DNA with Sudhir Chaudhary: भारत में किसने फैलाई नफरत की आग? देश में इस्लामिक कट्टरपंथ का नहीं हुआ विरोध
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DNA with Sudhir Chaudhary: भारत में किसने फैलाई नफरत की आग? देश में इस्लामिक कट्टरपंथ का नहीं हुआ विरोध

DNA with Sudhir Chaudhary: हाल ही में जब देश के अलग-अलग राज्यों में रामनवमी और हनुमान जयंती के मौके पर दंगे हुए थे और इन दंगों में हिन्दू श्रद्धालुओं को निशाना बनाया गया था, तब भी हमारे देश के लोगों ने इस तरह से कभी विरोध प्रदर्शन नहीं किए. इससे पता चलता है कि हिन्दू समुदाय के ज्यादातर लोग आज भी कानून व्यवस्था को मानने वाले हैं.

DNA with Sudhir Chaudhary: भारत में किसने फैलाई नफरत की आग? देश में इस्लामिक कट्टरपंथ का नहीं हुआ विरोध

DNA with Sudhir Chaudhary: हमारे देश में इस्लामिक कट्टरपंथियों और आतंकवादियों ने वर्ष 2001 में संसद भवन पर हमला किया था और जब इस हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी हुई थी तब भी हमारे देश में एक खास समुदाय के लोग इसी तरह सड़कों पर उतर आए थे. तब ये लोग कह रहे थे कि अफजल गुरु निर्दोष है और उसे फंसाया गया है. वर्ष 2000 से अब तक हमारे देश में 67 हजार आतकंवादी हमले हो चुके हैं और इन हमलों में कभी इस्लाम के नाम मन्दिरों को निशाना बनाया गया, कभी बाजारों और रेलवे स्टेशन पर विस्फोट किए गए और जेहाद के नाम पर बेगुनाहों को मारा गया.

इस्लामिक कट्टरपंथ को नहीं बनाया मुद्दा

वर्ष 2008 में मुम्बई में जो 26/11 के हमले हुए थे, उनमें 166 लोग मारे गए थे. लेकिन इसके बावजूद हमारे देश के लोगों ने आतंकवादियों और इस्लामिक कट्टरपंथियों के खिलाफ कोई विरोध प्रदर्शन नहीं किया. बल्कि ये लोग उस समय भी तत्कालीन सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे और हमारे देश के लोगों ने उस समय के गृह मंत्री शिवराज पाटिल का इस्तीफा करा दिया था. ये लोग इस्तीफे से ही खुश हो गए थे. इससे पता चलता है कि, हमने कभी इस्लामिक कट्टरपंथ को मुद्दा बनाया ही नहीं और ना ही इसका विरोध किया.

जब मुम्बई हमलों के दोषी आमिर अजमल कसाब को फांसी हुई थी तब भी बहुत हंगामा हुआ था. उस समय हमारे देश के मानव अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस पर सवाल उठाए थे. इसी तरह आपको याद होगा वर्ष 2012 में अकबरुद्दीन ओवैसी ने एक नफरत से भरा हुआ भाषण दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत में मुसलमान 25 करोड़ हैं, हिन्दू 100 करोड़ हैं. 15 मिनट के लिए पुलिस हटा लो तो हम बता देंगे, किसमें हिम्मत है और कौन ताक़तवर है? इस भाषण के ठीक एक महीने बाद अकबरुद्दीन ओवैसी की गिरफ्तारी हो गई थी. यानी कानून ने तब अपना काम किया था. लेकिन उस समय भी हमारे देश के 100 करोड़ हिन्दू अकबरुद्दीन ओवैसी की गिरफ्तारी के लिए सड़कों पर नहीं उतरे थे और इन्होंने इस तरह से असहनशील होकर पुलिस पर पत्थर नहीं बरसाए थे, जैसा कि आज एक खास धर्म के लोगों ने किया.

हाल ही में जब देश के अलग-अलग राज्यों में रामनवमी और हनुमान जयंती के मौके पर दंगे हुए थे और इन दंगों में हिन्दू श्रद्धालुओं को निशाना बनाया गया था, तब भी हमारे देश के लोगों ने इस तरह से कभी विरोध प्रदर्शन नहीं किए. इससे पता चलता है कि हिन्दू समुदाय के ज्यादातर लोग आज भी कानून व्यवस्था को मानने वाले हैं, जबकि एक खास धर्म के लोग ऐसे मुद्दों पर असहनशील हो जाते हैं.

हिन्दू मानते हैं देश का कानून

दिल्ली के जहांगीरपुरी में 16 अप्रैल को हनुमान जयंती के दौरान जो हिंसा हुई थी, उस मामले में दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने चौंकाने वाला खुलासा किया है. पुलिस ने बताया है कि ये हिंसा सुनियोजित थी और इसकी तैयारी 10 अप्रैल को ही कर ली थी. इसके लिए एक खास धर्म के लोगों ने हनुमान जयंती से पहले अपनी घरों की छतों पर पत्थर और कांच की खाली बोतलें इकट्ठा करके रख हुई थीं और जब हनुमान जयंती के मौके पर इस इलाके से शोभा यात्रा निकाली गई तो इन्हीं घरों की छतों से पत्थर और बोतलें फेंकी गई थीं. इस मामले में पुलिस द्वारा 2300 से ज्यादा मोबाइल Videos और CCTV फुटेज का अध्ययन किया गया है, जिनसे ये पता चलता है कि हनुमान जयंती पर दंगे भड़काने की साजिश कोई संयोग नहीं था बल्कि इसके पीछे धार्मिक कट्टरता थी. ये सबकुछ साजिश के तहत किया गया था. लेकिन क्या ये सब जानने के बाद आज हमारे देश के हिन्दू इस तरह से सड़कों पर उतर विरोध प्रदर्शन करेंगे. वो ऐसा कभी नहीं करेंगे क्योंकि हिन्दू आज भी कानून व्यवस्था को मानने वाले हैं.

पूरी दुनिया में इस्लाम धर्म के ठेकेदारों ने लोगों को मानसिक रूप से इस तरह सैनिटाइज कर दिया है कि अब इस्लाम धर्म के अपमान पर किसी की हत्या भी कर दी जाए तो उसकी आलोचना नहीं होती. बल्कि इस तरह की हत्याओं को सही ठहराया जाता है और लोग भी कहते हैं कि, क्या तुम्हें पता नहीं है कि पैगम्बर मोहम्मद साहब का अपमान करने पर इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग कितने आहत हो जाते हैं और वो तो हत्या भी कर सकते हैं. यानी लोगों ने एक खास समुदाय की इस असहनशीलता को स्वीकार कर लिया है और इसकी वजह से ऐसे मुद्दों पर जब हिंसा होता है, हत्याएं होती हैं तो उन्हें जायज बताया जाता है, जबकि दूसरे धर्मों में ऐसा नहीं है.

हत्या को जायज ठहराने की मानसिकता

आपको याद होगा, वर्ष 2015 में जब फ्रांस की एक मैग्जीन Charlie Hebdo में पैगम्बर मोहम्मद साहब के कुछ कार्टून प्रकाशित हुए थे तो आतंकवादियों ने इस Magazine के दफ्तर में घुस कर 12 पत्रकारों की हत्या कर दी थी. इस घटना पर तब मुस्लिम देशों का वैसा रुख नहीं था, जैसा इस मुद्दे पर भारत को लेकर है. उस समय इस्लामिक कट्टरपंथियों ने पूरी दुनिया को यही संदेश दिया था कि अगर किसी ने पैगम्बर मोहम्मद साहब का अपमान किया तो उनकी हत्या कर दी जाएगी और इस हत्या को गलत नहीं माना जाएगा.

इसी तरह वर्ष 2020 में जब फ्रांस के एक स्कूल में Samuel Patty नाम के एक टीचर ने अपनी क्लास में पैगम्बर मोहम्मद साहब के कुछ कार्टून दिखा दिए थे तो आतंकवादियों ने उनकी भी गला काट कर हत्या कर दी थी और इस हत्या पर भी तब मुस्लिम देश चुप रहे थे, अपना समर्थन दिया था. कुल मिला कर कहें तो आज पूरी दुनिया को मानसिक रूप से ये बात मानने के लिए मजबूर कर दिया गया है कि अगर किसी ने पैगम्बर मोहम्मब साहब का अपमान किया तो उसकी हत्या कर दी जाएगी. इस हत्या को सभी रूपों में जायज माना जाएगा और अब ये लोग नुपूर शर्मा को भी ऐसी ही सजा देने की मांग कर रहे हैं. 

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