कुंभ की पहचान कहे जाने वाले नागा साधुओं की उत्पत्ति कैसे हुई?
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कुंभ की पहचान कहे जाने वाले नागा साधुओं की उत्पत्ति कैसे हुई?

Naga Sadhu History: नागा साधु वे साधु होते हैं जो कि नग्न रहते हैं और युद्ध कला में निपुण होते हैं. ये हिंदू धर्म के अलग-अलग अखाड़ों से संबंध रखते हैं.

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History of Naga Sadhus: प्रयागराज में अगले साल होने वाले कुंभ मेले को लेकर तैयारियां चल रही हैं. पवित्र संगम में स्नान करने के लिए कुंभ मेले में करोड़ों भक्त, श्रद्धालु, साधु संत और यात्री आएंगे. कुंभ के समय पर जो दृश्य उत्पन्न होते हैं उनके लिए शब्द कम पड़ जाते हैं ऐसा अद्भुत नजारा होता है. कुंभ मेले की सबसे बड़ी शोभा होते हैं नागा साधु. आम आदमी के लिए कुंभ मेला नागा साधुओं का एक जुटान है क्योंकि यही एक मौका है जब आम आदमी भी नागाओं के जीवन को समझने और देखने का अवसर पाता है. कुंभ मेले में नागा साधु अपनी युद्ध कला का प्रदर्शन करते हैं. आइए आपको आज इन्हीं नागुओं के जीवन से जुड़ी रोचक बात बताते हैं.

नागा शब्द : नागा साधुओं के बारे में जानना है तो नागा शब्द का पीछा करना होगा. नागा शब्द प्राचीन समय से भारतीय समाज में प्रयोग में है. यहां नागवंश और नागा जाति का उल्लेख मिलता है. देश में तो नागा नाम से एक राज्य भी है. इतिहास को जानेंगे तो पता चलेगा कि देश में नागवंशी, नागा, दसनामी संप्रदाय काफी समय से रहते आ रहे हैं. नाथ संप्रदाय दसनामी संप्रदाय से जुड़ा हुआ है. भगवान शिव को मानने वाले शैव पंथ में ही विभिन्न मत और संप्रदाय हैं. नागा देश की एक प्रमुख जनजाति भी है. नंगा पर्वत श्रेणी भी है. नागा शब्द संस्कृत से निकला है. जिसका अर्थ है पर्वत. पर्वत पर रहने वालों को नागा कहा जाता है. कच्छारी भाषा में नागा का अर्थ है युवा बहादुर लड़ाकू व्यक्ति. वहीं नागा का एक अर्थ नग्न रहने से भी . हालांकि यह बस एक अर्थ है. जरूरी नहीं नागा का अर्थ नग्न रहना ही हो.

सिंधुघाटी सभ्यता से संबंध- अगर नागा संतों के इतिहास की बात की जाए तो प्राचीन समय से साधु संतों का समागम होता रहा है. समय के साथ अखाड़े बने. अखाड़ों के बनने में जगतगुरु शंकाराचार्य की भूमिका थी. अगर आप सिंधु घाटी सभ्यता को पढ़ेंगे तो समझ आएगा कि जटाधारी तपस्वी लोग उस समय में भी थे. शिव की उपासना तब भी होती थी.

जानकार बताते हैं कि दिगंबर जैन साधु और नागा साधुओं का इतिहास एक जैसा रहा है. मान्यता है कि नाग, नाथ और नागा पंरपरा गुरु दत्तात्रेय की परंपरा की शाखाएं हैं. नवनाथ की पंरपरा को सिद्धों की बहुत ही अहम परंपरा माना जाता है. एक मान्यता ये भी है कि महर्षि वेद व्यास ने वनवासी संन्यासी परंपरा की शुरूआत की थी. ऋषि शुकदेव के बाद ये परंपरा और आगे बढ़ी.

नागाओं ने लड़े युद्ध- आपको बता दें कि इतिहास में कई युद्ध नागा साधुओं द्वारा लड़े गए थे. अहमद शाह अब्दाली के खिलाफ नागाओं ने युद्ध किया था.

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