UP Nagar Nikay Chunav: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) की लखनऊ बेंच ने बिना अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण के राज्य में नगर निकाय चुनाव कराने का आदेश दिया है.
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High Court on OBC Reservation: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) की लखनऊ बेंच ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार की नगर निकाय चुनाव संबंधी मसौदा अधिसूचना को रद्द कर दिया. इसके साथ ही कोर्ट ने राज्य में नगर निकाय चुनाव (UP Nagar Nikay Chunav) बिना अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण के कराने का आदेश दिया है. हाईकोर्ट के एक फैसले ने देश की सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (BJP) के कई सालों की मेहनत को खतरे में डाल दिया है और अब उस पर समाजवादी पार्टी (SP) से लेकर बहुजन समाज पार्टी (BSP)की नजर है.
क्या है पूरा विवाद और कैसे हुई शुरुआत?
उत्तर प्रदेश सरकार ने इस महीने की शुरुआत में त्रिस्तरीय नगर निकाय चुनाव (Nagar Nikay Chunav) में 17 नगर निगमों के मेयर्स, 200 नगर पालिका परिषदों के अध्यक्षों और 545 नगर पंचायतों के लिए आरक्षित सीटों की अंतिम सूची जारी करते हुए सात दिनों के भीतर सुझाव/आपत्तियां मांगी थी. साथ ही कहा था कि सुझाव/आपत्तियां मिलने के दो दिन बाद अंतिम सूची जारी की जाएगी.
यूपी सरकार ने 5 दिसंबर के अपने मसौदे में नगर निगमों की चार महापौर सीट ओबीसी के लिए आरक्षित की थीं, जिसमें अलीगढ़ और मथुरा-वृंदावन ओबीसी महिलाओं के लिए और मेरठ एवं प्रयागराज ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित थे. दो सौ नगर पालिका परिषदों में अध्यक्ष पद पर पिछड़ा वर्ग के लिए कुल 54 सीट आरक्षित की गई थीं, जिसमें पिछड़ा वर्ग की महिला के लिए 18 सीट आरक्षित थीं. राज्य की 545 नगर पंचायतों में पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित की गईं 147 सीट में इस वर्ग की महिलाओं के लिए अध्यक्ष की 49 सीट आरक्षित की गई थीं.
यूपी सरकार के नोटिफिकेशन के बाद हाईकोर्ट में कई जनहित याचिका दायर की गई, जिसमें बताया गया कि यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से तय ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूले के बिना नोटिफिकेशन जारी किया है. इस पर यूपी सरकार ने हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखा और बताया कि 22 मार्च 1993 को आयोग बनाया गया था और 2017 में भी उसी के आधार पर निकाय चुनाव हुए थे. लेकिन, अदालत ने सरकार की दलली को खारिज कर दिया और आरक्षण वाला नोटिफिकेशन खारिज कर दिया. इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि सरकार कमीशन बनाकर ट्रिपल टेस्ट करते हुए ओबीसी को आरक्षण दे.
अब इसे संयोग माना जाए या फिर चूक, लेकिन बीजेपी के इस एक फैसले के सियासी मायने कई हैं. इसे ऐसे समझ सकते हैं कि बीजेपी को पहले सवर्ण और शहरी वोटर ज्यादा मत देते रहे. ओबीसी वोट पर पहले क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व रहा. वजह ये कि अलग अलग राज्यों में पिछड़े वर्ग की अलग अलग जातियों से ही कई क्षेत्रीय पार्टियां बनीं और नेता तैयार हुए. 2014 के बाद से वोट के इस गणित में बदलाव आया. चुनाव यूपी का हो या केंद्र का, पिछड़ा वोट बहुतायत में बीजेपी के पास एकमुश्त आने लगा. पिछड़े वोट पर बीजेपी विरोधियों की राजनीति ठांय ठांय फिस्स हो गई. लेकिन अब हाई कोर्ट के एक फैसले ने उस जाति को लेकर विपक्षी दलों के मन में उम्मीद जगा दी है जो पिछले कई सालों से बीजेपी को वोट कर रही है.
HC के फैसले से खतरे में BJP की सालों की मेहनत
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) की लखनऊ बेंच के एक फैसले ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सालों की मेहनत खतरे में पड़ गई है. शहरी और सवर्ण वोटर्स पर हमेशा से बीजेपी की पकड़ रही है, जबकि ओबीसी वोट बैंक क्षेत्रीय पार्टियों के पक्ष में रहा है. पिछले कुछ सालों में बीजेपी ने कड़ी मेहनत की और कुछ हद तक ओबीसी वोट को अपनी तरफ करने में सफल रही. लेकिन, अब हाईकोर्ट के फैसले के बाद विपक्षी पार्टियां एक बार फिर ओबीसी को अपने पक्ष में करने में जुट गई है.
(इनपुट- न्यूज एजेंसी भाषा)
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