इरशाद और शमशाद की कहानी: कानपुर से पहुंचे बाबा बर्फानी के पास, भक्‍तों को दे रहे सेवा
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इरशाद और शमशाद की कहानी: कानपुर से पहुंचे बाबा बर्फानी के पास, भक्‍तों को दे रहे सेवा

Kanpur Muslim Brothers help Amarnath Yatri: कानपुर के इरशाद और शमशाद की दिलचस्प कहानी. सांप्रदायिक सौहार्द का बड़ा उदाहरण हैं दोनों भाई. पढ़ें खबर-

इरशाद और शमशाद की कहानी: कानपुर से पहुंचे बाबा बर्फानी के पास, भक्‍तों को दे रहे सेवा

कानपुर: एक तरफ देश में 'सिर कलम' गैंग दहशत फैलाने का काम कर रहा है, तो वहीं कई लोग सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल बने हुए हैं. कानपुर के रहने वाले दो मुस्लिम भाई इरशाद और शमशाद अमरनाथ यात्रा में जाने वाले भक्तों की सेवा कर रहे हैं. दोनों भाई लोडर चलाने का काम करते हैं. वह खुद शिव सेवक समिति के पास पहुंच गए और बाबा बर्फानी के दर्शन करने वालों की सेवा करने की बात कही. 

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शिव सेवक समिति के साथ पहुंचे बालटाल
लंगर के सामान और पांच ई-रिक्शा लेकर समिति के सदस्यों के साथ दोनों भाई बालटाल पहुंच गए और अब वहीं रुक कर भक्तों की सेवा कर रहे हैं. गौरतलब है कि कानपुर की शिव सेवक समिति के सदस्य हर साल अमरनाथ यात्रा में सेवा के लिए बालटाल जाते हैं. समिति के लोग अपने साथ लंगर का सामान भी ले जाते हैं. इस बार भक्तों को लाने ले जाने के लिए पांच ई रिक्शा भी वहां भेजे गए हैं. 

समिति के महासचिव से अमरनाथ जाने की इच्छा जताई
शिव सेवक समिति के महासचिव शीलू वर्मा ने बताया कि लंगर का सामान भेजने के लिए वह ड्राइवर की तलाश कर रहे थे. तभी लोडर चलाने वाले इरशाद खुद उनके पास आए और अमरनाथ जाने की इच्छा जताई. साथ ही उसका भाई शमशाद लोडर से सामान लेकर अमरनाथ गया और किराया भी उतना ही लिया जितना लागत लगी. वहां पहुंचने के बाद दोनों भाइयों ने वापस लौटने के बजाय, सदस्यों के साथ वहां सेवा करने की ठान ली. 

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ई-रिक्शा चलाकर सेवा कर रहे दोनों भाई
दोनों ने अमरनाथ के दर्शन किए और उसके बाद श्रद्धालुओं की सेवा में जुट गए. उनकी सेवा को देखते हुए श्राइन बोर्ड ने सेवादार का कार्ड भी जारी कर दिया है. दोनों भाई वहां पर भेजे गए ई रिक्शा चला रहे हैं, जो भक्तों को बरांडी मार्ग से ढाई किलोमीटर तक ले जाते हैं. दोनों रोजाना करीब 180 बुजुर्गों, दिव्यांगों को रोज सहारा देते हैं. 

बाबा बर्फानी के दर्शन करना चाहते थे इरशाद और शमशाद
दोनों भाइयों का कहना है कि उन्होंने बाबा बर्फानी के बारे में बहुत दिनों से सुन रखा था, जिसके बाद उन्होंने बाबा के दर्शन करने का फैसला किया. सामान ले जाने के बहाने उन्हें यह मौका मिल गया. यहां आकर उन्हें लगा कि उन्हें लोगों की सेवा करनी चाहिए. इसलिए वह सेवा में जुट गए. दोनों भाई मस्जिद में नमाज पढ़ते हैं, तो मंदिरों के सामने माथा भी टेकते हैं.

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