Thiruvalluvar: दक्षिण के इस दार्शनिक की बीजेपी को क्यों चुनाव के वक्त ही आई याद? तिरुवल्लुवर को यूं ही नहीं दिया संकल्प पत्र में स्थान
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Thiruvalluvar: दक्षिण के इस दार्शनिक की बीजेपी को क्यों चुनाव के वक्त ही आई याद? तिरुवल्लुवर को यूं ही नहीं दिया संकल्प पत्र में स्थान

Who is Thiruvalluvar: तिरुवल्लुवर को प्यार से तमिल में वल्लुवर कहा जाता है. वह तमिल संस्कृति के आदर्श माने जाते हैं. धर्म और जाति के बंधन से परे लोग उनको संत, कवि और दार्शनिक का दर्जा देते हैं.

Thiruvalluvar: दक्षिण के इस दार्शनिक की बीजेपी को क्यों चुनाव के वक्त ही आई याद? तिरुवल्लुवर को यूं ही नहीं दिया संकल्प पत्र में स्थान

BJP and Thiruvalluvar: लोकसभा चुनाव 2024 के लिए बीजेपी के मेनिफेस्टो मोदी की गारंटी में एक चैप्टर का टाइटल है मोदी की गारंटी फॉर विश्व गुरु भारत. इसमें लिखा है कि हम पूरी दुनिया में भारत की संस्कृति को फैलाने के साथ-साथ भारतीय भाषाओं, आयुर्वेद, योग की ट्रेनिंग और शास्त्रीय संगीत की शिक्षा देने के लिए तिरुवल्लुवर कल्चरल सेंटर्स की स्थापना करेंगे. 

पिछले कई साल से तमिलनाडु में बीजेपी राजनीतिक माइलेज हासिल करने के लिए तिरुवल्लुवर की विरासत में हिस्सेदार बनना चाहती है. 19 अप्रैल को तमिलनाडु की सभी 39 सीटों पर वोट डाले जाएंगे. लेकिन यह जानना जरूरी है कि जिस तिरुवल्लुवर के कल्चरल सेंटर्स पूरी दुनिया में बीजेपी खोलने का वादा कर रही है आखिर वह हैं कौन. चलिए जानते हैं.

किसी रहस्य से कम नहीं तिरुवल्लुवर

तिरुवल्लुवर की ऐतिहासिकता बहुत हद तक साफ नहीं है. जिस अवधि में वह थे, वह बहस का विषय है. साथ ही उनके धार्मिक जुड़ाव पर भी सवाल खड़े होते हैं. कुछ जगह लिखा है कि वह तीसरी या चौथी शताब्दी ई.पू. में थे. जबकि कई जगह उनको लगभग 500 वर्ष बाद, 8वीं या 9वीं शताब्दी का बताया जाता है. उनको हिंदू और जैन दोनों धर्म में संत का दर्जा दिया गाय है. जबकि द्रविड़ समूह वाले  भी उनको संत मानते हैं लेकिन उनका किसी धार्मिक समूह से ताल्लुक नहीं. उनका तर्क है कि तिरुवल्लुवर की जड़ें द्रविड़ से जुड़ी हुई थीं. 

तमिल विजडम: ट्रेडिशन्स कंसर्निंग हिंदू सेज एंड सिलेक्शन्स फ्रॉम देयर राइटिंग्स (1873) बुक में, प्रोटेस्टेंट मिशनरी एडवर्ड जेविट रॉबिन्सन ने तिरुवल्लुवर को पारिया बताया है. उनके पिता ब्राह्मण और मां निचली जाति की थीं. 

ऐसा कहा जाता है कि वह मद्रास के पास मयिलापुर में एक बाग में भगवान शिव के एक मंदिर के पास में एक वेलालन की पत्नी को मिले थे, जो बाद में उनको अपने घर ले गईं. लेकिन बाद में पालन-पोषण के लिए एक पारिया परिवार को दे दिया. 

तिरुवल्लुवर इतने अहम क्यों हैं?

तिरुवल्लुवर को प्यार से तमिल में वल्लुवर कहा जाता है. वह तमिल संस्कृति के आदर्श माने जाते हैं. धर्म और जाति के बंधन से परे लोग उनको संत, कवि और दार्शनिक का दर्जा देते हैं.

उनके लिखे थिरुक्कुरल (तमिल में कुराल), जिसमें 1,330 दोहे हैं, हर तमिल घर में पाया जाता है. यह उसी तरह है जैसे उत्तर भारत में भगवद गीता या रामायण होती है. तमिलों को अपने जड़ें खोजने में तिरुवल्लुवर बेहद अहम माने गए हैं. तमिलों को उनके लिखे दोहे पढ़ने और उनकी दी गई शिक्षा को जीवन में उतारने को कहा जाता है. 

तिरुवल्लुवर की विरासत पर दावे क्यों?

साल 2019 के अक्टूबर-नवंबर में विवाद उस वक्त खड़ा हो गया था, जब बीजेपी तमिलनाडु ईकाई ने तिरुवल्लुवर की एक तस्वीर पोस्ट की, जिसमें उनके सफेद कपड़ों को भगवा से बदल दिया गया. इसके अलावा एक हिंदू संगठन के नेता को उस वक्त गिरफ्तार किया गया था, जब उन्होंने तिरुवल्लुवर की मूर्ति पर भगवा शॉल डालने की कोशिश की थी. डीएमके और लेफ्ट पार्टियों ने बीजेपी पर आरोप लगाया था कि वह तिरुवल्लुवर की विरासत के साथ छेड़छाड़ कर रही है, जिनकी शिक्षा धर्म और जाति से परे है. तब बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव एच राजा ने कहा था कि तिरुवल्लुवर एक हिंदू संत थे और द्रविड़ पार्टियां, जो भगवान को नहीं मानतीं, उन्होंने बीते कुछ वर्षों में उनके व्यक्तित्व से हिंदू प्रतीकों को हटा दिया है.

एक्सपर्ट क्या कहते हैं?

आईआईटी मद्रास से रिटायर्ड प्रोफेसर और तमिल इतिहास  जानकार एस स्वामीनाथन ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा था, 'तिरुवल्लुवर के जीवन के बारे में जो भी थोड़े बहुत सबूत हैं, उससे कई स्कॉलर्स इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि वह जैन थे, ना कि हिंदू और ना ही द्रविड़. हम यह पता लगा सकते हैं कि तिरुक्कुरल, उनका असाधारण साहित्य है, जिसकी भारतीय इतिहास या प्राचीन साहित्य में कोई तुलना नहीं है. सफेद कपड़ों में तिरुवल्लुवर की जो तस्वीरें दिखती हैं, वह भी हालिया कल्पना है. तिरुवल्लुवर की कोई तस्वीर कभी मिली ही नहीं. हमें यह भी नहीं पता कि तिरुक्कुरल एक शख्स ने लिखी है या फिर यह स्कॉलर्स के कई बरसों का काम है. हमने तिरुवल्लुवर की तस्वीर उनके निधन के सैकड़ों वर्षों बाद बनाई है. ' 

मार्च 2017 में कोयंबटूर के पास आरएसएस ने अपनी राष्ट्रीय परिषद आयोजित करने के बाद के वर्षों में अपने राजनीतिक साहित्य में तमिल संतों और प्रतीक चिन्हों का इस्तेमाल करने की मांग की है. जमीनी स्तर पर उनकी तुलनात्मक रूप से कम मौजूदगी तमिलनाडु में आरएसएस और बीजेपी के लिए एक रुकावट रही है और तमिल संतों और प्रतीक चिन्हों को सही या सहयोजित करने की कोशिश RSS की कोशिशों का हिस्सा रहा है.

 

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