Shergarh Vidhansabha Seat : जोधपुर के ग्रामीण क्षेत्र में आने वाली शेरगढ़ विधानसभा सीट पर शुरू से ही राजपूतों का दबदबा रहा है. खेत सिंह राठौड़ ( Khet Singh Rathore ) सात बार विधायक चुने गए, जबकि 4 बार चुनाव लड़ने वाले बाबू सिंह राठौड़ ( Babu Singh Rathore ) भी तीन बार चुनाव जीतने में कामयाब रहे.
Trending Photos
Shergarh Vidhansabha Seat : जोधपुर के ग्रामीण क्षेत्र में आने वाली शेरगढ़ विधानसभा सीट पर शुरू से ही राजपूतों का दबदबा रहा है. यहां से 10 बार चुनाव लड़ने वाले खेत सिंह राठौड़ सात बार विधायक चुने गए, जबकि 4 बार चुनाव लड़ने वाले बाबू सिंह राठौड़ भी तीन बार चुनाव जीतने में कामयाब रहे.
शेरगढ़ विधानसभा सीट से पहले विधायक चुने गए खेत सिंह राठौड़ ने 1951, 1967, 1972, 1977, 1980, 1993 और 1998 में जीत हासिल की. जबकि बाबू सिंह राठौड़ ने 2003 2008 और 2013 में लगातार तीन बार जीत हासिल की.
खेत सिंह राठौड़ से जुड़ा एक किस्सा बेहद प्रचलित है. बात विधानसभा चुनाव 1985 की है. जब खेत सिंह राठौड़ के खिलाफ उनकी भाभी रतन कंवर चुनावी मैदान में उतर गई तो खेत सिंह राठौड़ पीछे हट गए और इस चुनाव में रतन कंवर की जीत हुई और इसके साथ ही रतन कंवर को मारवाड़ की पहली विधायक होने का गौरव हासिल किया.
1951 में शेरगढ़ में पहले विधानसभा चुनाव हुए. जिसमें कांग्रेस की ओर से राजनारायण उम्मीदवार बने तो वहीं निर्दलीय के तौर पर खेत सिंह ने ताल ठोकी. इस चुनाव में जहां कांग्रेस उम्मीदवार राजनारायण के पक्ष में सिर्फ 1800 वोट पड़े तो वहीं खेत सिंह को 19,501 मतदाताओं ने अपना समर्थन दिया. उसके साथ ही खेत सिंह शेरगढ़ विधानसभा के पहले विधायक चुने गए.
शेरगढ़ के दूसरे विधानसभा चुनाव 1962 में खेत सिंह अबकी बार कांग्रेस के उम्मीदवार बने, जबकि टक्कर देने राम राज्य परिषद की ओर से शोभग सिंह उतरे. इस चुनाव में शोभग सिंह की 15,075 मतों के साथ जीत हुई. जबकि कांग्रेस में शामिल होने के बाद खेत सिंह को सिर्फ 7,718 मतदाताओं ने समर्थन दिया.
इस चुनाव में एक बार फिर खेत सिंह कांग्रेस के उम्मीदवार बने जबकि उनको स्वराज पार्टी से चुनौती मिली. इस चुनाव में खेत सिंह अपना रुतबा वापस पाने में कामयाब हुए और उनकी 15,953 मतों से जीत हुई.
इस चुनाव में खेत सिंह कांग्रेस के टिकट पर फिर किस्मत आजमाने उतरे तो वहीं उन्हें निर्दलीय उम्मीदवार हरि सिंह से कड़ी टक्कर मिली. इस चुनाव में स्वराज पार्टी के हरि सिंह के पक्ष में सिर्फ 2,938 लोगों का समर्थन मिला तो वहीं खेत सिंह एक बार फिर बड़ी मार्जिन से जीत हासिल करने में कामयाब हुए.
इस चुनाव में कांग्रेस ने फिर से खेत सिंह को ही चुनावी मैदान में उतारा तो वहीं करीबी प्रतिद्वंदी निर्दलीय उम्मीदवार अनूप सिंह रहे. इस चुनाव में अनूप सिंह के पक्ष में 14,970 वोट पड़े तो वहीं खेत सिंह को 18,099 मतदाताओं ने अपना समर्थन दिया.
1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस भारी गुटबाजी से जूझ रही थी, कांग्रेस (आई) ने 4 बार विधायक रह चुके खेत सिंह को ही उम्मीदवार बनाया तो वहीं उनके सबसे करीबी प्रतिद्वंदी विजयलाल बने जो कि निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ रहे थे. इस चुनाव में 10 हजार मतों के अंतर से खेत सिंह की फिर जीत हुई.
1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने खेत सिंह के भतीजे कल्याण सिंह राठौड़ को उतारा जबकि बीजेपी की ओर से रतन कंवर चुनावी मैदान में उतरी. रतन कंवर खेत सिंह की भाभी थी. यह चुनाव शेरगढ़ के चुनावी इतिहास के लिए बेहद खास रहने वाला था. चुनावी नतीजे आए तो कांग्रेस उम्मीदवार कल्याण सिंह राठौड़ की हार हुई, जबकि रतन कंवर 28,528 मतों से जीती और शेरगढ़ की पहली महिला विधायक चुनी गई.
1990 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने रतन कंवर की जगह मनोहर सिंह इंदा को टिकट दिया जबकि कांग्रेस ने फिर से अपने भरोसेमंद सिपाही खेत सिंह को आगे किया. हालांकि कांग्रेस को इस चुनाव में नुकसान उठाना पड़ा और बीजेपी की चेहरे बदलने की रणनीति सफल हुई और 35,573 वोटों से मनोहर सिंह की जीत हुई.
इस चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस की ओर से खेत सिंह राठौड़ तो बीजेपी की ओर से मनोहर सिंह चुनावी मैदान में थे. मनोहर सिंह के पक्ष में 34,525 वोट पड़े तो वहीं खेत सिंह को 43,442 मतदाताओं ने अपना समर्थन दिया. इसी के साथ ही खेत सिंह राठौड़ अपने पिछले दो चुनावों का सूखा मिटाते हुए एक बार फिर वापसी की.
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से एक बार फिर खेत सिंह चुनावी उम्मीदवार बने तो वहीं बीजेपी की ओर से मनोहर सिंह ने फिर से ताल ठोकी. कांग्रेस के लिए जीत की गारंटी बन चुके खेत सिंह की इस चुनाव में 48,408 वोटों के साथ जीत हुई. जबकि मनोहर सिंह को सिर्फ 35,517 वोटों से संतोष करना पड़ा.
2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपनी चुनावी रणनीति बदली और मनोहर सिंह की जगह बाबू सिंह राठौड़ को चुनावी मैदान में उतारा जबकि कांग्रेस का भरोसा खेत सिंह राठौड़ पर कायम रहा. हालांकि चुनावी नतीजे आए तो तस्वीर बदल चुकी थी, खेत सिंह राठौड़ 45,788 वोट पाकर भी चुनाव हार चुके थे. तो वहीं 57,355 मतों के साथ बाबू सिंह राठौड़ की जीत हुई.
इस चुनाव से पहले कांग्रेस ने भी अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव किया. कांग्रेस ने खेत सिंह राठौड़ की जगह उमेद सिंह राठौड़ को अपना उम्मीदवार बनाया. जबकि भाजपा की ओर से बाबू सिंह राठौड़ ही चुनावी ताल ठोकने उतरे. इस चुनाव में तकरीबन 3000 मतों के अंतर से बाबू सिंह राठौड़ की जीत हुई.
इस चुनाव में एक बार फिर मुकाबला बीजेपी के बाबू सिंह राठौड़ वर्सेस कांग्रेस के उमेद सिंह राठौड़ था. बाबू सिंह राठौड़ मोदी लहर पर सवार थे. इस चुनाव में उमेद सिंह राठौड़ की एक बार फिर हार हुई, जबकि बाबू सिंह राठौड़ तीसरी बार शेरगढ़ से विधायक चुने गए.
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने दो बार चुनाव हार चुके उमेद सिंह राठौड़ की जगह उनकी पत्नी मीना कंवर को टिकट दिया. जबकि भाजपा की ओर से एक बार फिर बाबू सिंह राठौड़ ही चुनावी मैदान में उतरे. इस बार कांग्रेस की बदली हुई रणनीति काम आई और मीना कंवर की जीत हुई और उन्हें 99,294 मतदाताओं ने समर्थन दिया जबकि बाबू सिंह राठौड़ को सिर्फ 75.220 वोट मिले. उसके साथ ही मीना कंवर शेरगढ़ के सियासी इतिहास की दूसरी महिला विधायक चुनी गई.
ये भी पढ़िए
Health Tips: जरा सी अलसी रखेगी आपको निरोगी, डाइट में शामिल करने से होंगे ये फायदे
Latest Viral Video: गोल्फ कार्ट ड्राइव करते हुए बंदर का वीडियो वायरल, लोगों को खूब आ रहा पसंद