एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस क्या है, इसे रोकने के लिए WHO और जानवरों की संस्थाओं ने क्यों मिलाया हाथ?
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एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस क्या है, इसे रोकने के लिए WHO और जानवरों की संस्थाओं ने क्यों मिलाया हाथ?

Antimicrobial Resistance: एंटीबायोटिक दवाओं का बेअसर होना बड़ी समस्या ना बने, इसके लिए WHO ने कुछ उपाय सुझाए हैं. Antimicrobial दवाओं का इस्तेमाल जिम्मेदारी के साथ किया जाए.

एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस क्या है, इसे रोकने के लिए WHO और जानवरों की संस्थाओं ने क्यों मिलाया हाथ?

Antibiotic Resistance: जब बैक्टीरिया, वायरस फंगस या कुछ कीटाणुओं पर दवाओं का असर होना बंद हो जाए तो उसे Antimicrobial Resistance (AMR) या एंटीबायोटिक रेज़िस्टेंस कहा जाता है. इस वजह से कई बीमारियों का इलाज करना मुश्किल हो रहा है. यहां तक कि कई बीमारियों के इलाज में डॉक्टर लाचार हो जाते हैं. केवल इंसान ही नहीं, जानवर और पेड़ पौधों तक के लिए Antimicrobial Resistance (AMR) एंटीबायोटिक रेज़िस्टेंस चुनौती बनता जा रहा है. 2019 में 50 लाख लोग Antimicrobial Resistance (AMR)की वजह से मारे गए थे जिसमें से 13 लाख लोग केवल बैक्टीरियल रेज़िस्टेंस के शिकार हुए थे.  

WHO ने सुझाए उपाय

एंटीबायोटिक दवाओं का बेअसर होना बड़ी समस्या ना बने, इसके लिए WHO ने कुछ उपाय सुझाए हैं. Antimicrobial दवाओं का इस्तेमाल जिम्मेदारी के साथ किया जाए. अस्पतालों और दूसरी health care facilities, फार्म्स और फूड इंडस्ट्री में इंफेक्शन कम करने के तरीके बढ़ाए जाएं. साफ पानी, सैनिटेशन और साफ सफाई पर ज़ोर दिया जाए. खाद्य फसलें और दूसरे खाने के उत्पादन में साफ सफाई बरती जाए. 2030 तक खेतों, पोल्ट्री फॉर्म्स, फसलों और जानवरों के क्षेत्र से एंटीमाइक्रोबियल दवाओं और केमिकल्स के इस्तेमाल को 50% तक कम किए जाने की योजना है.  

बैक्टीरिया दवाओं पर भारी पड़ रहे

WHO इस वक्त एंटीमाइक्रोबियल जागरुकता अभियान चला रहा है दुनिया इस वक्त 1928 से पहले की हालत में है, जब एंटीबायोटिक दवाओं का अविष्कार नहीं हुआ था. फिर पेंसिलिन नाम की पहली दवा ईजाद हुई और कई बीमारियां इसी दवा के असर से जादुई तरीके से ठीक होने लगी. एंटीबायोटिक दवाओं का ये जादू ऐसा चढ़ा कि ये दवाएं डॉक्टर हर बीमारी में खिलाने लगे और फिर मरीज़ खुद ही खाने लगे. लेकिन अब चुनिंदा एंटीबायोटिक दवाएं हैं और बीमारी के हज़ारों ताकतवर बैक्टीरिया – दवाओं पर भारी पड़ रहे हैं.   

भारत में स्वास्थ्य पर कम खर्च

हाल ही में Lancet Planetary Health की एक स्टडी में ये पाया गया था कि भारत में स्वास्थ्य पर कम खर्च होना एंटीबायोटिक दवाओं के बेअसर होने की बड़ी वजह है. देश के छोटे शहरों में बने स्वास्थ्य केंद्रो पर डॉक्टरों का नदारद रहना, जो डॉक्टर मौजूद हैं उन्हें इस बारे में जागरुकता की कमी कि किस मामले में एंटीबायोटिक दवा देनी है और कौन सी एंटीबायोटिक दवा देनी है..... ये ऐसी वजहें हैं जिन्हें एंटीबायोटिक दवाओं के काम न करने की बड़ी वजहें माना गया है.  

अमेरिका में एंटीबायोटिक को लेकर सख्ती

जिस तेजी से एग्रीकल्चर, पोल्ट्री यानी सब्जियों और जानवरों में पैदावार बढ़ाने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल बढ़ रहा है - वहां से मुर्गी, बकरी, यहां तक कि गाय भैंस के दूध के जरिए भी इंसानों तक बिना जरुरत के एंटीबायोटिक दवाएं पहुंच रही हैं. एक अनुमान के मुताबिक एंटीबायोटिक दवाओं का 70 फीसदी इस्तेमाल फार्मिंग में हो रहा है और 30 फीसदी इंसानों में. अमेरिका जैसे विकसित देशों में कृषि में एंटीबायोटिक का इस्तेमाल बंद कर दिया गया है. अमेरिका में सिस्टम एंटीबायोटिक दवाओं पर इतनी नज़र रखता है कि कोई डॉक्टर एंटीबायोटिक दवा लिखता है तो उसे वजह बतानी होती है, कि वो ये दवा क्यों लिख रहा है. ऐसे में डॉक्टर सोच समझकर ही इस वंडर ड्रग को लिखता है. यानी अगर हमें जान बचानी है तो सरकार को सिस्टम को सख्ती से लागू करना होगा, खेती में एंटीबायोटिक पर लगाम लगानी होगी और हमें खुद का डॉक्टर बनने की आदत बदलनी होगी. 

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