मार्गरेट अल्वा ने राज्यपालों की भूमिका पर उठाया सवाल, कहा- राजभवन एक पार्टी के ऑफिस की तरह काम कर रहे
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मार्गरेट अल्वा ने राज्यपालों की भूमिका पर उठाया सवाल, कहा- राजभवन एक पार्टी के ऑफिस की तरह काम कर रहे

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के तीसरे दिन वी द पीपल: द सेंटर एंड द स्टेट्स सेशन में पूर्व राज्यपाल मार्गरेट एल्वा ने राज्यपाल की नियुक्ति, उनके काम और उनसे जुड़े विवादों पर खुल कर अपनी बात रखी. मार्गरेट अल्वा बाेली- तीन साल तक जयपुर के राजभवन में रही.

मार्गरेट अल्वा ने राज्यपालों की भूमिका पर उठाया सवाल, कहा- राजभवन एक पार्टी के ऑफिस की तरह काम कर रहे

JLF @ Margaret Alva: जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के तीसरे दिन वी द पीपल: द सेंटर एंड द स्टेट्स सेशन में पूर्व राज्यपाल मार्गरेट एल्वा ने राज्यपाल की नियुक्ति, उनके काम और उनसे जुड़े विवादों पर खुल कर अपनी बात रखी. मार्गरेट अल्वा बाेली- तीन साल तक जयपुर के राजभवन में रही. आज फिर से जयपुर आकर अच्छा लग रहा है. आज के टॉपिक को मैं थोड़ा और बढ़ाते हुए ये कह सकती हूं कि सेंट्रल और स्टेट के बीच जो संबंध है उनमें गर्वनर की भूमिका अहम है. संविधान निर्माताओं की सोच और जितने बहसें है वो इसके आस पास रहते है. मैं इस पर साफ तौर पर कहना चाहूंगी कि गर्वनर सेंट्रल और स्टेट के बीच एक सेतु का काम करता है, जो संघीय ढांचे के लिए महत्वपूर्ण है.

इसे हम ऐसे भी कह सकते है कि गर्वनर स्टेट में सेंटर की आवाज है और सेंटर में स्टेट की. इन दोनों में एक महत्वपूर्ण संबंध है. गर्वनर को निष्पक्ष होना चाहिए. गर्वनर को एडवाइजर की भूमिका में होना चाहिए. गर्वनर को स्टेट कैबिनेट को एडवाइस देने के साथ स्टेट के दोस्त की भूमिका में काम करना चाहिए. राजभवन को निष्पक्ष होना चाहिए. इसके साथ ही राजभवन का गेट हर उस व्यक्ति के लिए हमेशा खुला रहना चाहिए जो अपनी बात गर्वनर तक रखना चाहता है. मैं अपने कार्यकाल में ऐसा कर चुकी हूं. राज्य में गर्वनर की इसी तरीके की भूमिका होनी चाहिए. बहुत सारे लोग ऐसा कहते है कि गर्वनर का पद ब्रिटिश राज की निशानी है. लोकतांत्रिक देश में इसका कोई स्थान नहीं होना चाहिए. लेकिन संघीय ढांचे को चलाने के लिए इसे आवश्यक रूप से अपनाना चाहिए. मैं यह कह सकती हूं कि यह सिस्टम लंबे समय तक अच्छे से काम करता रहा. लेकिन आज के कुछ प्वाइंट्स पर ध्यान दे तो इसे लेकर कई चुनौतियां है. हम बहुत सारे राज्यों में देख रहे है कि कई जगहों पर राजभवन एक पार्टी के ऑफिस की तरह काम कर रही है.

गर्वनर सरकार बनाने और न बनाने में पॉलिटिकल रोल प्ले कर रहे है. वे राज्य कैबिनेट के सलाह को नकार दे रहे है. हम देख रहे है कि कई राज्यों में डे-बाई-डे राजभवन और राज्य की सरकार में तकरार हो रहे है, जो मुझे लगता है कि सही नहीं है. मैं राजभवन में पांच सालों तक रही हूं. मैं यूपीए की ओर से नॉमिनी थी उस समय सरकार चेंज हो गई. जब नई सरकार आई तो बहुत सारे गर्वनर ने कहा हमें स्टेप आउट कर जाना चाहिए. मैं अपना रेजिगनेशन ऑफर प्राइम मिनिस्टर को देने गई. उन्होंने तुरंत कहा नहीं आप क्यों जाएंगी, आप अच्छा काम कर रही है, आप तो ठहरो. मैं रुक गई. मुझे राजस्थान के राज्यपाल के साथ-साथ गुजरात और गाेवा का एडिशनल चार्ज भी सौंपा गया. जो कहीं कहीं मेरे अच्छे काम करने का इनाम भी था. इसके ये मायने थे कि केंद्र सरकार निष्पक्ष व्यक्ति को पसंद करती है जो अपने काम को ईमानदारी से संविधान के अनुरुप कर रही है और ऐसा होना भी चाहिए. सरकार चेंज होना या कोई फाइनेंशियल कारण ही क्यों न हो गर्वनर को निष्पक्ष की भूमिका में ही रहना चाहिए. ये राज्य और केंद्र के संबंध को मजबूत बनाने में अहम कड़ी है. मैं इस पर साफ तौर पर कहना चाहूंगी कि गर्वनर सेंट्रल और स्टेट के बीच एक सेतु का काम करता है, जो संघीय ढांचे के लिए महत्वपूर्ण है. इसे हम ऐसे भी कह सकते है कि गर्वनर स्टेट में सेंटर की आवाज है और सेंटर में स्टेट की. इन दोनों में एक महत्वपूर्ण संबंध है. गर्वनर को निष्पक्ष होना चाहिए. गर्वनर को एडवाइजर की भूमिका में होना चाहिए. गर्वनर को स्टेट कैबिनेट को एडवाइस देने के साथ स्टेट के दोस्त की भूमिका में काम करना चाहिए. राजभवन को निष्पक्ष होना चाहिए.

इसके साथ ही राजभवन का गेट हर उस व्यक्ति के लिए हमेशा खुला रहना चाहिए जो अपनी बात गर्वनर तक रखना चाहता है. मैं अपने कार्यकाल में ऐसा कर चुकी हूं. राज्य में गर्वनर की इसी तरीके की भूमिका होनी चाहिए. गवर्नर को कभी भी राज्य के किसी भी पॉलिसी में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. यह लगातार हो रहा है. ऐसा केवल तमिलनाडु में ही नहीं है. बल्कि हमने केरला में देखा सरकार के विरोध में गवर्नर सड़क के बीच में कुर्सी लेकर बैठ गए. आपको सड़क के बीच में सुरक्षा देनी पड़ रही है. क्योंकि आप बीच सड़क पर बैठे हैं. यह गवर्नर के पद के विपरीत है, और उस पद का अपमान भी. हमने पश्चिम बंगाल में देखा, हमने पांडिचेरि में देखा. वहां पर लेडी ने हाई कोर्ट की आदेश को मानने से मना कर दिया और एडमिनिस्ट्रेशन को आदेश देना जारी रखा. दिल्ली में क्या हो रहा है.

दिल्ली में गवर्नर का रोल क्या है. मैं इसमें डिटेल में नहीं जाना चाहूंगी. लेकिन हमारे पास कई ऐसे केसेस है. जैसे कि अरुणाचल प्रदेश में कोर्ट को इंटरफेयर करना पड़ रहा है. इसलिए यदि गवर्नर केंद्र सरकार की प्रतिनिधि के तौर पर अपना काम करते हैं और संवैधानिक पद का दुरुपयोग करते हैं तो यह निश्चित तौर पर केंद्र और राज्य के बीच में विवाद पैदा करेगा. इसलिए मैं यह कहना चाहूंगी कि गवर्नर को किसी पॉलिटिकल पार्टी के तौर पर काम नहीं करना चाहिए और ना ही उन्हें सेंट्रल गवर्नमेंट के प्रतिनिधि के रूप में उन्हें एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में राज भवन में निष्पक्षता पूर्वक अपना काम करना चाहिए जैसा कि संविधान उनसे व्यवहार की उम्मीद करता है. गवर्नर के रोल पर आगे बात करते हुए उन्होंने कहा- यह किसी से छुपा नहीं है की गवर्नर का किसी पार्टी के प्रति वफादारी निभाने का इनाम है. और ये हमेशा होता आ रहा है. लेकिन बीजेपी ने एक सुझाव दिया था कि, जब वो लेफ्ट के साथ बंगाल में थी की सिस्टम में बदलाव होना चाहिए . उन्होंने कहा था की राज्य विधायिका की ओर से चुने हुए नाम का एक पैनल भेजना चाहिए. वह पैनल काउंसिल डिसाइड करेगी की गवर्नर कौन होगा. गवर्नर का पद उस स्टेट के द्वारा भेजे गए नाम से तय होता न की सरकार या राष्ट्रपति भवन से. हमें इसपर विचार करना चाहिए. हमारे पास और दूसरे रास्ते भी हो सकते है गवर्नर सिलेक्ट करने के. किसी ने कहा हमारे पास कुछ फॉर्मर जजेज है. लेकिन क्या हम इन दिनों जज के रिकॉर्ड्स को नही देख रहे.

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