह के संस्थापक सुब्रत रॉय का अंतिम संस्कार एक विडंबनापूर्ण घटना के रूप में सामने आया. उनका अंतिम संस्कार बीते गुरुवार को लखनऊ में हुआ, लेकिन उनके दोनों बेटे अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुए.

सुब्रत रॉय के अंतिम संस्कार में नहीं आए उनके दोनों बेटे, क्या पिता-पुत्र में था मनमुटाव?

सहारा समूह के संस्थापक सुब्रत रॉय का अंतिम संस्कार एक विडंबनापूर्ण घटना के रूप में सामने आया. उनका अंतिम संस्कार बीते गुरुवार को लखनऊ में हुआ, लेकिन उनके दोनों बेटे अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुए. सुब्रत की पत्नी अपने 16 वर्षीय पोते हिमांक रॉय के साथ भारत आईं और पोते ने ही उन्हें मुखाग्नि दी. आपको बता दें कि उनके दोनों बेटे और पत्नी मेसेडोनिया में रहते हैं.

दरअसल, सुब्रत रॉय ने अपने परिवार को भारतीय कानून से बचाने के लिए मेसेडोनिया की नागरिकता दिलाई थी. उन्होंने अपने बेटों को मेसेडोनिया में उच्च शिक्षा दिलाई. लेकिन जिन बेटों के लिए सुब्रत रॉय ने इतना कुछ किया, वह अंतिम समय में उनके साथ नहीं खड़े हो पाए. इस घटना से यह सवाल उठता है कि क्या सुब्रत राय और उनके बेटों के बीच कोई मनमुटाव था? यह एक व्यक्तिगत मामला है, और इस पर कोई निश्चित जवाब नहीं है. लेकिन यह निश्चित रूप से एक विचारणीय विषय है.

खास होता है पिता-पुत्र का रिश्ता
पिता और पुत्र का रिश्ता बहुत ही अनोखा और खास होता है. बेटे के जन्म के बाद पिता को लगता है कि अब उसके साथ एक ऐसा साथी मिल गया है. जो उसके साथ कदम से कदम मिलाकर चलेगा और परिवार की जिम्मेदारी उठाएगा. बचपन में बच्चा पिता को अपना रोल मॉडल समझता है और पिता से बहुत कुछ सीखता है. पिता उसे चलना, बोलना, खेलना और जीवन के कई महत्वपूर्ण बातें सिखाते हैं. हालांकि, जैसे-जैसे पुत्र युवावस्था में प्रवेश करता है, उसके विचार और भावनाएं बदलने लगती हैं. वह अब पिता के साथ उतना ही करीब नहीं रहता जितना पहले था. पिता और पुत्र के बीच दूरियां आने लगती हैं और वैचारिक मतभेद बढ़ने लगते हैं. इस मनमुटाव के कई कारण हो सकते हैं.

पिता-पुत्र के रिश्ते में कैसे बढ़ाएं आपसी समझ

एक-दूसरे के लिए समय निकालें
पिता और पुत्र को एक-दूसरे के लिए समय निकालना चाहिए और एक-दूसरे के साथ बातचीत करनी चाहिए. वे एक साथ कुछ गतिविधियाँ भी कर सकते हैं, जैसे कि खेल खेलना, फिल्में देखना या बाहर घूमना.

एक-दूसरे की बातों को ध्यान से सुनें
जब पिता और पुत्र एक-दूसरे से बात कर रहे हों, तो उन्हें एक-दूसरे की बातों को ध्यान से सुनना चाहिए. उन्हें यह दिखाना चाहिए कि वे एक-दूसरे के बारे में चिंतित हैं और उनकी बातों में रुचि रखते हैं.

एक-दूसरे के विचारों और भावनाओं का सम्मान करें
पिता और पुत्र को एक-दूसरे के विचारों और भावनाओं का सम्मान करना चाहिए, भले ही वे उनसे सहमत न हों. उन्हें यह समझना चाहिए कि हर किसी की अपनी अलग राय और दृष्टिकोण हो सकता है.

एक-दूसरे के साथ ईमानदार रहें
पिता और पुत्र को एक-दूसरे के साथ ईमानदार होना चाहिए. उन्हें अपने विचारों, भावनाओं और जरूरतों को एक-दूसरे के साथ शेयर करना चाहिए.

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