Chittorgarh News : चित्तौड़गढ़ जिले के रावतभाटा विक्रमनगर कच्ची बस्ती क्षेत्र में शव को साढ़े पांच फीट की दीवार फांद कर ले जाते. बरसात में दाह संस्कार में परेशानी होती है.
Trending Photos
Chittorgarh News : चित्तौड़गढ़ जिले के रावतभाटा विक्रमनगर कच्ची बस्ती क्षेत्र में मुक्तिधाम के अभाव में लोग साढ़े 5 फीट की दीवार फांद कर दो किलोमीटर दूर वनक्षेत्र में नदी के पास वैकल्पिक मुक्तिधाम ले शव ले जाते है. मुक्तिधाम स्थल तक जाने के लिए ना तो रास्ता है और ना ही मुक्तिधाम स्थल पर शेड या चारदीवारी की व्यवस्था है. पिछले 25 सालों से सिलसिला अनवरत जारी है. बावजूद इसके बस्तीवासियों को राहत नही मिलती नजर नही आ रही. ऐसा ही एक वाकया बुधवार को भी देखने को मिला. जिसमें विक्रमनगर कच्ची बस्ती के रहने वाले 47 साल के माधू गुर्जर की हार्ट अटैक से मौत हो गई. जिसके बाद परिजन शव को जंगल के बीच होकर करीब दो किलोमीटर दूर वैकल्पिक मुक्तिधाम स्थल तक ले गए. अंतिम यात्रा के दौरान अर्थी थामे लोगों को साढ़े 5 फीट ऊंची वन विभाग की दीवार फांदनी पड़ी. जिससे खासकर बुजुर्गजनों को काफी परेशानी हुई. सालों से मुक्तिधाम की मांग पूरी नही होने के कारण लोगों ने मौके पर मौजूद पार्षद नरेश मेघवाल के सामने रोष प्रकट किया.
विक्रमनगर कच्ची बस्ती नगर पालिका क्षेत्र के वार्ड नंबर 15 में आता है. बस्ती वासियों ने बताया कि बांध के 53 साल पहले बांध के निर्माण के दौरान विक्रमनगर कच्ची बस्ती स्थापित हो गई थी. तब से लोग चंबल नदी किनारे इसी स्थान पर परिजनों का अंतिम संस्कार करते चले आ रहे है. परिजनों ने बताया कि करीब 25 साल पहले वन क्षेत्र भैंसरोडगढ़ सेंच्युरी घोषित हुआ था. उस दौरान वन विभाग ने संरक्षित क्षेत्र के चारों ओर चारदीवारी बनवा ली. उसके बाद से ही बस्ती क्षेत्र में किसी का निधन हो जाए तो अंतिम संस्कार के लिए दीवार फांद कर शव ले जाना पड़ता है. जिससे दीवार फांदते बैलेंस बिगड़ जाए तो अर्थी थामे परिजनों के शव सहित गिरने की भी संभावना बनी रहती है.
भैंसरोडगढ़ अभ्यारण्य क्षेत्र में क्रोकोडायल पॉइंड पॉइंट के पास चंबल नदी किनारे खुले आसमान के नीचे शव का अंतिम संस्कार किया जाता है. यहां शव दाह स्थल पर न तो शेड है, और ना ही अंतिम क्रिया में शामिल लोगों के बैठने की व्यवस्था है. बस्तीवासी पत्थरों के सपोर्ट से लकड़ियां खड़ी कर शव के लिए अर्थी जमाते है. जिसके बाद अंतिम संस्कार की क्रिया पूरी की जाती है. रीतिरिवाज के अनुसार शव जलने तक लोगों को तपती धूप में खुले में यहाँ वहां जमे पत्थरों पर बैठ कर अंतिम क्रिया पूरी होने का इंतजार करना पड़ता है. बरसात के दिनों में समस्या और भी ज्यादा गंभीर हो जाती हैं. जिसमें लोगों को शव और लकड़ियों को भीगने से बचाने के लिए बल्लियों के सहारे तीन शेड लागाना पड़ता है. वहीं चिता जलाने के लिए पारंपरिक साधनों के अलावा कई दफा अलग-अलग तरह के पेट्रो केमिकल ज्वलनशील पदार्थों का उपयोग भी करना पड़ता है.
पार्षद नरेश मेघवाल ने बताया कि मामलें की गंभीरता को देखते हुए विधायक राजेंद्र सिंह बिधूड़ी को अवगत करवाया था. विधायक बिधूड़ी ने भी मामलें की संवेदनशीलता को देख जनप्रतिनिधियों को मौके पर भेज मुक्तिधाम स्थल निर्माण की जमीन का मौका मुआयना करवाया था. जिसके बाद बस्ती के समीप ही जमीन आवंटित कर दी गई. हाल ही में हुई बजट घोषणा में फंड मिलने की बात कही गई है. जल्द ही मुक्तिधाम का निर्माण होने के बाद लोगों को राहत मिलेगी.