Mukhtar Ansari: वर्ष 2005 में तत्कालीन बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या ने मुख्तार अंसारी के आपराधिक इतिहास का रुख बदलकर रख दिया था...उस दिन कृष्णानंद पर 500 राउंड फायरिंग हुई... कृष्णानंद को गोलियों से छलनी कर दिया गया...जानें क्यों की गई थी कृष्णानंद राय की हत्या
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Mukhtar Ansari: क्या अतीक गैंग के राजू पाल हत्याकांड को देखकर ही मुख्तार गैंग ने कृष्णानंद राय हत्याकांड (Krishnanand Rai Hatyakand) को उसी अंदाज में अंजाम दिया था? एक ही साल में हुए यूपी के दो सबसे बड़े माफ़िया अतीक अहमद और मुख़्तार अंसारी के गैंग के हाथों हुए दो हत्याकांड को देखकर भी कुछ ऐसा ही लगता है.अगर बसपा विधायक राजू पाल हत्याकांड और BJP विधायक कृष्णानंद राय की हत्या को बारीकी से देखा जाए तो दोनों घटनाओं में काफी समानताएं नजर आती हैं.
दोनों की हत्या एक ही साल में हुईं. जनवरी साल 2005 में राजू पाल की हत्या की गई,तो वहीं नवंबर 2005 में कृष्णानंद राय की हत्या हुई. सबसे बड़ी समानता थी जब इन दोनों की हत्या हुई तो दोनों विधायक थे. इन दोनों हत्याकांड के पीछे साजिश और संदेश एक जैसा था. 29 अप्रैल को बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय हत्याकांड में गाजीपुर एमपीएमएलए कोर्ट अपना फैसला सुनाने वाली है.
वजूद को लेकर थी दुश्मनी
राजू पाल हत्याकांड के जरिए माफिया अतीक अहमद ये संदेश देना चाहता था कि प्रयागराज में उसके वजूद को कोई चुनौती नहीं दे सकता. ठीक इसी तरह प्रयागराज से क़रीब 200 किलोमीटर दूर गाज़ीपुर में मुख़्तार अंसारी गैंग ने कृष्णानंद राय की सरेआम मर्डर किया था. कहा जाता है कि गाज़ीपुर में बीजेपी नेता कृष्णानंद राय ने आर्थिक मोर्चे पर मुख़्तार अंसारी के वजूद को चैलेंज किया. मुख़्तार गैंग ने कृष्णानंद राय की हत्या के जरिये ये बता दिया था कि गाज़ीपुर से वाराणसी तक उसके वजूद को चुनौती देने वाले का हश्र क्या होगा.
पढ़ें मुख्तार अंसारी से कृष्णानंद राय की दुश्मनी और फिर हत्या की कहानी?
मुख्तार अंसारी की ये कहानी बदले और रसूख की है. कृष्णानंद राय के हत्याकांड ने मुख्तार को अपराध की दुनिया में ऊंचे पद पर पहु्ंचा दिया. ये घटना 29 नवंबर वर्ष 2005 की है. गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद से तत्कालीन भाजपा विधायक कृष्णानंद राय समेत सात लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.उस समय कृष्णानंद पर 500 राउंड फायरिंग हुई थी. इस हत्याकांड में एके-47 का इस्तेमाल हुआ था. घटना वाले दिन कृष्णानंद राय पड़ोस के सियारी गांव में जाने की तैयारी कर रहे थे. एक कार्यक्रम में उनको चीफ गेस्ट बनाया गया था. कृष्णानंद राय ने बुलेटप्रूफ गाड़ी घर में ही छोड़ दी थी. अपनी दूसरी गाड़ी से घर से निकले. ये भूल उनकी जिंदगी पर भारी पड़ गई.
करीब 500 राउंड फायरिंग, एक-47 से बरसाई गई थीं गोलियां
इस पूरी घटना पर कोर्ट में कृष्णानंद राय के भाई ने बयान दिया था. उन्होंने अदालत को बताया था कि टूर्नामेंट का उद्घाटन करने के बाद कृष्णानंद राय शाम करीब चार बजे अपने गनर निर्भय उपाध्याय, ड्राइवर मुन्ना राय, रमेश राय, श्याम शंकर राय, अखिलेश राय और शेषनाथ सिंह के साथ कनुवान गांव की ओर जा रहे थे. कृष्णानंद राय भाई के अनुसार, कृष्णानंद राय की गाड़ी से पीछे वह खुद दूसरे लोगों के साथ अपनी गाड़ी में पीछे चल रहे थे. बसनियां चट्टी गांव से डेढ़ किलोमीटर आगे जाने पर सिल्वर ग्रे कलर की SUV सामने से आई. उस गाड़ी में से 7-8 लोग बाहर निकले और दनादन गोलियां बरसाईं. AK-47 से गोलियों की बौछार की गई. इस घटना में विधायक समेत सात लोगों की हत्या हुई. करीब 500 राउंड फायरिंग हुई. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कृष्णानंद राय के शरीर से अकेले 67 गोलियां निकली थीं.ये घटना यूपी के इतिहास में सबसे ज्यादा सनसनीखेज राजनीतिक हत्याओं में दर्ज हो गई.
गैंगस्टर एक्ट के तहत अफजाल और मुख्तार अंसारी हैं आरोपी
पुलिस ने इस मामले में वर्ष 2007 में गैंगस्टर एक्ट के तहत अफजाल अंसारी, मुख्तार अंसारी और उनके बहनोई एजाजुल हक के खिलाफ केस दर्ज किया था. गाजीपुर एमपीएमएलए कोर्ट में इस केस पर 1 अप्रैल को बहस पूरी हुई. कोर्ट ने 15 अप्रैल का दिन फैसले के लिए नियत की. फिर मामले में फैसला सुनाने के लिए 29 अप्रैल की तारीख दी गई. यानी आज कोर्ट का फैसला दोनों भाइयों का राजनीतिक भविष्य भी तय करेगा.
क्यों था कृष्णानंद से खौफ?
गाजीपुर की मोहम्मदाबाद सीट जो साल 2002 तक हमेशा अंसारी परिवार के कब्ज़े में रहती थी, वहां मुख़्तार के भाई और पांच बार के विधायक अफ़ज़ाल अंसारी को कृष्णानंद ने 2002 के विधानसभा चुनाव में हरा दिया. इतना ही नहीं मुख़्तार को उसी की माफ़ियागीरी वाली ज़मीन पर कृष्णानंद राय ने धूल चटाकर रख दी थी. किसी और का वर्चस्व अंसारी बंधुओं को मंजूर नहीं था. इस हत्याकांड का संदेश साफ़ था कि मुख़्तार गैंग ने कृष्णानंद राय (Krishnanand Rai) की हत्या के जरिये ये बता दिया था कि गाज़ीपुर से वाराणसी तक उसके वजूद को चुनौती देने वाले का हश्र क्या होगा.
दोनों घटनाओं में दोनों माफ़िया के शूटर्स कुछ गोलियां मारकर भी मौके से भाग सकते थे. लेकिन, अतीक के गुर्गे राजू पाल को और मुख़्तार अंसारी के शूटर्स कृष्णानंद को किसी भी हालत में ज़िंदा नहीं छोड़ना चाहते थे. दोनों घटनाओं के बीच 10 महीने का फासला हो और भले ही दोनों घटनाएं अलग-अलग गैंग के शटूर्स ने की, लेकिन ये हत्याकांड बदले के जुनून में किया गया.
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