Makar Sankranti: भारत की सनातन वैदिक हिंदू परंपराओं के अनुसार मकर सक्रांति का पर्व अपना विशेष महत्व रखता है. शास्त्रों के अनुसार मकर सक्रांति से सूर्य उत्तरायण में आ जाते है और इसके साथ ही एक माह से चल रहे मल मास का समापन होकर शुभ कार्य की शुरुआत भी हो जाती है.
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Makar Sankranti: भारत की सनातन वैदिक हिंदू परंपराओं के अनुसार मकर सक्रांति का पर्व अपना विशेष महत्व रखता है. शास्त्रों के अनुसार मकर सक्रांति से सूर्य उत्तरायण में आ जाते है और इसके साथ ही एक माह से चल रहे मल मास का समापन होकर शुभ कार्य की शुरुआत भी हो जाती है.
सूर्य उत्तरायण होने पर धार्मिक स्थलों में जमकर दान पूण्य होता है. तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं. जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं. मकर संक्रान्ति पर्व को उत्तरांचल-कुमाऊँ क्षेत्र में उत्तरायणी भी कहते हैं. इस अवसर पर जगत पिता ब्रह्मा की पावन तीर्थ स्थली पुष्कर में भी श्रद्धालुओं की भीड़ देखी गई. सरोवर पर देश भर से आए श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाकर पुण्य लाभ कमाया.
तीर्थ नगरी पुष्कर में मकर संक्रांति के पर्व से पूर्व ही कस्बे भर में विशेष धार्मिक अनुष्ठान और तिल से बनी वस्तुओं के दान का सिलसिला जारी है. कस्बे के प्रसिद्ध ज्योतिष वेद पंडित कैलाश नाथ दाधीच ने बताया कि मकर संक्रांति का पर्व ज्योतिष अनुसार विशेष महत्व रखता है. ज्योतिषाचार्य कैलाश नाथ दाधीच ने बताया कि 14 जनवरी को प्रातः 8 : 56 से पुण्य काल प्रारंभ होगा, जो पुनर्वसु नक्षत्र से प्रारंभ होकर पुष्य नक्षत्र में विश्व कुंभ योग बनाएगा.
इस दिन पुष्कर तीर्थ में स्नान,पूजन और दान पुण्य करने का करोड़ों गुना फल मिलता है. इस दिन दान पुण्य हवन का श्रेष्ठ योग वर्षों के बाद बन रहा है. इस दिन धर्मराज जी का पूजन उद्यापन हवन पूजन दान पुण्य का विशेष महत्व रहता है. वर्ष में एक बार इस विशेष पूजा से मनुष्य कर्म बंधन से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्ति को अग्रसर होता है.
सुहागन स्त्रियां अपने पति के दीर्घायु एवं यशस्वी जीवन की कामना के लिए 13 वस्तुओं का दान करके भगवान सूर्य का पूजन करती है. तीर्थ पुरोहित सतीश चंद्र तिवाड़ी ने बताया कि तीर्थ नगरी पुष्कर में सरोवर किनारे मकर सक्रांति के अवसर पर तर्पण, श्राद्ध, उपनयन संस्कार, दान पुण्य, पूजा अर्चना, का कोटि गुना फल प्राप्त होता है. शास्त्रों में वर्णित है कि इस दिन गंगा सागर, वाराणसी, त्रिवेणी संगम, हरिद्वार, पुष्कर, उज्जैन की शिप्रा, लोहाग्रल आदि तीर्थ स्थलों पर स्नान करने से रोगों से मुक्ति मिलती है.
गौरतलब है कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का ही चयन किया था. इसके अलावा मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं. साथ ही महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए इस दिन तर्पण किया था. इन्हीं मान्यताओं के अनुसार हजारों लोग आस्था का दामन थाम मकर सक्रांति के अवसर पर व्यक्त नगरी पुष्कर पहुंचेंगे.