Independence Day Speical: महात्मा गांधी से इतर भगत सिंह जैसे क्रांतिवीरों का मानना था कि अंग्रेज निर्दयी और दमनकारी है इसलिए उनसे लड़कर ही आजादी हासिल की जा सकती है और इसके लिए चाहिये थे हथियार, और हथियारों के लिए पैसे. इसी क्रम में क्रांतिवीरों के एक दल ने 9 अगस्त 1925 को काकोरी में एक ट्रेन की लूट को अंजाम दिया, जिससे अंग्रेजी हुकूमत बौखला गई थी.
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Kakori Incident of freedom Fight: 1920 का साल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नया मोड़ लेकर आया. महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया, जिसने देश भर में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जनआक्रोश को उभारा. आंदोलन ने कुछ ही सालों में जोर पकड़ लिया, और इसके प्रभाव से ब्रिटिश सरकार की चूलें बुरी तरह हिल गईं. लेकिन 1922 में गोरखपुर के चौरी-चौरा में हुई हिंसक घटना ने सब कुछ बदल दिया. आंदोलनकारियों ने एक पुलिस थाने को आग के हवाले कर दिया, जिसमें 20 से ज्यादा पुलिसकर्मी मारे गए.
चौरी-चौरा कांड से बेहद आहत हुए बापू
गांधीजी, जो अहिंसा के पुजारी थे, इस घटना से बेहद आहत हुए और उन्होंने तत्काल प्रभाव से असहयोग आंदोलन वापस ले लिया. इस फैसले ने पूरे देश में निराशा की लहर दौड़ा दी. विशेषकर युवा क्रांतिकारियों के मनोबल को बहुत बड़ा धक्का पहुंचा. वे यह सोचने पर मजबूर हो गए कि केवल अहिंसा के मार्ग पर चलकर स्वतंत्रता प्राप्त करना संभव नहीं है.
हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना
निराशा के इस दौर में शचिन्द्रनाथ सान्याल ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) की स्थापना की. उनके साथ योगेशचंद्र चटर्जी, रामप्रसाद बिस्मिल और सचिन्द्रनाथ बक्शी जैसे समर्पित देशभक्त भी जुड़े. बाद में चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारी भी इस संगठन का हिस्सा बने. इन लोगों का मानना था कि अंग्रेजी हुकूमत से आजादी पाने के लिए हथियार उठाना अनिवार्य है.
जंग के लिए हथियारों की जरूरत
लेकिन हथियार खरीदने और क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए धन की जरूरत थी. प्रारंभ में HRA के सदस्यों ने डकैतियों के जरिए पैसे जुटाने का प्रयास किया, लेकिन इसमें निर्दोष लोगों की मृत्यु हो जाती थी और सरकार उन्हें चोर कहकर बदनाम करती थी. इसलिए उन्होंने फैसला किया कि अब डकैतियों के बजाय सरकारी खजाने को लूटेंगे.
काकोरी में ट्रेन रोककर सरकारी पैसे की लूट
9 अगस्त 1925 को सहारनपुर से लखनऊ जा रही एक ट्रेन को काकोरी स्टेशन पर रोकने की योजना बनाई गई. इस योजना को अंजाम देने के लिए 10 क्रांतिकारियों का एक दल तैयार किया गया. ट्रेन को रोककर उन्होंने गार्ड को बंदूक की नोक पर बंधक बनाया और खजाने को लूट लिया. इस लूट में क्रांतिकारियों के हाथ कुल 4,601 रुपए की रकम आई जो उस दौर में बहुत बड़ी रकम थी. साथ ही ऐसा पहली बार था कि क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के खजाने से इतनी बड़ी लूट को अंजाम दिया हो. इस घटना से अंग्रेजी हुकूमत बुरी तरह बौखला गई.
10 क्रांतिकारियों ने ट्रेन लूटी लेकिन 40 गिरफ्तार
यह घटना ब्रिटिश सरकार के लिए एक बड़ा झटका थी. तुरंत गिरफ्तारियों का सिलसिला शुरू हो गया. हालांकि इस घटना में केवल 10 लोग शामिल थे, लेकिन सरकार ने एक महीने के भीतर लगभग 40 लोगों को गिरफ्तार किया. 6 अप्रैल 1927 को कोर्ट का फैसला आया. रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी, और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई। कई अन्य लोगों को 14 साल की सजा मिली, जबकि दो लोगों को सरकारी गवाह बनने पर रिहा कर दिया गया.
चंद्रशेखर आजाद गिरफ्तारी से बचने में सफल रहे, लेकिन अंततः इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में शहीद हो गए. फांसी के फैसले के बाद देश में भारी विरोध हुआ, लेकिन अंग्रेजी सरकार ने किसी की एक न सुनी। 17 दिसंबर 927 को गोंडा जेल में राजेंद्र लाहिड़ी को फांसी पर चढ़ा दिया गया और इसके दो दिन बाद ही रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में फांसी दे दी गई. इसके अलावा अशफाक उल्ला खान को फैजाबाद जेल और रोशन सिंह को इलाहाबाद में फांसी दी गई.
क्रांतिकारियों की ये शहादत स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में आज भी अमर है.