Tabla maestro Zakir Hussain: तबले के उस्ताद जाकिर हुसैन 73 साल के थे. अमेरिका में इलाज चल रहा था और कुछ घंटे पहले वह अनंत यात्रा पर प्रस्थान कर गए. तबले पर उनके जादुई हाथों की थाप भले ही खामोश हो गई हो, पर वह हमेशा याद आएंगे. करोड़ों लोगों के दिलों में वह राज करेंगे.
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90 के दशक में जिनका बचपन बीता है उन्हें टीवी पर 'वाह उस्ताद वाह' वाला वो विज्ञापन जरूर याद होगा. हम बच्चों को तबले के मास्टर जाकिर हुसैन से रूबरू तो उस एड ने ही कराया था. तबले पर उमड़ती उनकी उंगलियां ऐसा लगता मानो मन के भीतर घुसकर तराने छेड़ रही हों. किसी को आता भले न हो, पर हर कोई तबले को समझने जरूर लगा था. थाप को सुनने लगा था. बड़े और थोड़े घुंघराले बालों वाले जाकिर साहब के चेहरे पर मुस्कान लोगों को उनका कायल बना देती. ये वो दौर था जब टीवी पर क्रिकेटर्स और फिल्मी सितारों का बोलबाला था. विज्ञापनों में वही दिखते थे लेकिन मास्टर जाकिर हुसैन जब आए तो लोगों को दीवाना बना गए.
शायद उनका जादू ही था कि मुझ जैसे लोग पढ़ाई करते समय ही तबला सीखने की असफल कोशिश करने लगे थे. प्रयाग संगीत समिति, सिविल लाइंस, प्रयागराज में कुछ दिन तबले पर दो उंगलियों की थाप (ता-धिक) सीखने के प्रयास में ही मैं समझ गया कि इसमें जितनी प्रतिबद्धता, धैर्य और समय चाहिए उतना अपने में नहीं है. बीच वाली उंगली भी चल पड़ती थी जो उठी रहनी चाहिए थी.
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आज सुबह जब उस्ताद साहब के निधन की खबर आई तो बिना वजह ताजमहल याद आने लगा. ऐसा लग रहा है कि दुनिया के इस अजूबे में अब संगीत का यह मास्टर भी समाहित हो गया है. जब भी हम ताज को करीब से निहारेंगे, मन के अंदर एक 'तुडुम' की आवाज बज उठेगी. शुक्रिया उस्ताद जाकिर हुसैन साहब, हमें तबला सुनना सिखाने के लिए. जो आपको देखते हुए सीखे उन्हें सिखाने के लिए भी. तबले की थाप के साथ आपका मुस्कुराना, दर्शकों को भीतर से प्रफुल्लित कर देता था. यह कितना था इसकी रेटिंग शब्दों में नहीं की जा सकती.
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आगे चलकर हम बच्चों ने आपको और करीब से जाना. आप मां सरस्वती के उपासक थे. भारतीय संस्कृति को विस्तार देने वाला वह रत्न अब खामोश भले ही हो गया हो लेकिन तबले से डमरू और शंखनाद की ध्वनि प्रस्फुटित करने की उनकी कला आने वाली पीढ़ियों के भी दिलों में अनुनाद करती रहेगी.
"तबला से डमरू और शंखनाद.."
ये ज़ाकिर हुसैन साहब की प्रतिभा के साथ-साथ उनकी भारतीय संस्कृति के प्रति अटूट श्रद्धा का भी परिचायक है॥ उनका आज जाना अखर गया। ज़ाकिर हुसैन जी माँ सरस्वती के परम भक्त थे। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें! #zakirhussain #Tabla… pic.twitter.com/fhgRqQYoN2
— Alok Kumar (@IasAlok) December 15, 2024
आज सोशल मीडिया लोगों की भावुक यादों और श्रद्धांजलि से पट गया है. वह इंसान ही ऐसे थे. देश-दुनिया में इतनी शोहरत के बावजूद उनके चेहरे पर कभी अहम का भाव नहीं दिखा. जिससे भी मिलते प्यार और स्नेह लोगों को उनका फैन बना देता. उन्हें संगीत नाटक अकादमी, ग्रैमी, पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण जैसे अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था.
सुप्रसिद्ध तबला वादक जाकिर हुसैन को उस्ताद यूं ही नहीं कहा जाता. वह जब भी लोगों से मिलते, देवालय जाते दोनों हाथों को जोड़कर झुककर प्रणाम करते थे. इतनी बड़ी हस्ती का यह भाव देख लोगों के दिलों के उनके लिए जगह और बढ़ जाया करती.
दिल ना जाने कब तक उदास रहने वाला है! आवाज़ ना जाने कब तक खामोश रहने वाली है!! अलविदा मेरे दोस्त।इस दुनिया से गए हो! यादों में सदियों तक रहने वाले हो! तुम भी… तुम्हारा हुनर भी… और तुम्हारी दिल की गहराइयों तक छू जाने वाली बच्चों जैसी मुस्कुराहट भी!!#ZakirHussain #Tabla… pic.twitter.com/QtNgwSUVuD
— Anupam Kher (@AnupamPKher) December 15, 2024
वह जब मंच पर होते तो लोगों के चेहरे पर अकारण ही मुस्कुराहट बिखरी होती. उनका शरीर ही जैसे पॉजिटिव एनर्जी का सोर्स बन जाता. कुछ साल पहले एक कार्यक्रम में जब दो मास्टर एक मंच पर आए थे और लोगों ने जो देखा, वो पल भुलाए नहीं भूलेगा. आज वो वीडियो फिर से याद आ रहा है.
Watch The Ultimate 'Jugalbandi' between Ustad Zakir Hussain and Master Blaster Sachin Tendulkar.#Music #Cricket #Fusion pic.twitter.com/m7R4HSTvI0
— Cricketopia (@CricketopiaCom) January 11, 2017
ऐसी न जानें कितनी यादें और वीडियोज हैं जो हमेशा रहेंगे और तबले के साथ वाह ताज, उस्ताद साहब की याद को अमर रखेगा. अलविदा जाकिर हुसैन साहब.
प्रसिद्ध तबला वादक उस्ताद अल्ला रक्खा के बेटे जाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को हुआ था. उन्हें उनकी पीढ़ी के सबसे महान तबला वादकों में माना जाता है. उनके परिवार में उनकी पत्नी एंटोनिया मिनेकोला और उनकी बेटियां अनीशा कुरैशी और इसाबेला कुरैशी हैं. परिवार की ओर से जारी बयान में कहा गया है, ‘वह दुनिया भर के अनगिनत संगीत प्रेमियों द्वारा संजोई गई एक असाधारण विरासत छोड़ गए हैं, जिसका प्रभाव आने वाली पीढ़ियों तक बना रहेगा.’ हुसैन ने मात्र 7 साल की आयु से ही तबले पर हाथ आजमाना शुरू कर दिया था और आगे चलकर उन्होंने पंडित रविशंकर, अली अकबर खान और शिवकुमार शर्मा जैसे दिग्गजों सहित भारत के लगभग सभी प्रतिष्ठित संगीत कलाकारों के साथ काम किया.