बाल विवाह का दंश: 12 साल की नाबालिग ने दिया मरे हुए शिशु को जन्म, जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही मासूम
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बाल विवाह का दंश: 12 साल की नाबालिग ने दिया मरे हुए शिशु को जन्म, जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही मासूम

Rajasthan News: 12 साल की नाबालिग ने मरे हुए शिशु को जन्म दिया. जिंदगी और मौत के बीच मासूम जूझ रही है. जानिए पूरा मामला क्या है?

Child Marriage

Rajasthan Crime: बाल विवाह और नाबालिग गर्भावस्था जैसे मुद्दे आज भी समाज के लिए गहरे चिंतन का विषय बने हुए हैं. हाल ही में राजस्थान के टोंक जिले से जनाना अस्पताल में 12 वर्षीय गर्भवती बालिका का मामला सामने आया है. यह घटना एक बार फिर बाल विवाह की क्रूर सच्चाई को उजागर करती है. उक्त बालिका ने मृत शिशु को जन्म दिया, और उसकी हालत अब भी गंभीर बनी हुई है. उसे ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया है.

बाल विवाह के प्रभाव

बाल विवाह ना केवल एक सामाजिक बुराई है, बल्कि यह बालिकाओं के स्वास्थ्य, शिक्षा और मानसिक विकास पर गंभीर प्रभाव डालता है. कम उम्र में गर्भधारण करना बालिकाओं के लिए अत्यधिक जोखिम भरा होता है. शारीरिक और मानसिक रूप से परिपक्व ना होने के कारण, यह उन्हें गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का शिकार बना देता है.

टोंक जिले की यह घटना इसी समस्या का जीता-जागता उदाहरण है. चिकित्सकों के अनुसार, इतनी कम उम्र में गर्भधारण करना मां और शिशु, दोनों के लिए जानलेवा साबित हो सकता है. 12 साल की बालिका का मामला स्पष्ट करता है कि बाल विवाह के कारण बालिकाएं ना केवल अपने बचपन से वंचित हो जाती हैं, बल्कि उनकी जिंदगी भी खतरे में पड़ जाती है.

सरकारी अस्पतालों में बढ़ते नाबालिग प्रसव

सरकारी अस्पतालों में नाबालिग गर्भवती बालिकाओं की संख्या बढ़ रही है. यह दर्शाता है कि बाल विवाह के खिलाफ कानून और जागरूकता अभियान के बावजूद, यह प्रथा समाज में गहराई तक जड़ें जमाए हुए है. जनाना अस्पताल सहित महिला चिकित्सालयों में बालिकाओं का गर्भावस्था के दौरान उपचार और प्रसव की बढ़ती संख्या इस बात का प्रमाण है.

क्या करें सरकार और समाज?

बाल विवाह रोकने और बालिकाओं के कल्याण के लिए सरकार और समाज को मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है. कुछ मुख्य कदम इस प्रकार हो सकते हैं:

1. कानूनी सख्ती: बाल विवाह के खिलाफ बने कानूनों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित किया जाए. बाल विवाह कराने वालों को सख्त सजा दी जाए.

2. शिक्षा और जागरूकता: ग्रामीण इलाकों में लड़कियों की शिक्षा और परिवारों में जागरूकता फैलाने के लिए विशेष अभियान चलाए जाएं.

3. स्वास्थ्य सेवाएं: बालिकाओं के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिया जाए.

4. समुदाय की भागीदारी: सामाजिक संगठनों और पंचायत स्तर पर सामूहिक प्रयास किए जाएं ताकि बाल विवाह की कुप्रथा को रोका जा सके.

टोंक की 12 वर्षीय बालिका का मामला समाज के लिए चेतावनी है. यह घटना याद दिलाती है कि बाल विवाह केवल एक पारिवारिक या सामाजिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह बालिकाओं के भविष्य को अंधकारमय बना देती है. जब तक बालिकाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य और समान अधिकार नहीं मिलते, तब तक इस समस्या का समाधान संभव नहीं है.

सरकार, समाज और हर नागरिक को यह जिम्मेदारी समझनी होगी कि बाल विवाह के खिलाफ कड़ा रुख अपनाकर बालिकाओं के भविष्य को सुरक्षित किया जाए. केवल तभी हम एक सशक्त और समृद्ध समाज का निर्माण कर पाएंगे.

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