Sambhal Survey: संभल में अब मिली 250 साल पुरानी बावड़ी... कल्कि मंदिर पर रोज नया खुलासा, जानिए रहस्य
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Sambhal Survey: संभल में अब मिली 250 साल पुरानी बावड़ी... कल्कि मंदिर पर रोज नया खुलासा, जानिए रहस्य

Sambhal Survey: वैसे तो संभल का इतिहास काफी पुराना और समृद्ध है. इसका महाभारत काल से भी गहरा नाता है. यहां एक प्राचीन मंदिर मिला, जिसके बाद जैसे-जैसे खुदाई हो रही है, वैसे-वैसे हर रोज नए-नए खुलासे हो रहे हैं. हर दिन नई-नई चीजें भी मिल रही हैं, जो अपने आप में कई रहस्यों को समेटे हुए हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कि नया अपडेट क्या है?

Sambhal Survey

Sambhal Survey, सुनील सिंह: यूपी का संभल एक ऐतिहासिक शहर है. इसका इतिहास काफी समृद्ध और गौरवशाली है. महाभारत काल से लेकर आज तक कई रहस्यों को अपने आप में समेटे हुए है. हाल ही में इस शहर में एक प्राचीन मंदिर मिला. जिसके बाद जैसे-जैसे मामले ने तूल पकड़ा तो नित नए खुलासे होते गए. बीते कई दिनों से यहां एएसआई की चार सदस्यीय टीम सर्वे कर रही है और हर राज से पर्दा उठाने की कोशिश में जुटी हुई है. इस बीच चंदौसी में सैकड़ों साल पुरानी बावड़ी मिला, जो लोगों के लिए रहस्य लोक बना हुआ है. बीते दो दिन से लगातार चल रही खुदाई में कुंए में बंकर नुमा कमरों के मिलने से इस बावड़ी का रहस्य और भी गहरा गया है, लेकिन जी मीडिया की टीम रहस्य लोक बने बावड़ी के राज तक पहुंच गई है.

क्या है बावड़ी का रहस्य?
दरअसल, संभल जिले के चंदौसी में मुस्लिम बाहुल्य इलाके लक्ष्मणगंज में बीते शुक्रवार को बावड़ी मिला, जो मुरादाबाद जनपद के राजा के सहसपुर बिलारी राजघराने के राजपरिवार की रियासत के लश्करों के रुकने का पड़ाव स्थल था. लोगों के लिए पहेली बने बावड़ी के रहस्य तक पहुंचने की खोज में जी मीडिया की टीम निकली. हमारी टीम ने चंदौसी में इस बावड़ी का निर्माण कराने वाले राजपरिवार के राजवंश राजा चंद्र विजय सिंह को खोज निकाला. राजा चंद्रविजय सिंह ने बावड़ी कुंए के रहस्य से पर्दा उठाते हुए बताया कि चंदौसी में इस बावड़ी का निर्माण उनके राजघराने के पूर्वज राजा कृष्ण कुमार सिंह ने लगभग 250 साल पहले कराया था. उन्होंने इसका निर्माण अपनी रियासत के लश्करों के पड़ाव स्थल के तौर पर कराया था.

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क्या बोले राजा चंद्र विजय सिंह?
राजा चंद्र विजय सिंह की मानें तो उनके सहसपुर बिलारी राजघराने की रियासत मुरादाबाद से बदायूं तक थी. उनकी इस रियासत में दोनों जिलों के लगभग 484 गांव आते थे. चंदौसी नगर मुरादाबाद से बदायूं तक फैली उनकी रियासत के बीच में पड़ता था. उन दिनों जब उनकी रियासत के लश्कर बदायूं के किले से मुरादाबाद जिले के सहसपुर के लिए कूच करते थे, तो उन दिनों लश्कर घोड़े, हाथी और ऊंटों के साथ चलते थे. जिन्हें रास्ते में आराम करने के लिए पड़ाव की जरूरत होती थी. इसलिए चंदौसी में लश्करों के पड़ाव के लिए इस बावड़ी का निर्माण कराया गया था. 

गहरे कुएं का राज
इस बावड़ी में लगभग 300 फिट गहरे कुएं का निर्माण कराकर कुंए के अंदर तीन तल पर कमरे बनवाए गए थे. कमरों का निर्माण इस तरह किया गया था कि लश्कर को सर्दी-गर्मी में पूरी तरह से आराम मिल सके और लश्कर सुरक्षित भी रहें. राजा चंद्र विजय सिंह ने बावड़ी कुंए की खुदाई कराकर प्राचीन स्वरूप में लाने की कोशिश के लिए प्रशासन का आभार जताया है. राजा चंद्र विजय सिंह ने प्रशासन से बावड़ी कुंए को पर्यटन स्थल के तौर पर संरक्षित किए जाने की मांग की है. ताकि आने वाली पीढ़ियां अपनी प्राचीन धरोहर से रूबरू हो सके.

रहस्यमयी इमारतों की याद
जी मीडिया की टीम बावड़ी कुंए का राज जानने के लिए सहसपुर घराने से ताल्लुक रखने वाली रानी सुरेन्द्र वाला की पौत्री शिप्रा गिरा से भी बातचीत की. इस बातचीत के दौरान उन्होंने भी यही बताया कि बावड़ी कुंआ पुराने दौर में लोगों के ठहरने का एक पड़ाव स्थल था. जिसका निर्माण उनके बुजुर्गो ने बेहद खूबसूरती के साथ कराया था. फिलहाल उन्होंने बावड़ी कुएं को प्राचीन स्वरूप में लाने की कोशिश किए जाने पर खुशी जाहिर की है. पुरातत्व विद अतुल मिश्र ने इस बात की पुष्टि की है कि बावड़ी कुंआ काफी प्राचीन है, इसमें बना गलियारा और बंकर नुमा कमरे चंद्रकांता संतति उपन्यास की रहस्यमयी इमारतों की याद दिलाता है.

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