जन्म के साथ ही इस बिमारी ने बनाया था निशाना, संकट में था मासूमों का जीवन, डॉक्टर्स ने बचाया
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जन्म के साथ ही इस बिमारी ने बनाया था निशाना, संकट में था मासूमों का जीवन, डॉक्टर्स ने बचाया

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स जोधपुर में हाल ही में "वेन ऑफ गैलन" नामक एक जटिल बीमारी से ग्रस्त दो बच्चों का सफल इलाज किया गया है. 

जन्म के साथ ही इस बिमारी ने बनाया था निशाना, संकट में था मासूमों का जीवन, डॉक्टर्स ने बचाया

Luni: अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स जोधपुर में हाल ही में "वेन ऑफ गैलन" नामक एक जटिल बीमारी से ग्रस्त दो बच्चों का सफल इलाज किया गया है. इलाज किए गए मरीज 7 और 9 महीने के शिशु हैं, जो जोधपुर और पाली जिले से आए थे , Vein of Galen Malformation (VOGM) एक प्रकार की आर्टिरियोवेनस मैलफॉर्मेशन है, जिसमें मस्तिष्क के भीतर धमनियां (arteries) सीधे मस्तिष्क के केंद्र में एक बहुत बड़ी नस (vein) से जुड़ती हैं जिसे गैलेन की नस कहा जाता है. यह रोग आमतौर पर गर्भावस्था (पदाइयश से पहले) के दौरान विकसित होता है और गर्भावस्था में अल्ट्रासाउंड के दौरान या जन्म के तुरंत बाद इसकी पहचान की जाती है.

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इस रोग से प्रभावित बच्चों को हार्ट फेल होना, दूध पीने में कठिनाई, वजन ना बढ़ना और सिर के आकार में तेजी से वृद्धि होना जैसी शिकायतें होती है. यह मस्तिष्क में रक्त के असामान्य प्रवाह के कारण होता है. इस स्थिति का उपचार मुख्य रूप से एंडोवस्कुलर रूट (इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी-सूक्ष्म विधि) के जरिए किया जाता है, जहां धमनी और गैलेन की खराब नसों के बीच असामान्य शंट को बंद किया जाता है. वहीं बिना इलाज के इस बीमारी में मृत्यु निश्चित है एवं ऑपरेशन के दौरान भी मौत का खतरा 15-20 फीसदी रहता है , अगर समय पर इलाज किया जाए तो बच्चे का मस्तिष्क नियमित रूप से विकसित होता है और वे सामान्य जीवन जीने में सक्षम होते हैं .

डॉक्टर्स का कहना था कि, यह दोनो केस काफी कठिन थे इसलिए पहले ऑपरेशन की रुपरेखा तैयार की गई जिसमे खराब नस तक पहुंचने के सभी तरीकों पर विचार किया गया. दोनों ऑपरेशन पूर्ण बेहोशी में लगभग 3 घंटों में पूरे किये गए. इस प्रकिया के बारे में  एम्स जोधपुर के निदेशक डॉ संजीव मिश्रा के अनुसार एम्स जोधपुर में मस्तिष्क की नसों के जटिल रोगों (न्यूरोवास्कुलर डिसऑर्डर ) का उन्नत उपचार संभव है ,ऑपरेशन करने वाली टीम में इंटरवेंशनल रेडियोलोजी टीम से डॉ पुष्पिंदर सिंह खेरा (रेडियोलॉजी विभागाध्यक्ष) , डॉ पवन कुमार गर्ग (सह - आचार्य, रेडियोलॉजी), डॉ सर्बेश तिवारी (सहायक आचार्य, रेडियोलॉजी) , डॉ तुषार सुव्रा घोष (सीनियर रेजिडेंट ) और डॉ अर्जुन लोकेश (सीनियर रेजिडेंट ) बाल विभाग से डॉ डेज़ी खेरा (अतिरिक्त प्रोफेसर, बाल गहन चिकित्सा प्रभारी,) और डॉ लोकेश सैनी (बाल न्यूरो विशेषज्ञ, सहायक आचार्य) इलाज में शामिल थे , एनेस्थीसिया टीम में डॉ प्रदीप भाटिया (प्रोफेसर और हेड, एनेस्थीसिया) एवं टीम शामिल थे .

फिलहाल ऑपरेशन करने के बाद दोनों बच्चों को एक हफ्ते के अंदर स्वस्थ होते ही छुट्टी दे दी जायेगी. गौरतलब है कि, राजस्थान में शिशुओं में की गई यह इस तरह की पहली सर्जरी है  , इससे पहले मरीजों को इलाज के लिए पीजीआई चंडीगढ़ या एम्स दिल्ली जाना पड़ता था .उल्लेखनीय है कि आयुष्मान भारत योजना के तहत इन बच्चों पूरा इलाज नि:शुल्क किया गया है.

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