Jitiya Vrat Aarti & Mantra: आज जितिया व्रत है. मान्यता है कि इस व्रत को रखने से संतान की उम्र बढ़ती है. साथ ही स्वयं नारायण उनकी रक्षा करते हैं. इस व्रत की पूजा के दौरान आरती जरूर करनी चाहिए. इससे व्रत का दोगुना फल मिलता है.
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Jitiya Vrat Aarti & Mantra: आज जीवित्पुत्रिका व्रत है. हिन्दू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्ष आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यह व्रत रखा जाता है. सनातन धर्म में जीवित्पुत्रिका व्रत का विशेष महत्व है. इसे जीतिया, जितिया और जिउतिया व्रत भी कहा जाता है. यह व्रत मुख्य रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में रखा जाता है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही संतान तेज और प्रखर बुद्धि के होती हैं. यह भी माना जाता है कि व्रत रखने वाली महिला के संतान की रक्षा स्वयं श्री विष्णु जी करते हैं. अगर आप भी अपने और संतान के लिए जगत के पालनहार भगवान विष्णु की कृपा पाना चाहते हैं, तो जितिया व्रत की पूजा के समय नीचे दिए मंत्रों का जाप और आरती जरूर करें. इससे नारायण भगवान प्रसन्न होते हैं.
जितिया व्रत शुभ मुहूर्त (Jitiya Vrat Shubh Muhurat)
अष्टमी तिथि 06 अक्टूबर 2023 को सुबह 06 बजकर 34 मिनट पर प्रारंभ होगी, जो 07 अक्टूबर को सुबह 08 बजकर 08 मिनट पर समाप्त होगी.
जितिया व्रत आरती (Jitiya Vrat Aarti)
ओम जय कश्यप नन्दन, प्रभु जय अदिति नन्दन।
त्रिभुवन तिमिर निकंदन, भक्त हृदय चन्दन॥ ओम जय कश्यप...
सप्त अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी।
दु:खहारी, सुखकारी, मानस मलहारी॥ ओम जय कश्यप....
सुर मुनि भूसुर वन्दित, विमल विभवशाली।
अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥ ओम जय कश्यप...
सकल सुकर्म प्रसविता, सविता शुभकारी।
विश्व विलोचन मोचन, भव-बंधन भारी॥ ओम जय कश्यप...
कमल समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।
सेवत सहज हरत अति, मनसिज संतापा॥ ओम जय कश्यप...
नेत्र व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा हारी।
वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी॥ ओम जय कश्यप...
सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।
हर अज्ञान मोह सब, तत्वज्ञान दीजै॥ ओम जय कश्यप...
ओम जय कश्यप नन्दन, प्रभु जय अदिति नन्दन।
इन मंत्रों का करें जाप
1. कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।
2. सर्व मंगल मांग्लयै शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते ।।
3. वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् ।
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ।।
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