DNA with Sudhir Chaudhary: कुतुबद्दीन ऐबक ने जानबूझकर किया हिंदू देवताओं का अपमान, जानें क्या है कुतुब मीनार का कड़वा सच?
Advertisement

DNA with Sudhir Chaudhary: कुतुबद्दीन ऐबक ने जानबूझकर किया हिंदू देवताओं का अपमान, जानें क्या है कुतुब मीनार का कड़वा सच?

DNA with Sudhir Chaudhary: अब समय आ गया है, जब हम मुस्लिम शासकों की गुलामी के अपने एक हजार सालों को Rewind करके देखें और अपने इतिहास की त्रुटियों को दूर करें.

DNA with Sudhir Chaudhary: कुतुबद्दीन ऐबक ने जानबूझकर किया हिंदू देवताओं का अपमान, जानें क्या है कुतुब मीनार का कड़वा सच?

DNA with Sudhir Chaudhary: इस रिपोर्ट के जरिए आपको बताते हैं कि कुतुब मीनार को बनाने वाले मुस्लिम शासकों ने कैसे जानबूझकर मंदिरों से तोड़ी गई हिंदू देवी देवताओं की प्रतिमाओं को ऐसे स्थानों पर रखा, जहां आने जाने वाले लोगों के पैर उन पर पड़ते रहें. ऐसा करके ये शासक हिंदू संस्कृति का अपमान करते थे और चाहते थे कि आने वाली पीढ़ियां भी इस अपमान को याद रखें. कुतुब मीनार का ये कड़वा सच आप पहली बार हमारी इस रिपोर्ट के जरिए जानेंगे. साथ ही आज हमारे देश के इतिहासकारों और सरकारों से ये पूछने का भी दिन है कि उन्होंने ऐसे क्रूर मुस्लिम शासकों को हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक बता कर, हमारे देश को 75 वर्षों तक धोखा क्यों दिया?, अब समय आ गया है, जब हम मुस्लिम शासकों की गुलामी के अपने एक हजार सालों को Rewind करके देखें और अपने इतिहास की त्रुटियों को दूर करें.

Zee News की खास मुहिम

कुतुब मीनार पर Zee News की इस स्पेशल सीरीज का ये दूसरा भाग है. इससे पहले हमने कुतुब मीनार पर अब तक का सबसे गहन विश्लेषण किया था और समझा था कि 12वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत की स्थापना के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने 27 हिंदू और जैन मंदिरों को तुड़वाकर कुतुब मीनार परिसर में एक विशाल मस्जिद का निर्माण कराया था और बाद में ध्वस्त किए गए मंदिरों के ऊपर ही कुतुब मीनार बनाई गई थी.

मंदिरों पर बात करना साम्प्रदायिक?

भारत दुनिया का शायद इकलौता ऐसा देश होगा, जहां ध्वस्त किए गए हिंदू देवी देवताओं के मंदिरों पर बात करना साम्प्रदायिक माना जाता है और हो सकता है कि आज कुछ लोग हमें भी साम्प्रदायिक बताने लगें. लेकिन हमें लगता है कि मध्यकालीन भारत के इतिहास में जो खामियां रह गई थीं, उनके बारे में आपको पूरा सच पता होना चाहिए और इसी सच को हमारी टीम ने कुतुब मीनार से खोद कर निकालने की कोशिश की है.

कुतुबद्दीन ऐबक ने कैद की भगवान गणेश की मूर्ति

कुतुब मीनार परिसर में जो प्राचीन मन्दिर के अवशेष हैं, उनकी पड़ताल के लिए हमारी टीम ने लगातार कई दिनों तक अध्ययन किया. 22 मई से 29 मई के बीच हमारी टीम कुतुब मीनार Complex में कई बार गई और इस दौरान हमने देखा कि इस क्षेत्र में आज भी हिंदू देवी देवताओं की कई प्रतिमाएं मौजूद हैं. इनमें जिस कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद को भारत की सबसे पुरानी मस्जिद माना जाता है, उसकी पश्चिमी दीवार पर भगवान गणेश की मूर्ति को कैद करके रखा गया है. माना जाता है कि, ये मूर्ति उन्हीं हिंदू मंदिरों का हिस्सा थी, जिन्हें कुतुबद्दीन ऐबक ने तोड़ कर यहां मस्जिद और कुतुब मीनार का निर्माण कराया था.

12वीं शताब्दी में हुआ था ऐसा परिवर्तन

असल में तराइन की दूसरी लड़ाई जीतने के बाद जब 12वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई तो मोहम्मद गौरी और उसका गुलाम सेनापति कुतुबद्दीन ऐबक दिल्ली का नक्शा बदला देना चाहते थे. इसलिए उन्होंने जल्दबाजी में कई मंदिरों को नष्ट किया और फिर इन्हीं मंदिरों के मलबे से मस्जिद और दूसरे स्मारकों का निर्माण करा दिया. यही वजह है कि आज भी इन स्मारकों में  हिंदू मंदिरों की पहचान और विरासत दिखती है.

भगवान नरसिंह का अपमान!

कुतुब मीनार कॉम्प्लेक्स 24 हजार वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैला है और यहां मस्जिद के अलावा एक द्वार भी है, जिसे अलाई दरवाजा कहते हैं. इसका निर्माण खिलजी वंश के दूसरे शासक अलाउद्दीन खिलजी ने करवाया था. इस अलाई दरवाजे के आसपास जितने भी पत्थर रखे हैं, उन पर हिंदू देवी देवताओं की प्रतिमाएं बनी हुई हैं. इनमें भगवान नरसिंह की 1200 वर्ष पुरानी मूर्ति भी है. लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि आज लोग इन पत्थरों पर खड़े होकर अपनी सेल्फी खींचते हैं.

मुस्लिम शासकों की थी ऐसी चाल 

दिल्ली सल्तनत के मुस्लिम बादशाहों ने इसलिए इन प्रतिमाओं को पूरी तरह नष्ट नहीं किया क्योंकि वो चाहते थे कि भविष्य में इन मूर्तियों का इसी तरह अपमान होता रहे और भारत के लोग अपनी गुलामी को हमेशा याद रखें और आज ऐसा ही हो रहा है. 

कौन था इल्तुत-मिश?

जब आप कुतुब मीनार परिसर के अंदर प्रवेश करते हैं तो इसके प्रवेश द्वार पर प्राचीन हिंदू मंदिरों के अवशेष रखे हुए हैं, जिन्हें Archaeological Survey of India ने ऐतिहासिक मानते हुए इन पर कुछ नंबर भी लिखे हैं. लेकिन इस समय इन पत्थरों का इस्तेमाल जूते और दूसरा सामान रखने के लिए किया जा रहा है, जबकि ये पत्थर खंडित मंदिरों के अवशेष हैं. इस परिसर में दिल्ली सल्तनत के बादशाह इल्तुत-मिश का भी मकबरा है, जहां लोग फातिहा पढ़ने आते हैं और इल्तुत-मिश को याद करते हैं. लेकिन सच ये है कि इल्तुत-मिश हिन्दुओं से काफी नफरत करता था. 1210 में कुतुबद्दीन ऐबक की मौत के बाद उसने कुतुब मीनार की तीन और मंजिलों का निर्माण कराया था और फिर वर्ष 1232 में उसने उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर पर हमला किया था.

हिंदुओं को गुलामी याद दिलाने के लिए उठाया था ये कदम

इल्तुत-मिश के दरबारी इतिहासकार, मिन्हाज-उस-सिराज ने अपनी पुस्तक, तबकात-ए-नासिरी में लिखा है कि, उज्जैन में मन्दिर पर हमले के बाद इल्तुतमिश वहां से कुछ मूर्तियों को अपने साथ दिल्ली ले आया था और उसने इन मूर्तियों को कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के बाहर फेंक दिया था, ताकि यहां आने वाले लोग इन मूर्तियों को लात मार कर उनका अपमान कर सकें और हिन्दुओं का याद रहे कि वो दिल्ली सल्तनत के गुलाम हैं.

किसी भी देश का वर्तमान और भविष्य कुछ Turning Points के आधार पर तय होता है. ये Turning Points ऐसे फैसले होते हैं, जिनसे आने वाली पीढ़ियों का भविष्य हमेशा के लिए बदल जाता है. 12वीं शताब्दी में ऐसा ही हुआ था. उस दौर में मंदिरों को तोड़ने की जो परम्परा शुरू हुई थी, वो फिर कभी नहीं रुकी. दिल्ली सल्तनत के बाद मुगलों ने भी मंदिरों पर हमले जारी रखे और आज भारत में 1800 से ज्यादा जगह ऐसी हैं, जहां बड़ी-बड़ी मस्जिदों के नीचे मंदिरों के दमन की कहानियां दबी हुई हैं. 

उस दौर के इतिहासकारों ने पेश किया ऐसा नजरिया

12वीं शताब्दी से 20वीं शताब्दी तक भारत ने गुलामी के कई दौर देखे. इस दौरान भारत के इतिहास को भी उसी नजरिए से पेश किया गया, जो नजरिया भारत पर शासन करने वाले शक्तिशाली मुस्लिम शासकों और अंग्रेजों का था. इस दौरान भारत में हजारों मन्दिर तोड़े गए, हिन्दुओं पर अत्याचार हुए और उन्हें जबरन इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया गया. इस सबकी शुरुआत 12वीं शताब्दी में उस समय हुई, जब भारत सोने की चिड़िया हुआ करता था. आज से लगभग एक हजार साल पहले, पूरी दुनिया की GDP में भारत की हिस्सेदारी 32 प्रतिशत के आसपास थी. जबकि ग्लोबल GDP में पश्चिमी यूरोप के देशों की हिस्सेदारी सिर्फ 14 प्रतिशत थी और 25 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ चीन दूसरे स्थान पर था.

उस समय कपास और इससे बनने वाले कपड़ों का सबसे ज्यादा उत्पादन भारत में होता था. भारत के मसालों की मांग पूरी दुनिया में थी. सोना, चांदी, तांबा और कीमती पत्थर, भारत कई देशों को निर्यात करता था. हमारे देश की चीनी, कई देशों में भेजी जाती थी. जबकि चावल, चंदन, केसर और भारत में बने कालीन और शॉल दुनियाभर में प्रसिद्ध थे और इनकी मांग इतनी होती थी कि कई देश, लाइन लगा कर खड़े होते थे. लेकिन जब 12वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई तो इस दौरान भारत के बड़े-बड़े शहरों और उद्योगों को नुकसान पहुंचाया गया. इनकी लूट शुरू हो गई. और 14वीं शताब्दी तक दुनिया की GDP में भारत की हिस्सेदारी 32 प्रतिशत से घट कर 25 प्रतिशत रह गई थी.

इसके बाद 15वीं शताब्दी में जब मुगल भारत आए, तब भी हमारे देश को जमकर लूटा गया. यानी मुस्लिम शासकों ने भारत को अपना गुलाम इसलिए बनाया क्योंकि हमारा देश उस जमाने में काफी समृद्ध था. मुस्लिम शासक भारत को लूटना चाहते थे. लेकिन जब उन्होंने ये देखा कि इस देश के पास धन दौलत के अलावा एक लम्बी सांस्कृतिक विरासत है और इस देश में मन्दिर सबसे बड़ी आस्था का केन्द्र हैं तो मुस्लिम बादशाहों ने इन मंदिरों को निशाना बनाना शुरू कर दिया और इनकी जगह मस्जिदों का निर्माण किया गया.

जब विश्वगुरू कहा जाता था भारत

यानी भारत के पास कभी बहुत बड़ी बौद्धिक संपदा और ज्ञान का भंडार हुआ करता था और इसीलिए भारत को विश्वगुरू कहा जाता था लेकिन फिर एक लंबा दौर ऐसा आया, जब हमारे देश पर पहले बाहर से आए मुसलमान आक्रमणकारियों और फिर अंग्रेजों ने शासन किया .

क्या आप जानते हैं ये सच?

लेकिन भारत ने शायद लंबे वक्त इस गुलामी की चिंता नहीं की और नतीजा ये हुआ कि विदेशों ने भारत को लूट-लूटकर एक गरीब देश बना दिया और इस देश के इतिहास की रूपरेखा भी बदल दी. यही वजह है कि आज आप ये तो जानते हैं कि कुतुब मीनार का निर्माण, कुतुबुद्दीन ऐबक ने करवाया था, लेकिन आप ये नहीं जानते कि इस मीनार के नीचे कई मंदिरों के अवशेष दबे हुए हैं. जिन्हें हिन्दुओं से नफरत की वजह से तोड़ा गया था.

VIDEO

Trending news