संभल की जामा मस्जिद के खंभे हिंदू मंदिर जैसे, पृथ्वीराज चौहान का भी जिक्र...150 साल पुरानी ASI रिपोर्ट जरूर पढ़ें
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संभल की जामा मस्जिद के खंभे हिंदू मंदिर जैसे, पृथ्वीराज चौहान का भी जिक्र...150 साल पुरानी ASI रिपोर्ट जरूर पढ़ें

Sambhal Jama Masjid Controversy: क्या संभल की जामा मस्जिद ही हरिहर मंदिर है? इसके सपोर्ट में ASI की 150 साल पुरानी रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें बताया गया है कि मंदिर के खंभे से जब प्लास्टर हटाया गया तो उनके नीचे हिंदू मंदिरों जैसे लाल खंभे निकले.  ASI की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मस्जिद के गुंबद का जीर्णोद्धार हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने करवाया था.

संभल की जामा मस्जिद के खंभे हिंदू मंदिर जैसे, पृथ्वीराज चौहान का भी जिक्र...150 साल पुरानी ASI रिपोर्ट जरूर पढ़ें

Sambal Jama Masjid History: उत्तर प्रदेश के संभल जिले में स्थित शाही जामा मस्जिद का इतिहास एक विवादास्पद मुद्दा बन चुका है. अयोध्या, मथुरा और काशी की तरह, इस मस्जिद को लेकर भी हिन्दू पक्ष का दावा है कि यह मस्जिद किसी प्राचीन हिन्दू मंदिर को तोड़कर बनाई गई. हिन्दू पक्ष का यह भी कहना है कि जैसे बाबरी मस्जिद में हिन्दू धार्मिक स्थल को तोड़ा गया था, वैसे ही यहां भी मंदिर को नष्ट करके मस्जिद बनाई गई। इस मुद्दे पर कोर्ट में सुनवाई चल रही है, और दोनों पक्ष अपने-अपने तर्क पेश कर रहे हैं.

ऐतिहासिक और पुरातात्विक सर्वेक्षण
पुरातत्व विभाग की एक पुरानी रिपोर्ट ने इस मुद्दे पर चौंकाने वाला खुलासा किया है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने 1879 में अपनी एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें 1875 में संभल की जामा मस्जिद का सर्वेक्षण किया गया था. 

रिपोर्ट में क्या था ?
ASI की रिपोर्ट में यह दावा किया गया था कि मस्जिद के अंदर और बाहर लगे खंभे किसी पुराने हिन्दू मंदिर के हैं, जिन्हें प्लास्टर करके छिपा दिया गया था. रिपोर्ट के पन्ने 25 और 26 में यह उल्लेख किया गया कि सर्वेक्षण के दौरान, एक खंभे से प्लास्टर उखड़ने पर लाल रंग का खंभा दिखाई दिया, जो कि हिन्दू मंदिरों में पाए जाने वाले खंभों से मेल खाता था. 

ASI के अधिकारियों का यह भी कहना था कि मस्जिद के गुंबद का जीर्णोद्धार हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने करवाया था, और मस्जिद के हिन्दू खंभे मुस्लिम खंभों से अलग थे. इस सर्वेक्षण ने एक और महत्वपूर्ण पहलू की ओर इशारा किया—मस्जिद के भीतर एक शिलालेख पाया गया, जिसमें यह लिखा था कि मस्जिद का निर्माण 933 हिजरी में हुआ और इसे हिन्दू मंदिर को तोड़कर मस्जिद में परिवर्तित किया गया था. 

मीर हिंदू बेग का उल्लेख
इस शिलालेख में जिस व्यक्ति का नाम लिया गया, वह मीर हिंदू बेग था, जो बाबर का दरबारी था. हिन्दू पक्ष का कहना है कि मीर हिंदू बेग ने बाबर के आदेश पर यह काम किया था. बाबरनामा में भी इस घटना का जिक्र किया गया है. हरिशंकर जैन, जो हिन्दू पक्ष के प्रमुख याचिकर्ता हैं, ने अपनी याचिका में बाबरनामा का हवाला दिया. उनका कहना है कि बाबरनामा के अंग्रेजी अनुवाद में यह साफ लिखा गया है कि मीर हिंदू बेग ने भगवान विष्णु के हिन्दू मंदिर को तोड़कर उसे मस्जिद में बदल दिया. 

ऐतिहासिक सबूत और विशेषज्ञों की राय
भारत के प्रसिद्ध इतिहासकार और भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के निदेशक डॉ. ओमजी उपाध्याय ने भी इस मामले पर अपनी राय दी. उनका कहना है कि इतिहास में कई उदाहरण हैं, जहां इस्लामी आक्रांताओं ने हिन्दू मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनवाईं. उनका कहना था कि यह सब कुछ दिखावे के लिए किया गया था, ताकि हिन्दू आबादी को यह संदेश दिया जा सके कि वे अब गुलाम हैं. डॉ. उपाध्याय के अनुसार, ऐसे 1800 से ज्यादा मस्जिदों का इतिहास है, जो कभी हिन्दू मंदिर थे.

मुस्लिम पक्ष का विरोध
हालांकि, मुस्लिम पक्ष इस दावे को नकारता है. संभल की जामा मस्जिद के अध्यक्ष मोहम्मद जफर का कहना है कि यह मस्जिद किसी हिन्दू मंदिर को तोड़कर नहीं बनाई गई. उनका दावा है कि मस्जिद में हिन्दू मंदिर के कोई भी निशान नहीं हैं और यह पूरी तरह से एक अलग निर्माण है. इसके अलावा, उन्होंने यह भी आश्चर्य जताया कि कैसे कोर्ट में इस मामले में सुनवाई के साथ ही सर्वे का आदेश दिया गया और उसी रात ही सर्वे शुरू हो गया. 

कोर्ट कमिश्नर का सर्वे
संभल की जामा मस्जिद के मामले में कोर्ट ने कमिश्नर सर्वे का आदेश दिया है, जो मस्जिद में जाकर वहां का सर्वे करेगा और रिपोर्ट कोर्ट में पेश करेगा. इस सर्वे का पहला चरण मंगलवार को हुआ था, और आने वाले दिनों में टीम फिर से मस्जिद में जाकर काम पूरा करेगी. इस सर्वे का उद्देश्य मामले के दोनों पक्षों के तर्कों की जांच करना और सही तथ्यों तक पहुंचना है.

संभल की जामा मस्जिद का विवाद एक बहुत ही संवेदनशील मामला है, जिसमें ऐतिहासिक, धार्मिक और कानूनी पहलू जुड़े हुए हैं. इस मामले में अभी और भी साक्ष्य सामने आ सकते हैं, जिनसे यह साफ हो सकेगा कि यह मस्जिद वाकई में एक हिन्दू मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी या नहीं. कोर्ट का निर्णय इस विवाद को समाप्त करने में अहम भूमिका निभाएगा, लेकिन इस मुद्दे पर देशभर में विचार विमर्श जारी रहेगा. 

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