Niranjani Akhara: अक्सर पिढ़ाई करने के बाद सभी बेहतर जिंदगी की चाहत रखते हैं और तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ते हैं, लेकिन कई बार बड़ी-बड़ी डिग्रियां लेने के बाद लोगों का मोह भंग हो जाता है. निरंजनी अखाड़े में ऐसे कई साधु-संत हैं, जो बीटेक-एमटेक डिग्री धारक हैं. जानिए कौन हैं वो साधु-संत?
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Niranjani Akhara: 12 सालों के बाद प्रयागराज में महाकुंभ मेले का आयोजन होने जा रहा है. इसमें देश के प्रमुख अखाड़ों के साधु-संत शामिल होंगे. ऐसे में आज हम बात करेंगे उन साधु-संतों के बारे में, जिन्होंने बीटेक-एमटेक की डिग्री हासिल करने के बाद आध्यात्म की दुनिया में कदम रखा. या आप कह सकते हैं कि बड़ी डिग्रियां हासिल करने के बाद उनका सांसारिक दुनियां से मोह भंग हो गया और वे साधु-संत बन गए. इस लिस्ट में सबसे ज्यादा नाम निरंजनी अखाड़ा के साधु-संतों का है, ये अखाड़ा जूना अखाड़े के बाद सबसे ताकतवर माना जाता है.
70 फीसदी संयासी पढ़े-लिखे
निरंजनी अखाड़े में 70 फीसदी सन्यासी न सिर्फ धार्मिक जीवन में रत हैं, बल्कि डॉक्टर, इंजीनियर और प्रोफेसर जैसे हाई डिग्री धारी भी हैं. इस अखाड़े की जड़ें गहरी और व्यापक हैं, जो अब तक भारतीय संत परंपरा और संस्कृति को समृद्ध कर रहे हैं. इसका मुख्यालय मायापुर, हरिद्वार में है. निरंजनी अखाड़े में शामिल होने के नियम पहले काफी सख्त हुआ करते थे, लेकिन समय के साथ इनमें कुछ बदलाव आए हैं.
क्या है संयास लेने के नियम?
रिपोर्ट्स की मानें तो इस अखाड़े में माफिया या अपराधियों की कोई जगह नहीं है. सन्यासी बनने के लिए साधक को पहले पांच साल तक ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है. फिर जब वह अपने गुरु की पूरी तरह सेवा करता है और शुद्धता के साथ दीक्षा प्राप्त करता है, तभी उसे नागा दीक्षा दी जाती है. यह दीक्षा सिर्फ उन्हीं को दी जाती है, जिन्होंने गुरु सेवा में पूर्ण समर्पण दिखाया हो.
ये हैं पढ़े-लिखे साधु-संत?
जानकारी के मुताबिक, निरंजनी अखाड़ा अपने पढ़े-लिखे साधु-संतों के लिए भी फेमस है. यहां के कई संत बड़ी-बड़ी डिग्रियां हासिल कर चुके हैं. जिन्होंने डिग्रियां हासिल की है, उनमें ओंकार गिरि (इंजीनियर), महंत रामरत्न गिरी (दिल्ली विकास प्राधिकरण, पूर्व सहायक अभियंता), डॉ. राजेश पुरी (पीएचडी), महंत रामानंद पुरी (अधिवक्ता) का नाम शामिल हैं. इस अखाड़े के सभी को सन्यास की दीक्षा योग्यता के आधार पर ही दी जाती है. इस अखाड़े में संस्कृत के विद्वान और आचार्य भी हैं, जो सनातन धर्म को और मजबूत बनाने की राह पर चल रहे हैं.
हजारों साल पुराना है इतिहास
रिपोर्ट्स की मानें तो सन् 904 में विक्रम संवत 960 कार्तिक कृष्णपक्ष दिन सोमवार को निरंजनी अखाड़ा की स्थापना गुजरात की मांडवी नाम की जगह पर हुई थी. इस अखाड़े की नींव महंत अजि गिरि, मौनी सरजूनाथ गिरि, पुरुषोत्तम गिरि, हरिशंकर गिरि, रणछोर भारती, जगजीवन भारती, अर्जुन भारती, जगन्नाथ पुरी, स्वभाव पुरी, कैलाश पुरी, खड्ग नारायण पुरी, स्वभाव पुरी ने मिलकर रखी. तीर्थराज प्रयाग में इस अखाड़े का मुख्यालय है. वहीं, अखाड़े के आश्रम उज्जैन, हरिद्वार, त्रयंबकेश्वर व उदयपुर में हैं.
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