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Mahashivratri 2023: सर्वार्थसिद्धि सहित शनि प्रदोष के शुभ संयोग में भोलेनाथ की आराधना का दिन महाशिवरात्रि का पर्व छोटाकीशी में मनाया जा रहा है..मंगला आरती के साथ ही शहर के प्रमुख शिवालयों में बम-बम बोले, ऊं नम:शिवाय के जयकारों के बीच जलाभिषेक, दुग्धाभिषोक, पूजा अर्चना करने के लिए भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिली.
इस अवसर पर छोटे से लेकर बडे शिवालयों में आस्था का सैलाब उमड़ता हुआ नजर आया.भक्तों ने व्रत रखकर पूजा अर्चना शुरू की.चौड़ा रास्ता स्थित ताड़केश्वर महादेव, क्वींस रोड स्थित झाडख़ंड महादेव, बनीपार्क के जंगलेश्वर महादेव, छोटी चौपड़ स्थित रोजगारेश्वर महादेव, झोटवाड़ा रोड स्थित चमत्कारेश्वर महादेव, रामगंज के ओंडा महादेव, विद्याधर नगर के भूतेश्वर महादेव, धूलेश्वर महादेव, कूकस के सदाशिव द्वादश ज्योर्तिलिंगेश्वर महादेव मंदिर सहित अन्य शिवालयों में भीड़ रहीं.ताड़केश्वर महादेव, झाडखंड महादेव मंदिर में लाइनों के जरिए भक्तों को प्रवेश दिया गया.
इस अवसर पर .श्रद्धालुओं ने दूध मिश्रित जल से भोलेनाथ का अभिषेक कर बिल्व पत्र, फल, धतूरा, बिल्व पत्र अर्पित किए..चौड़ा रास्ता स्थित ताडकेश्वर महादेव मंदिर में तड़के दो बजे से लंबी कतारे देखने को मिली.झाडखंड महादेव मंदिर में सुबह से मेले का माहौल नजर आया...200 स्वयंसेवकों ने व्यवस्थाओं को संभाला..इस दौरान दिनभर यहां मेले सा माहौल रहेगा.बड़ी संख्या में भक्तों का कारवां यहां देखने की मिला..500 राम सागर की व्यवस्था की गई.
.गलता गेट स्थित द्वादश ज्योर्तिलिंगेश्वर महादेव मंदिर में पं.राजकुमार चतुर्वेदी के सान्निध्य में महादेव की विशेष पूजा अर्चना हुई.वैशालीनगर क्वींस रोड स्थित झाड़खंड महादेव मंदिर अपनी भव्यता के लिए बेहद खास है.
दक्षिण की तर्ज पर बना यह मंदिर द्रविड़ दक्षिण भारतीय शैली में तैयार किया.बब्बू सेठ मेमोरियल ट्रस्ट के अध्यक्ष जयप्रकाश सोमानी ने बताया कि विश्व के 108 स्वयंभू मंदिर में से यह मंदिर देश में 27 बड़े ज्योर्तिलिंग के रूप में शामिल मंदिरों में विशेष स्थान रखता है.
.देश के सभी शिव मंदिरों में से सबसे बड़ा नंदी भी यहां विराजमान हैं.बीच शहर में जिस गांव में यह मंदिर स्थित है, उसका नाम प्रेमपुरा है..दरअसल एक समय में यहां बड़ी संख्या में झाड़ियां ही झाड़ियां हुआ करती थी.झाड़ियों से झाड़ और खंड अर्थात क्षेत्र को मिलाकर इस मंदिर का नाम झाड़खंड महादेव मंदिर पड़ा.
हर साल यहां शिवरात्रि और श्रावण मास में मेले का माहौल नजर आता है...तपोभूमि स्थल होने के चलते हमेशा सर्प, मोर की आवाजाही हमेशा रहती है.महाराजा माधोसिंह, सवाईमानसिंह भी यहां दर्शनों के लिए आते थे..बरसों प्राचीन मंदिर का निर्माण कार्य सन 1918 में शुरू हुआ..गर्भग्रह से लेकर पूरा मंदिर परिसर द्रविड शैली में है..