Ganadhipa Sankashti Chaturthi 2023 Upay: मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी कहते हैं. इस दिन गणपति को प्रसन्न करने के लिए इस स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं.
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Sankashti Chaturthi 2023: आज संकष्टी चतुर्थी व्रत है. हिंदू पंचांग के मुताबिक, प्रत्येक माह में दो चतुर्थी पड़ती हैं. एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में. कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है. जबकि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है. मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है. माना जाता है कि इस दिन गजानन की पूजा करने और व्रत रखने से उनका विशेष आशीर्वाद मिलता है. यह दिन बप्पा को प्रसन्न करने के लिए सबसे उत्तम माना जाता है. संकष्टी चतुर्थी की पूजा के दौरान गणेश मंत्र स्तोत्र और संकटनाशन स्तोत्र जरूर पढ़ना चाहिए. ऐसा करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि व खुशहाली बनी रहती है. इसके साथ ही विपदाएं नहीं आती हैं.
गणेश मंत्र स्तोत्र
शृणु पुत्र महाभाग योगशान्तिप्रदायकम् ।
येन त्वं सर्वयोगज्ञो ब्रह्मभूतो भविष्यसि ॥
चित्तं पञ्चविधं प्रोक्तं क्षिप्तं मूढं महामते ।
विक्षिप्तं च तथैकाग्रं निरोधं भूमिसज्ञकम् ॥
तत्र प्रकाशकर्ताऽसौ चिन्तामणिहृदि स्थितः ।
साक्षाद्योगेश योगेज्ञैर्लभ्यते भूमिनाशनात् ॥
चित्तरूपा स्वयंबुद्धिश्चित्तभ्रान्तिकरी मता ।
सिद्धिर्माया गणेशस्य मायाखेलक उच्यते ॥
अतो गणेशमन्त्रेण गणेशं भज पुत्रक ।
तेन त्वं ब्रह्मभूतस्तं शन्तियोगमवापस्यसि ॥
इत्युक्त्वा गणराजस्य ददौ मन्त्रं तथारुणिः ।
एकाक्षरं स्वपुत्राय ध्यनादिभ्यः सुसंयुतम् ॥
तेन तं साधयति स्म गणेशं सर्वसिद्धिदम् ।
क्रमेण शान्तिमापन्नो योगिवन्द्योऽभवत्ततः ॥
संकटनाशन स्तोत्र
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् ।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायुः कामार्थसिद्धये ।।
प्रथमं वक्रतुडं च एकदन्तं द्वितीयकम् ।
तृतीयं कृष्णपिंगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ।।
लम्बोदरं पंचमं च षष्ठ विकटमेव च ।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम् ।।
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम् ।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम् ।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः ।
न च विध्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं परम् ।।
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।
जपेग्दणपतिस्तोत्रं षड् भिर्मासैः फ़लं लभेत् ।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः ।।
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत् ।
तस्य विद्या भवेत् सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ।।
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