ZEE जानकारी: हौज काजी की घटना पर क्यों खामोश हैं बुद्धिजीवियों का एक वर्ग?
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ZEE जानकारी: हौज काजी की घटना पर क्यों खामोश हैं बुद्धिजीवियों का एक वर्ग?

भारत की राजधानी दिल्ली में एक मंदिर पर पत्थर फेंके गए. मूर्तियों को नुकसान पहुंचाया गया. लेकिन देश के तथाकथित धर्मनिरपेक्ष विद्वान और बुद्धिजीवी इस घटना पर एकदम खामोश हैं.

ZEE जानकारी: हौज काजी की घटना पर क्यों खामोश हैं बुद्धिजीवियों का एक वर्ग?

आज DNA की शुरुआत में हम देश के बुद्धिजीवियों की Selective सोच को Expose करेंगे. हमारे देश में जब भी हिंदू आस्था पर हमला होता है, तो सारे बुद्धिजीवी खामोश हो जाते हैं. मीडिया ख़ामोश हो जाता है. भारत की राजधानी दिल्ली में एक मंदिर पर पत्थर फेंके गए. मूर्तियों को नुकसान पहुंचाया गया. लेकिन देश के तथाकथित धर्मनिरपेक्ष विद्वान और बुद्धिजीवी इस घटना पर एकदम खामोश हैं.

इन लोगों ने इस घटना को Facebook या Twitter पर ना तो Share किया और ना ही Retweet किया. बात-बात में मोमबत्ती मार्च निकालने वाला, ये गैंग एक हिंदू परिवार के साथ हुई मारपीट पर एकदम चुप है. जहां ये घटना हुई, पुरानी दिल्ली की वो जगह देश के कुछ बड़े अख़बारों के दफ़्तरों से 4 किलोमीटर से भी कम दूर है.

देश के कई बड़े न्यूज़ चैनलों के दफ़्तरों से केवल 17 किलोमीटर दूर है. और देश की संसद से केवल 6 किलोमीटर दूर है. और ये जगह वहां से भी ज़्यादा दूर नहीं है, जहां देश के बड़े बुद्धिजीवी और डिज़ाइनर पत्रकार बैठकर कॉफ़ी पीते हैं. लेकिन इस घटना के 48 घंटे बाद भी बुद्धिजीवियों ने कोई शोक संदेश जारी नहीं किया है. न उन्हें ग़ुस्सा आ रहा है. इसीलिए, आज हम देश के डिज़ाइनर पत्रकारों और बुद्धिजीवियों के इस मौनव्रत का विश्लेषण करेंगे. 

दो व्यक्तियों के बीच झगड़ा हो सकता है. दो अलग-अलग समुदायों के बीच भी झगडा हो सकता है . लेकिन मंदिर और मूर्तियों से किसी का क्या झगड़ा हो सकता है? फिर भी... पुरानी दिल्ली में पार्किंग के विवाद में मुस्लिम समुदाय के कुछ युवकों ने मंदिर पर पत्थरबाजी की और मूर्तियों को नुकसान पहुंचाया. 

इस CCTV के इस वीडियो को देखिए. कुछ युवक 30 जून की रात को करीब 12 बजकर 45 मिनट पर पत्थर फेंक रहे हैं . ये पत्थर सीधे मंदिर और उसके अंदर रखी गई मूर्तियों को नुकसान पहुंचा रहे हैं . दिल्ली पुलिस ने इन्हीं CCTV तस्वीरों की मदद से अब तक दो लोगों को गिरफ्तार किया है . और एक नाबालिग को भी पकड़ा है . इनमें से एक आरोपी का नाम आस मोहम्मद है . पकड़े गए सभी लोग मुस्लिम समुदाय के हैं . 

ये मामला एक पार्किंग विवाद से शुरू हुआ था. घटना 30 जून को रात करीब साढ़े ग्यारह बजे की है . पुरानी दिल्ली में रहने वाले एक व्यक्ति के घर के सामने कुछ मुस्लिम युवक स्कूटी Park करके नशा कर रहे थे . उस व्यक्ति ने युवकों को स्कूटी हटाने के लिए कहा . इसके बाद दोनों पक्षों में बहस होने लगी.

थोड़ी देर बाद दोनों पक्षों में मारपीट होने लगी. इसके कुछ देर के बाद ही आरोपी आस मोहम्मद अपने कई साथियों के साथ दोबारा पीड़ित के घर पहुंच गए. और घर में घुसकर मारपीट शुरू कर दी . आरोपियों ने परिवार की महिलाओं के साथ भी मारपीट की . इसके बाद भी आरोपियों की नफरत खत्म नहीं हुई . आरोपी घऱ के सामने सड़क की दूसरी तरफ मौजूद मंदिर की तरफ गए और पत्थरबाजी शुरू कर दी . मंदिर के पुजारी ने कई बार पुलिस कंट्रोल रूम में 100 नंबर पर फोन भी किया . लेकिन पुलिस डेढ़ घंटे देर से आई . 

इस घटना को 48 घंटे से ज्यादा बीत चुके हैं . लेकिन धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देने वाला कोई भी नेता या मुख्यमंत्री इस परिवार से मिलने नहीं पहुंचा है. इसलिए आज हम इस मामलों के पीड़ितों का दर्द पूरे देश को सुनाना चाहते हैं .

दिल्ली की ये ख़बर छुआ-छूत की बीमारी की शिकार हो गई. इसे छूना कुछ डिज़ाइनर पत्रकारों ने पसंद नहीं किया. देश में जाति और धर्म के नाम पर भेदभाव तो हम ने बहुत देखा है. लेकिन, अब ख़बरों से भी भेदभाव हो रहा है. ये बहुत भयंकर बीमारी है. जो देश के लिए ख़तरनाक है. ये हमें सच से दूर रखती है. आज हमारे बहुत से दर्शकों ने भी हमें लिखा कि वो इस घटना का विश्लेषण देखना चाहते हैं. इसलिए, आज पुरानी दिल्ली में हुई इस घटना का विश्लेषण कर रहे हैं.

मंदिर पर हमले की घटना के बाद आज इलाके के सांसद और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री Doctor हर्ष वर्धन ने घटनास्थल का दौरा किया और दोनों पक्षों से शांति की अपील की . 

लेकिन आज बड़ा सवाल ये भी है कि देश की राजधानी दिल्ली में हुई इस घटना पर बुद्धिजीवी क्यों खामोश हैं ? 

जिस मंदिर में मूर्तियों को तोड़ा गया वो जगह संसद से करीब 7 किलोमीटर दूर है 

ये जगह सुप्रीम कोर्ट से करीब 6 किलोमीटर दूर है . 

और देश के बुद्धिजीवी और डिज़ाइनर पत्रकार जहां बैठ कर कॉफ़ी पीते हैं और देश की फ़िक्र करते हैं, वो जगह भी यहां से केवल 6 किलोमीटर दूर है.

दिल्ली के बहादुर शाह जफर मार्ग से ये जगह करीब 5 किलोमीटर दूर है . बहादुर शाह जफर मार्ग का जिक्र हमने इसलिए किया क्योंकि यहीं पर भारत के बड़े बड़े अखबारों के दफ्तर हैं . 

इसके अलावा नोएडा की फिल्म सिटी से ये जगह 17 किलोमीटर दूर है . फिल्म सिटी में भारत के कई बड़े न्यूज़ चैनलों के दफ्तर हैं . 

इन सभी जगहों पर भारत के बुद्धिजीवियों का काफी प्रभाव है . लेकिन इन सभी ने मंदिर में हुई तोड़ फोड़ की घटना को नज़र अंदाज़ कर दिया . 

वो पुरानी दिल्ली से केवल 6 किलोमीटर दूर स्थित एक ख़ास जगह पर बैठकर कॉफ़ी पीते हुए बताते रहते हैं कि देश का मुसलमान कितना डरा हुआ है ? लेकिन जब बिना किसी वजह के एक मंदिर को निशाना बनाया, तो ये सभी खामोश हो गए . इनमें से किसी ने भी अब तक मंदिर पर हमले की घटना पर ना तो कोई Tweet किया है और ना ही कोई लेख लिखा है. 

अब ज़रा इस पूरे मामले को एक दूसरे नज़रिए से देखिए . ज़रा कल्पना कीजिए कि अगर ऐसा ही हमला किसी मस्ज़िद में हुआ होता तो अब तक पूरा Secular Gang संविधान बचाओ यात्रा निकाल रहा होता . देश भर में धरने और प्रदर्शन का दौर शुरू हो गया होता . पीड़ितों से मुलाकात के लिए सेकुलर नेताओं की लंबी कतार लग गई होती . तब कई डिज़ाइनर पत्रकार घटनास्थल पर सुबह से शाम तक Live रिपोर्टिंग कर रहे होते . लेकिन मंदिर पर हमले की घटना से इन लोगों की संवेदनशीलता पर कोई फर्क नहीं पड़ा है .

इसकी वजह ये है कि मीडिया के बहुत से लोग सच्चाई से मुंह चुराते हैं. वो समुदाय का नाम नहीं लेते. वो अल्पसंख्यक समुदाय कहते हैं. या दो समुदायों के बीच हुई झ़ड़प कह कर समुदाय का नाम लेने से बचते हैं. लेकिन, हमने हमेशा पूरा सच बताया है. आप से और देश से कभी कुछ नहीं छुपाया है.

आपको याद होगा दिल्ली में चर्च का शीशा टूट जाने की घटना पर पूरे देश में हंगामा हो गया था . देश के पूरे Secular मीडिया ने ये घोषित कर दिया था कि भारत सांप्रदायिक हो गया है . और हिंदुओं में कट्टरपंथ फैल गया है . लेकिन दिल्ली में मंदिर पर हमले के बाद भी हिंदुओँ की सहनशीलता पर किसी ने दो शब्द भी नहीं कहे . 

ये देश के बुद्धिजीवियों का दोहरा मापदंड है जिसको Expose करना आज बहुत जरूरी है . 

जो घटना दिल्ली में हुई, वैसी ही घटना किसी और जगह, किसी और समुदाय के साथ हुई होती, तो अब तक पूरे देश में शोर मच गया होता. अगर, ऐसी भीड़ ने किसी मस्जिद पर हमला किया होता, तो संसद में बड़े-बड़े भाषण हो गए होते. लेकिन, इस घटना को लेकर ऐसा कुछ नहीं हुआ. 

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