Pauri Garhwal: मई की बर्फबारी वरदान या अभिशाप!, हिमालयी जड़ी बूटियों को लेकर वैज्ञानिकों की चेतावनी
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Pauri Garhwal: मई की बर्फबारी वरदान या अभिशाप!, हिमालयी जड़ी बूटियों को लेकर वैज्ञानिकों की चेतावनी

Pauri Garhwal: उत्तराखंड अपनी जैव विविधता के लिए जाना जाता है. यहां पाई  जाने वाली जड़ी बूटियां कई असाध्य रोगों को ठीक करती हैं. लेकिन अब उन पर विलुप्त होने का खतरा है. 

Uttarakhand Snowfall

कमल पिमोली/पौड़ी गढ़वाल : हिमालय अपनी सुंदरता के साथ यहां पाये जाने वाले जड़ी बूटियों के लिए भी जाना जाता है. हिमालय में कई ऐसी जड़ी बूटियां पाई जाती है जो असाध्य रोगों के लिए कारगर साबित होती है, लेकिन अब इन जड़ी बूटियों का अस्तित्व खतरे में है. इसके पीछे ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से असमय हो रही बर्फबारी और तापमान में वृद्धि बड़ी वजह है.

हिमालय औषधीय गुणों से भरपूर जड़ी बूटियों का भंडार है, लेकिन कुछ समय से यहां हो रहे जलवायु परिवर्तन का असर इन जड़ी बूटियों पर देखने को मिल रहा है. इस साल बेमौसम बरसात व बर्फबारी का असर इन किमती जड़ी बूटियों पर भी देखने को मिल रहा है. उच्च हिमालयी क्षेत्रों मे मई के महीनें में हो रही बर्फबारी को वैज्ञानिक औषधीय पौधों के लिए खतरे का संकेत मान रहे हैं. हिमालय में हो रहे मौसम परिवर्तन से यहां उगने वाली बेशकीमती जड़ी बूटि चोरू, जटामासी, कुटकी, अतीश, चिराइता, कूट, भूतकेशी समेत कई ऐसी जड़ी बूटियां हैं, जिनका प्रयोग व्यवसायिक रूप में किया जाता है और अब इनका अस्तित्व संकट में है. 

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उच्च हिमालयी पर्वतीय शोध संस्थान, गढ़वाल विश्वविद्यालय के उच्च हिमालयी पर्वतीय शोध संस्थान के निदेशक  प्रो0 एमसी नौटियाल के मुताबिक ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से जड़ी बुटियों के कुछ हिस्से में औषधीय तत्व या तो बहुत अधिक बढ़ जाता है या बहुत कम हो जाता है. उन्होंने बताया कि जड़ी बुटियों पर ग्लोबल वॉर्मिंग के असर को देखने के लिए ओपन टॉप चैंबर लगाया गया, जिसके जरिए यह पता लगाया जा रहा है कि  सीओ2 लेवल बढ़ने उनकी ग्रोथ कैसी रहती है. उनका कहना है कि सीओ2 लेवल बढ़ने से कई वनस्पतियां कमजोर हो रही हैं.
दरअसल हिमालय और अल्पाइन एरिया का पर्यावरण बहुत संवेदनशील होता है. इसलिए ग्लोबल वॉर्मिंग का सबसे अधिक असर इस क्षेत्र पर पड़ता है. 

वैज्ञानिक डॉ विजयकांत पुरोहित का कहना है कि मई महीने में बारिश और ओलावृष्टि से हिमालय में पाई जाने वाली कई पादप प्रजातियों को उचित तापमान नहीं मिल पा रहा है. उन्हें इस मौसम में लगभग 15 डिग्री सेल्शियस का तापमान मिलना चाहिए. इससे इनमें फूल आने की प्रक्रिया कमजोर हो रही है. वैज्ञानिकों के मुताबिक ''इस बार बर्फबारी, बारिश व ओलावृष्टी से अप्रैल व मई में यहां तापमान काफी कम हो गया है जिससे इन औषधीय पौधों की ग्रोथ धीमी गति से हो रही है. अगर इन जड़ी बूटियों की ग्रोथ धीमी रहेगी तो बीज बनने की प्रक्रिया भी कम हो जाएगी, जिससे इन औषधीय जड़ी बूटियों पर संकट गहरा सकता है. इसका सीधा नुकसान इन जड़ी बूटियों की काश्तकारी करने वाले किसानों को तो होगा ही साथ ही हिमालय की एक बहुमूल्य संपदा भी विलुप्ती की कगार पर पहुंच जाएगी.''

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