Idana Mata Temple: खुले चौक में देवी करती है अग्नि स्नान, देखने वालों की होती है मनोकामना पूरी, आखिर क्या है चमत्कार
Advertisement
trendingNow1/india/rajasthan/rajasthan1368030

Idana Mata Temple: खुले चौक में देवी करती है अग्नि स्नान, देखने वालों की होती है मनोकामना पूरी, आखिर क्या है चमत्कार

राजस्थान के उदयपुर में ईडाणा माता करती है अग्नि स्नान, नवरात्री पर रहती है विशेष भीड़ .यहां राजराजेश्वरी खुले चौक में स्थित है. इस मंदिर का नामकरण ईडाणा उदयपुर मेवल की महारानी के नाम से प्रसिद्ध है.

 ईडाणा मां मंदिर में अग्नि स्‍नान करती प्रतिमा

Idana Mata Temple:  नवरात्रि का त्योहार शुरू हो चुका है माता के भक्त माँ के आने का वर्षभर इन्जार करते है. मां आती है दरबार सजता है, जयकारे लगते है, डांडिया की धूम होती है चारों तरफ बस खुशियों का माहौल रहता है. आपकी  खुशियों में चार चांद लगाने के लिए हम आपको कथा सुनाते हैं राजस्थान के उन चमत्कारी देवी मंदिरों की जहां साक्षात् मां दुर्गा देती है अपने भक्तों को दर्शन और हर लेती है उनके सारे दुःख, जहां दर्शन मात्र से भक्तों की हर मनोकामना पूरी हो जाती है. उन्हीं दुर्गा मंदिर में से एक है उदयपुर के पास स्थित ईडाणा माता का मंदिर जहां देवी करती है अग्नि स्नान.

चमत्‍कारिक देवी का मंदिर

हमारे देश में ऐसे-ऐसे चमत्‍कारिक मंदिर हैं, जहां के चमत्‍कार देख आंखों पर यकिन कर पाना मुश्किल है. आज हम आपको ईडाणा माता ऐसे ही एक चमत्‍कारिक मंदिर के बारे में बता रहे हैं, जहां देवी अग्नि स्‍नान करती हैं. यह चमत्‍कारिक मंदिर उदयपुर में स्थित है और इसे ईडाणा माता मंदिर के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर की महिमा बहुत ही अनोखी है. यह उदयपुर शहर से 65 किलोमीटर दूर कुराबड़-बम्बोरा मार्ग पर श्री शक्ति पीठ ईडाणा माता का प्राचीन मंदिर अरावली की पहाड़ियों में स्थित है. सबसे खास बात इस मंदिर की यह है की इसके ऊपर कोई छत नहीं है और यहां राजराजेश्वरी खुले चौक में स्थित है. इस मंदिर का नामकरण ईडाणा उदयपुर मेवल की महारानी के नाम से प्रसिद्ध है.

fallback

अग्नि स्‍नान करती हैं मां

यहां प्रसन्न होने पर ईडाणा मां अग्नि से स्‍नान करती है. स्‍थानीय लोग बताते हैं कि यहां महीने में कम से कम 2-3 बार स्‍वत: ही अग्नि प्रज्‍जवलित हो जाती है और खास बात यह की इस अग्नि में माता की मूर्ति को छोड़कर उनका पूरा श्रृंगार और चुनरी सब कुछ स्‍वाहा हो जाता है. इस अग्नि स्‍नान को देखने के लिए भक्‍तों का मेला लगा रहता है, लेकिन इस अग्नि के स्वयं प्रज्‍जवलित होने का रहस्य आज तक कोई पता नहीं लगा पाया कि आखिर ये अग्नि कैसे जलती है और क्यों देवी प्रतिमा को छोड़कर सब स्‍वाहा हो जाता है. मान्यता है कि सदियों पहले पांडव यहां से गुजरे थे, जिन्होंने भी माता की पूजा अर्चना की थी. साथ ही एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी की जयसमंद झील के निर्माण के समय राजा जयसिंह भी यहां आए थे और देवी पूजा की थी. मंदिर के कर्मचारी बताते हैं कि ईडाणा माता की मूर्ति के आगे अगरबत्ती नहीं चढ़ाई जाती है, क्योंकि लोगों को यह भ्रम ना हो कि अगरबत्ती की चिंगारी से आग लगती, यहां एक अखंड ज्योति जलती है, लेकिन वह कांच के बॉक्स के अंदर रखी रहती है. माता को भक्त चूनरी या श्रृंगार के सामान चढ़ाते हैं, जो उनकी प्रतिमा के पीछे ही रखते है रहती. चढ़ावें का भार ज्यादा होने और मां के प्रसन्न होने पर मां की मूर्ति अग्नि स्नान कर करती है और फिर 1-2 दिन में आग शांत भी हो जाती है.

ज्वालादेवी का रूप धारण करती है ईडाणा​ मां

इस मंदिर में भक्तों की खास आस्था है क्योंकि ईडाणा मां न केवल अग्नि से स्‍नान करती है बल्कि यहां मान्यता है कि लकवे से ग्रसित रोगी मां के दरबार में आकर ठीक हो जाते हैं. ईडाणा माता मंदिर में अग्नि स्नान का पता लगते ही आसपास के गांवों से बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ लग जाती है. मंदिर के पुजारी के अनुसार ईडाणा माता पर अधिक भार होने पर माता स्वयं ज्वालादेवी का रूप धारण कर लेती हैं, ये अग्नि धीरे-धीरे विकराल रूप धारण करती है और इसकी लपटें 10 से 20 फीट तक पहुंच जाती है.

अग्नि से स्‍नान से पहले पुजारी उतार लेते हैं आभूषण

अग्नि से स्‍नान से पहले जैसे ही हल्की-हल्की आग लगना शुरू होती है, उसी समय पुजारी माताजी के आभूषण उतार लेते हैं और अग्नि ठंडी होती है, तो फिर श्रृंगार वापस चढ़ा लिया जाता है. मंदिर में भक्तों की यह मान्यता भी है कि यह लकवा ग्रस्त रोगी बिल्कुल ठीक होकर जाते हैं साथ ही मंदिर का प्रसाद घर नहीं लेकर नहीं जाया जाता है, उसे मंदिर में ही बांट दिया जाता है. माताजी के अग्नि स्नान का कोई तय समय नहीं है, कभी माह में दो बार तो साल में 3-4 बार ऐसा होता है. 

यह है अग्नि की खास बात

इस चमत्‍कारिक अग्नि को अपनी आंखों से देख चुके लोग बताते हैं कि इस अग्नि कि खास बात यह है कि आज तक श्रृंगार के अलावा अग्नि से किसी और चीज को नुकसान नहीं पहुंचाया है, इसे देवी का स्‍नान माना जाता है.एक चुनर को छोड़ सब स्वाहा हो जाता है. इसी अग्नि स्नान के कारण यहां मां का मंदिर नहीं बन पाया और वे चौक में विराजती है. ऐसी मान्‍यता है कि जो भक्‍त इस अग्नि के दर्शन करते हैं, उनकी हर इच्‍छा पूर्ण होती है. यह अग्नि मां का आशीर्वाद है.

मनोकामना पूरी होने पर भक्‍त चढ़ाते हैं त्रिशूल 

यहां भक्त अपनी इच्छा पूरी होने पर त्रिशूल चढ़ाते आते हैं. यह मान्यता है कि जिन लोगों को संतान प्राप्ति नहीं होती वो दंपती यहां झूला चढ़ाने आते हैं. इस शक्ति पीठ की विशेष बात यह है कि यहां मां के दर्शन चौबीस घंटें खुले रहते है. सभी लकवा ग्रस्त रोगी रात्रि में मां की प्रतिमा के सामने स्थित चौक में आकर सोते है. दोनों नवरात्री यहां भक्तों की काफी भीड़ रहती है. 

ये भी पढ़ें : Navratri 2022 : नवरात्र से पहले नहीं किया ये काम तो नहीं मिलेगा 9 दिनों के व्रत का फल, पूजा रह जाएगी अधूरी

Trending news