Udaipur murder case : कन्हैय्यालाल की हत्या के बाद हत्यारों ने एक वीडियो बनाया था और एक नारा लगाया था. ये ही नारा कुछ दिन पहले अजमेर में खुलेआम एक शख्स ने लगाया था.
Trending Photos
Udaipur murder case : राजस्थान के उदयपुर में कन्हैयालाल को मौत के घाट उतार दिया गया. मामले में एक अंतरराष्ट्रीय साजिश का भी पर्दाफाश हुआ है. अब सोशल मीडिया पर वायरल एक दूसरे वीडियो से ये सवाल खड़े हो रहे है कि क्या उदयपुर में हुई घटना की इबारत लिखने की शुरुआत अजमेर से की गई. पिछले कुछ दिनों में जो कुछ अजमेर में हुआ, वो कहीं ना कहीं पूरे प्रदेश के शांत माहौल को खराब करने की शुरूआत लग रही है. जिसमें पीएफआई की भूमिका देखने को मिल रही है.
उदयपुर में कन्हैया लाल के हत्यारों ने हत्या के बाद जिस नारे का इस्तेमाल अपने वायरल वीडियो में किया था. उसी नारे का इस्तेमाल अजमेर से सामने आ रहे एक वीडियो में होता हुआ नजर आ रहा है. जिसे पीएफआई का एक सक्रिय कार्यकर्ता खुलेआम लगा रहा था. सामाजिक विद्वेष फैलाने की कोशिश के सबूत अजमेर में साफ तौर पर फैले हुए दिखाई दे रहे हैं. देखने वाली बात होगी कि इस खबर के बाद राजस्थान पुलिस ऐसे लोगों के खिलाफ क्या कार्यवाही करती है.
बात 17 जून की है जब अजमेर के मुस्लिम समुदाय ने पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ बयान देने वाली नूपुर शर्मा के विरोध में एक मौन जुलूस निकाला था. इस जुलूस को बाकायदा प्रशासन की भी अनुमति थी, लेकिन शर्त यही थी कि यह जुलूस पूरी तरह से मौन होगा और इसमें किसी भी तरह की नारेबाजी नहीं की जाएगी. बावजूद इसके सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह जहां से पूरी दुनिया में अमन और चैन का पैगाम दिया जाता है. उसी दरगाह के मुख्य द्वार पर खड़े होकर प्रशासनिक अनुमति का पुरजोर तरीके से मखौल बनाया गया.
गौहर चिश्ती नाम के एक शख्स ने यहां से खड़े होकर पहले तकरीर दी और उसके बाद नारा बुलंद किया गया -गुस्ताख ए नबी की यही सजा सर तन से जुदा सर तन से जुदा भीड़ ने भी बिना इस नारे का अर्थ जाने गोहर चिश्ती की आवाज में अपनी आवाज को मिलाया था जिस समय यह नजारा पेश आया. उस समय वहां पुलिस और प्रशासन के आला अधिकारी भी मौजूद रहे. लेकिन शायद भीड़ को देखते हुए और शांति व्यवस्था बनाए रखने की गरज से जिम्मेदारों के मुंह पर चुप्पी सज गई.
अजमेर की दरगाह के बाहर गौहर चिश्ती के दिये नारे को ही बाद में कन्हैयालाल के हत्यारे रियाज और गौस मोहम्मद वीडियो में लगाते नजर आये थे. पूरे प्रदेश में धार्मिक सद्भाव को बिगाड़ने की जो कोशिश की जा रही थी. उसकी साजिश का एक बड़ा हिस्सा पीएफआई हो सकता है, इसका दूसरा सबूत भी अजमेर से ही सामने आ रहा है.
अजमेर में हिंदू समाज द्वारा हिंदू देवी-देवताओं के अपमान को लेकर एक शांति मार्च 26 जून को निकाला गया था. इस शांति मार्च से पहले अजमेर जिले के सभी दुकानदारों ने शांति मार्च को समर्थन देने की बात कहते हुए बाजार बंद रखे थे और इसी बात से भड़के हुए नजर आए थे. पीएफआई की एक और सक्रिय कार्यकर्ता सरवर चिश्ती.
सरवर चिश्ती खुलेआम अपने आपको पीएफआई का सक्रिय कार्यकर्ता बताते हैं और पूरे प्रदेश में जहां कहीं पीएफआई द्वारा कोई प्रदर्शन किया जाता है, तो उसमें इन की सक्रिय भूमिका होती है. पिछले दिनों कोटा में आयोजित पीएफआई की रैली में भी सरवर चिश्ती की की सक्रिय भूमिका सामने आई थी.
सरवर चिश्ती पिछले दिनों अंजुमन कमेटी के चुनाव में भी खड़े हुए और सचिव के रूप में निर्वाचित हुए. इन्हीं सरवर चिश्ती ने हिंदू समाज के शांति मार्च के बाद दरगाह के इसी गेट से सामाजिक विद्वेष फैलाने की एक कोशिश की थी. सरवर चिश्ती ने दरगाह के मुख्य द्वार पर खड़े होकर हिंदू शांति मार्च की ना केवल आलोचना की बल्कि सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह पर आने वाले मुस्लिम जायरीन से अपील भी की कि वे दरगाह के आसपास के बाजारों मैं अपना व्यापार संचालित करने वाले किसी भी हिंदू व्यापारी से कोई सामान ना खरीदें. क्योंकि यह वही हिंदू व्यापारी हैं जिन्होंने पैगंबर मोहम्मद की शान में गुस्ताखी करने वाली नूपुर शर्मा के समर्थन में अपनी दुकानों को बंद रखा यह अलग बात है कि पीएफआई के सक्रिय कार्यकर्ता सरवर चिश्ती की इस हरकत को भी जिला प्रशासन द्वारा नजरअंदाज कर दिया गया.
अजमेर की ये दोनों घटनाएं इस बात को बताने के लिए काफी है कि किस तरीके से शांत माने जाने वाले राजस्थान प्रदेश को सांप्रदायिकता की आग में झोंकने की साजिश लंबे समय से चल रही थी. समय रहते अगर इस साजिश का खुलासा हो जाता और स्थानीय पुलिस और प्रशासन ऐसे तत्वों के खिलाफ कड़ाई से पेश आता तो शायद आज जिस तरह के हालात पूरे प्रदेश में बने हुए हैं वो नहीं होते और सामाजिक सद्भाव के दुश्मन सलाखों के पीछे होते.
अपने जिले की खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें