Moti Dungri Ganesh Ji : खरमास समाप्त होते ही अब शादियों का सीज़न शुरू होने वाला है. ऐसे में राजस्थान के जयपुर स्थित मोती डूंगरी गणेश जी मंदिर में शादी का कार्ड देकर श्रीगणेश को निमंत्रण देने बहुत से भक्त पहुंचेगें. वहीं अगर किसी की शादी नहीं हो रही है तो मंदिर से मिलने वाली मेंहदी का प्रसाद घर लेकर जाएं, जल्द घर में शहनाई बज जाएगी.
श्री गणेश भगवान को शादी का पहला कार्ड देने की परंपरा सालों से चलती आ रही है. हिंदू धर्म में किसी भी शुभ काम को करने से श्रीगणेश की पूजा की जाती है और उनसे अनुमति मांगी जाती है. साथ ही शादी के कार्ड पर श्री गणेश की छवि बनाई जाती है. शादी विवाह जैसे शुभ कार्य से पहले श्री गणेश जी को पहला शादी का कार्ड दिया जाता है. जयपुर के मोतीडूंगरी मंदिर में नगर के प्रथम पूजनीय गणेश जी को शादी का पहला कार्ड देने दूर दूर से लोग पहुंचते हैं.
जिन लोगों की शादी नहीं होती वो मोतीडूंगरी में मिलने वाली मेहंदी को घर लेकर जाते हैं ऐसी मेहंदी को लगाने से जिन लोगों की शादी नहीं हो रही होती उनका चट मंगनी पट ब्याह हो जाता है. इस मेंहदी को लेने के लिए दूर दूर से लोग पहुंचते हैं और घंटों लाइन में लगने के बाद मेंहदी हासिल कर पाते हैं. Salasar Balaji : जाट किसान के खेत में प्रकट हुए थे दाड़ी मूंछ वाले हनुमान, दर्शन मात्र से हर मनोकामना पूरी
जब भी कोई जयपुर में वाहन खरीदता है तो पहले मोती डूंगरी गणेश मंदिर में वाहन लाने की परंपरा है. नवरात्रा, रामनवमी, दशहरा, धनतेरस और दीपावली में लोगों की लंबी कतार अपने नए वाहनों के साथ यहां दिखती है. लोगों का ऐसा मानना है की नए वाहन की यहां लाकर पूजा करने से एक्सीडेंट नहीं होता है.
जयपुर के मोती डूंगरी स्थित गणेश मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता हमेशा ही रहता है. लेकिन शुभ दिनों में खासतौर के गणेश चतुर्थी पर गणेश जी की प्रतिमा का श्रृंगार देखते ही बनता है, सोने-चांदी के आभूषणों और नौलखा हार से सजे भगवान गणेश की एक झलक पाने के लिए श्रद्धालु लाइन में लगे रहते हैं, श्री गणेश को सोने के मुकुट को पहनाकर चांदी के सिंहासन पर विराजमान किया जाता है.
जयपुर का मोती डूंगरी गणेश मंदिर राजस्थान में आस्था का प्रमुख केंद्र है. जहां मंदिर में दाहिनी सूंड़ वाले गणेशजी की विशाल प्रतिमा पर सिंदूर का चोला चढ़ाकर भव्य श्रृंगार किया जाता है. यहां गणेश जी को सिंदूर का चोला चढ़ाने की परंपरा सालों पुरानी है.
इतिहासकार के अनुसार गणेश प्रतिमा जयपुर नरेश माधोसिंह प्रथम की पटरानी के पीहर मावली से 1761 ई. में लाई गई और मावली से प्रतिमा गुजरात से लाई गई थी. उस समय ये प्रतिमा पांच सौ साल पुरानी थी. जयपुर के नगर सेठ पल्लीवाल ये मूर्ति लेकर आए थे और उन्हीं की देख-रेख में मोती डूंगरी की तलहटी में मंदिर को बनवाया गया था.
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