UP Politics: क्या शिवपाल की पार्टी से चुनाव लड़ेंगा पश्चिमी यूपी का यह बाहुबली, नोएडा में एक साथ आए नजर
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UP Politics: क्या शिवपाल की पार्टी से चुनाव लड़ेंगा पश्चिमी यूपी का यह बाहुबली, नोएडा में एक साथ आए नजर

UP Politics: डीपी यादव वर्चस्व की सियासत का वो सिकंदर हैं, जो किसी जमाने में सरकार बनाने और गिराने तक का माद्दा रखता था. डीपी यादव की पूरी जिन्दगी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं है. 

UP Politics: क्या शिवपाल की पार्टी से चुनाव लड़ेंगा पश्चिमी यूपी का यह बाहुबली, नोएडा में एक साथ आए नजर

UP Politics: नोएडा में शनिवार को स्वतंत्रता सेनानी महाशय तेजपाल सिंह की मूर्ति का अनावरण किया गया. इस कार्यक्रम में प्रसपा के प्रमुख शिवपाल सिंह यादव भी शिरकत किए थे. कार्यक्रम के दौरान शिवपाल यादव और डीपी यादव एक साथ बैठे हुए नजर आए. दोनों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं. इसको लेकर तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का माहौल गरमा गया है. ऐसा माना जा रहा है कि शिवपाल और डीपी यादव राजनीतिक गठजोड़ कर सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो अखिलेश की MY (मुस्लिम+यादव) समीकरण को मजबूत करने की रणनीति में इनकी जोड़ी बाधक बन सकती है. 

नोएडा सेक्टर 73 स्थित सर्फाबाद के रहने की मूर्ति का अनावरण के बाद शिवपाल यादव ने कहा कि महाशय तेजपाल सिंह जी का जीवन पीढ़ियों को सदैव सेवा और सदाचार की प्रेरणा देता रहेगा.पूर्व सांसद डीपी यादव ने कहा, यह उनकी सोच, दूरदृष्टि और संघर्षों का ही परिणाम है कि आज हमारे क्षेत्र की लड़कियां पढ़ाई से लेकर खेल-कूद में देश-प्रदेश में अपना नाम रोशन कर रही हैं और क्षेत्र का गौरव बढ़ा रही हैं. इस कार्यक्रम के दौरान शिवपाल और डीपी यादव एक साथ बैठे हुए दिखे. 

कौन हैं डीपी यादव? 
डीपी यादव वर्चस्व की सियासत का वो सिकंदर हैं, जो किसी जमाने में सरकार बनाने और गिराने तक का माद्दा रखता था. डीपी यादव की पूरी जिन्दगी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं.  एक दूधवाले से अपराध और सियासत के शिखर तक पहुंचने वाले डीपी यादव और उसका परिवार एक जमाने में अखबारों और टीवी चैनलों की सुर्खियों में रह चुका है. 

बिसरख से चुना गया ब्लॉक प्रमुख
अस्सी के दशक में कांग्रेस के बलराम सिंह यादव ने डीपी यादव को कांग्रेस पिछड़ा वर्ग का गाजियाबाद का जिलाध्यक्ष बना दिया जिसके बाद उसका राजनीतिक सफर चल पड़ा. डीपी यादव ने गाजियाबाद के नवयुग मार्केट में कार्यालय खोला और उसी वक्त महेन्द्र सिंह भाटी के सम्पर्क में आया. राजनीतिक करियर में पहली बार वो बिसरख से ब्लॉक प्रमुख चुना गया.मुलायम सिंह यादव ने जब समाजवादी पार्टी का गठन किया उस वक्त उन्हें पैसे वाले लोगों की जरूरत थी और डीपी यादव को बड़ा मंच चाहिए था. इसलिए दोनों का मिलन आसानी से हो गया. डीपी ने कांग्रेस छोड़ समाजवादी पार्टी का दामन थामा और बुलंदशहर से समाजवादी पार्टी का टिकट हासिल कर लिया, धनबल के दम पर वो चुनाव जीता साथ ही मुलायम सिंह के मंत्रिमंडल का हिस्सा भी बन गया.हालांकि बाद में मुलायम सिंह से डीपी यादव के रिश्तों में खटास पैदा हो गई. डीपी यादव ने मुलायम सिंह के खिलाफ चुनाव भी लड़ा लेकिन हार गया. इतना ही नहीं रामगोपाल यादव के खिलाफ भी इसने चुनावी खम ठोंका लेकिन हार गया.

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बनाई खुद की पार्टी 
डीपी यादव के सियासी सफरनामें का अगर इतिहास देखा जाए तो हर पार्टी ने उसे पहले अपनाया और फिर ठुकरा दिया. जिसके बाद उसने अपनी खुद की पार्टी तक बना ली. ये और बात है कि खुद की पार्टी ने उसे उतनी कामयाबी नहीं दी जितना उसने दूसरी पार्टियों में रहकर पाई थी. डीपी के राजनीतिक सफर की बात करें तो 1993 में बुलंदशहर से सपा का विधायक बना इतना ही नहीं इस बीच वो सपा का महासचिव भी रहा और मंत्री भी. 1996 में बीएसपी प्रत्याशी के रुप में 1996 में संभल से लोकसभा चुनाव जीता.1998 में निर्दलिय प्रत्याशी के रुप में राज्यसभा का सफर तय किया.

2004 में बीजेपी का साथ मिला, राज्यसभा सांसद भी बना, लेकिन बाद में बीजेपी ने पार्टी से निकाल दिया. 2007 में खुद की पार्टी राष्ट्रीय परिवर्तन दल बनाया, दो सदस्यों ने विधानसभा चुनाव भी जीता जिसमें एक वो खुद और दूसरा उसकी पत्नी थी. हांलाकि 2011 में चुनाव खर्च का ब्यौरा ना देने पर चुनाव आयोग ने उसकी पत्नी की सदस्यता रद्द कर दी. 2009 में बीएसपी के टिकट पर बदायूं से चुनाव लड़ा मगर हार गया. 2012 में समाजवादी पार्टी में शामिल होने के लिए हाथ पैर मारे मगर अखिलेश यादव की जिद के चलते सपा की सदस्यता नहीं मिली.

साल 2014  के चुनाव में भी डीपी यादव ने संभल से किस्मत आजमाई मगर हार गया.हालांकि वो तब ज्यादा सुर्खियों में आया जब उसने अक्टूबर 2014 में अमित शाह के साथ मंच शेयर किया. जिस पर हंगामा मच गया.ये और बात है कि उसके बाद बीजेपी ने उससे कन्नी काट ली.डीपी यादव की कहानियां अनगिनत हैं, राजनीतिक रसूख और वर्चस्व के किस्से भी कम नहीं. दर्जनों मुकदमों का आरोपी होने के बावजूद डीपी यादव की आज भी तूती बोलती है. पश्चिमी यूपी में उसके राजनीतिक दबदबे को देखते हुए शिवपाल सिंह यादव खुद की पार्टी का भविष्य देख रहे हैं. अगर आगामी लोकसभा चुनाव से पहले दोनों का गठजोड़ हो जाता है तो पश्चिमी यूपी में अखिलेश यादव को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. 

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