झुंझुनूं जिले में पहली बार आजादी के महोत्सव में किसी स्वतंत्रता सेनानी का सानिध्य नहीं मिलेगा. क्योंकि आखिरी जीवित स्वतंत्रता सेनानी बुडाना के सेडूराम कृष्णियां का 6 मार्च को निधन हो गया था.
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Jhunjhunu: झुंझुनूं जिले में पहली बार आजादी के महोत्सव में किसी स्वतंत्रता सेनानी का सानिध्य नहीं मिलेगा. क्योंकि आखिरी जीवित स्वतंत्रता सेनानी बुडाना के सेडूराम कृष्णियां का 6 मार्च को निधन हो गया था. उनके निधन के बाद यह पहला आजादी उत्सव होगा, जो बिना स्वतंत्रता सेनानी के ही मनाया जाएगा.
उनसे पहले जिले के सभी स्वतंत्रता सेनानियों का निधन हो चुका, वे अंतिम थे. उनका 104 वर्ष की उम्र में गांव बुड़ाना में निधन हुआ था लेकिन सेडूराम के जीवन का संघर्ष सभी को प्रेरणा देता रहेगा, जब सेडूराम कृष्णियां फ्रांस की जेल में बंद थे तब सुभाषचन्द्र बोस उनसे जेल में मिलने के गए थे. बोस अंग्रेजों की गुलामी से बड़े व्यथित थे और वे भारत को आजाद कराने के लिए अंदर ही अंदर सेना तैयार कर रहे थे.
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बोस जेल में बंद भारतीय सैनिकों की हौसला अफजाई करते रहते थे. साथ ही उन्होंने कहा था कि जिनको देश से प्रेम है, वो मेरे साथ हो जाएं. भारतीय बंदियों के दिल में अंग्रेजी हुकूमत के जुल्मो-सितम के खिलाफ दबी चिंगारी को सुभाषचन्द्र बोस ने ही भड़काया था. ज्यादातर सैनिक नेताजी के साथ हो गए. बोस ने आजाद हिंद फौज बनाई. सेडूराम कृष्णियां भी उनकी फौज के एक सिपाही थे.
स्वतंत्रता सेनानी सेडूराम कृष्णियां के भतीजे ओमप्रकाश के मुताबिक वे नशे के खिलाफ थे. उन्होंने खुद कभी चाय नहीं पी. वे दूसरों को खासकर युवा पीढ़ी को नशे से दूर रहने की सीख देते थे. वे जब भी किसी स्कूल या कार्यक्रम में भाग लेते थे तो नशे जैसी बुराई को त्यागने का आह्वान करते थे. उनकी पौत्री जीया और पौत्र शुभम कहते हैं कि वे हमेशा घर पर आजादी की कहानियां सुनाते रहते थे. वे हमेशा देश के लिए आगे रहने की सीख देते थे. उनके पदचिह्नों पर चलकर पौत्र शुभम देश सेवा में जाने के लिए तैयारी में जुटा हुआ है.
इंदिरा गांधी ने दिया था ताम्रपत्र
सेडूराम की बहादुरी के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें ताम्र पत्र भेंट किया था. सैनिक बोर्ड के अधिकारियों ने घर आकर सौंपा था. सेडूराम 6 जून 1942 को कैद हुए. उसके बाद बेल्जियम, हालैंड, नार्वे, डेनमार्क सहित करीब दर्जभर यूरोपीय देशों की जेल में वे बंद रहे. 1944 उन्हें इटली की जेल से रिहा किया गया और टोरंटो बंदरगाह से समुद्री जहाज द्वारा बंबई और वहां से रेल द्वारा बहादुरगढ़ लाया गया.
यहां पर अंग्रेजों को पता चल गया था कि फौज में शामिल भारतीय ने विद्रोह कर दिया है, तो बहादुरगढ़ में अंग्रेजों का कैंप लगा हुआ था. आठ महीने के लिए उन्हें अंग्रेजों ने जेल में डाल दिया. 8 अगस्त 1945 को उन्हें रिहा कर दिया गया. इसके बाद भारत की आजादी के लिए आन्दोलन जारी रखे. जब भारत आजाद हुआ तो ये मुम्बई में थे. स्वतंत्रता सेनानी सेडूराम को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ताम्रपत्र भेजा था. सेडूराम ने ताउम्र शादी नहीं की, वे अपने भतीजे ओमप्रकाश कृष्णियां के पास रहते थे.
Reporter: Sandeep Kedia
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