Rajasthan News: बच्चे को बीमारी की वजह से एक दिन में 16 गोलियां लेनी पड़ती थी.राजस्थान के डॉक्टर्स ने पहला दुर्लभ ऑपरेशन कर बच्चे को नया जीवन दान दिया है.
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Rajasthan News: किसी भी बीमारी का उपचार जब सफलतापूर्वक हो जाये तो घर-परिवार में माहौल खुशनुमा हो जाता है. सीतापुरा स्थित महात्मा गांधी अस्पताल में बच्चों की हार्ट सर्जरी टीम को ''एनोमेलस लैफ्ट कोरोनरी आर्टरी फ्रॉम राइट पल्मोनरी आर्टरी- ‘अलकार्पा’ नामक दुर्लभ बीमारी के उपचार में सफलता मिली है. सीतापुरा स्थित महात्मा गांधी अस्पताल में बच्चों की हार्ट सर्जरी टीम ने कोरोनरी ट्रांस लोकेशन नामक ऑपरेशन कर बच्चे को नई जिंदगी दी है.
दुनिया के चिकित्सा इतिहास में अब तक ऐसे केवल चालीस ऑपरेशन ही हुए हैं. राजस्थान में यह अपनी तरह का पहला दुर्लभ ऑपरेशन है. हार्ट सर्जन डॉ. सुनील कौशल ने बताया कि परिजनों ने बच्चे को कई जगहों पर उपचार दिलाया. आखिर ईको जांच करने से उसकी बीमारी सामने आई. समस्या बहुत गंभीर थी. रोग की गंभीरता को देखते हुए परिजनों ने इस जोखिमभरी सर्जरी की सहमति दे दी. डॉक्टर्स ने पूरी सावधानी रखते हुए यह जटिल और दुर्लभ ‘कोरोनरी ट्रांस लोकेशन ऑपरेशन’ किया. जो कि 8 घंटे चला. इसके बाद कई दिनों तक बच्चें को गहन चिकित्सा इकाई में रखा गया. बच्चा अब स्वस्थ है उसका हार्ट जो पहले मात्र पन्द्रह फीसदी काम कर रहा था अब चालीस फीसदी काम कर रहा है.
शनिवार को बच्चे को अस्पताल से घर भेज दिया गया है. हार्ट सर्जन डॉ. सुनील कौशल ने बताया कि ऑपरेशन को सफलता का अंजाम देने में बच्चों के ह्रदय रोग विषेषज्ञ डॉ संजय खत्री, डॉ. कनुप्रिया चतुर्वेदी तथा कार्डियक एनेस्थेटिस्ट डॉ. गौरव गोयल की महत्वपूर्ण भूमिका रही.
हार्ट सर्जन डॉ. सुनील कौशल ने बताया कि चौमूं निवासी तीन साल का पूर्वित पिछले दो साल से लगातार निमोनिया जैसी समस्या से पीड़ित था. उसे बार बार अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता था. इतनी छोटी उम्र मे भी वह रोजाना सोलह गोलियां लेने को मजबूर था. उसे ह्रदय से जुड़ी जन्मजात विकृति अलकार्पा यानी ''एनोमेलस लैफ्ट कोरोनरी आर्टरी फ्रॉम राइट पल्मोनरी आर्टरी'' नामक गंभीर बीमारी थी.उसके दिल में ह्रदय को ऑक्सीजनयुक्त ब्लड को ह्रदय में पहुंचाने वाली कोरोनरी आर्टरी महाधमनी की बजाय पल्मोनरी आर्टरी में दाईं तरफ जुड़ी थी. इससे बच्चे को शुद्ध रक्त और ऑक्सीजन नहीं मिल पा रहा था. इससे बच्चे को बार बार दिल के दौरे पड़ते थे. ह्रदय की कार्यक्षमता मात्र पन्द्रह प्रतिशत तक रह गई थी.