DNA with Sudhir Chaudhary: क्या आप जानते हैं राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू की ये कहानी? कलेजा मुंह को आ जाएगा पढ़कर
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DNA with Sudhir Chaudhary: क्या आप जानते हैं राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू की ये कहानी? कलेजा मुंह को आ जाएगा पढ़कर

DNA on Draupadi Murmu Bio Profile: राष्ट्रपति पद (Presidential Election 2022) की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) की कहानी दुखों और साहस से भरी हुई है. आप उनके अतीत के बारे में जानकर भावुक हो जाएंगे.

DNA with Sudhir Chaudhary: क्या आप जानते हैं राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू की ये कहानी? कलेजा मुंह को आ जाएगा पढ़कर

DNA on Draupadi Murmu Bio Profile: आज हम आपको राष्ट्रपति पद (Presidential Election 2022) की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) की वो अनसुनी कहानी बताते हैं, जिसे सुन कर आज देश की हर महिला भावुक भी होगी और उत्साहित भी होगी. असल में उनकी ये कहानी उस व्यक्ति को शक्ति देगी, जो किसी बड़े खानदान या घराने में पैदा नहीं हुआ. जो एक आम नागरिक की तरह दिन रात मेहनत करके अपने परिवार का पेट पालता है. भारत के लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबसूरती यही है कि ओडिशा के मयूरभंज में छोटे से मकान में रहने वाली द्रौपदी मुर्मू अब सैकड़ों एकड़ के राष्ट्रपति भवन में रहेंगी.

मयूरभंज के साधारण घर में रहती हैं द्रौपदी मुर्मू

64 साल की द्रौपदी मुर्मू  (Draupadi Murmu)अभी ओडिशा के मयूरभंज जिले के एक साधारण से घर में रहती हैं. दो मंजिल के इस घर में सिर्फ 6 कमरे हैं. ये घर किसी VVIP इलाके में नहीं है. बल्कि ये घर एक साधारण से रिहायशी इलाक़े में हैं. जहां ज्यादातर मध्यम वर्गीय परिवार रहते हैं. लेकिन अब द्रौपदी मुर्मू इस छोटे से घर से निकल कर दिल्ली में स्थित राष्ट्रपति भवन (Presidential Election 2022) में रहेंगी, जो 330 एकड़ के क्षेत्र में फैला है, जहां कुल 340 कमरे हैं. जिसका Garden Area ही सिर्फ़ 190 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है और जहां कुल 750 कर्मचारी काम करते हैं.

द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले में हुआ था. दिलचस्प बात ये है कि अगर वो राष्ट्रपति का चुनाव जीत जाती हैं तो वो देश की पहली ऐसी राष्ट्रपति बन जाएंगी. जिनका जन्म आजादी के बाद हुआ. इससे पहले नरेन्द्र मोदी वर्ष 2014 में देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री बने थे, जिनका जन्म आजादी के बाद हुआ था. यानी द्रोपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत के दो सबसे बड़े संवैधानिक पदों पर ऐसे नेता बैठे होंगे, जिनका जन्म आजाद भारत में हुआ है और ये एक बहुत बड़ा परिवर्तन है.

निजी जीवन में बार-बार झेलना पड़ा नुकसान

द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) ने अपने राजनीतिक जीवन में कई सफलताएं हासिल की. लेकिन निजी जीवन में समय ने उनका बार-बार इम्तिहान लिया. एक वक्त ऐसा आया, जब द्रोपदी मुर्मू डिप्रेशन में चली गई थीं. ये बात वर्ष 2009 की है, जब सिर्फ 25 साल की उम्र में उनके एक बेटे की असमय मौत हो गई थी. अपने बेटे की मृत्यु से द्रोपदी मुर्मू को इतना गहरा सदमा पहुंचा कि वो डिप्रेशन में चली गईं. इसके बाद उन्होंने खुद को हिम्मत देने के लिए अध्यात्म का रास्ता चुना और वे ब्रह्माकुमारी संस्था के साथ जुड़ गईं.

वो धीरे धीरे डिप्रेशन से बाहर आ ही रही थीं कि वर्ष 2013 में एक सड़क दुर्घटना मे उनके दूसरे बेटे की भी मृत्यु हो गई. यानी सिर्फ चार वर्षों में उन्होंने एक के बाद एक अपने दोनों बेटों को खो दिया. उनके निजी जीवन में आई ये त्रासदी यहीं नहीं रुकी. 2013 में उनके दूसरे बेटे की मृत्यु के कुछ दिन बाद उनकी मां और उनके भाई का भी देहांत हो गया. इस तरह एक महीने में द्रोपदी मुर्मू ने पहले अपने बेटे को खोया, फिर अपनी मां को खोया और फिर उनके भाई भी इस दुनिया को छोड़ कर चले गए. जब इन तमाम दुखों को पीछे छोड़ कर द्रोपदी मुर्मू अपने जीवन में आगे बढ़ने की कोशिश कर रही थीं, तभी उनके पति का भी देहांत हो गया. ये बात वर्ष 2014 की है.

दोनों बेटों और पति की मौत ने तोड़ दिया

पति की मृत्यु के बाद द्रोपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) के लिए सामान्य जीवन में लौटना मुश्किल था. लेकिन उन्होंने अध्यात्म के साथ योग करना शुरू किया और डिप्रेशन के खिलाफ तब तक लड़ाई लड़ी, जब तक उन्होंने इसे हरा नहीं दिया. इसके बाद वो वर्ष 2015 में झारखंड की पहली महिला राज्यपाल नियुक्त हुईं.

द्रोपदी मुर्मू की सबसे बड़ी खूबी ये है कि वो बहुत विनम्र स्वभाव की हैं और उन्हें ज़मीन से जुड़ा हुआ नेता माना जाता है. आज जब वो अपने गृह जिले में स्थित एक मन्दिर में पूजा अर्चना के लिए पहुंची तो इस दौरान उन्होंने वहां झाड़ू भी लगाई और वहां मौजूद पुजारियों और आम लोगों से भी बात की.

जिस तरह बहुत सारे लोग द्रोपदी मुर्मू के राष्ट्रपति उम्मीदवार बनने पर हैरानी जता रहे हैं, ठीक इसी तरह की हैरानी लोगों ने तब भी जताई थी, जब उनका राजनीति में प्रवेश हुआ था. असल में द्रोपदी मुर्मू ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वो राजनीति में आएंगी.

पहले कर चुकी हैं क्लर्क की नौकरी  

वर्ष 1979 में उन्होंने भुवनेश्वर के रमादेवी महिला कॉलेज से ग्रैएजुशन की पढ़ाई पूरी की थी. इसके बाद उनके करियर की पहली नौकरी एक Clerk की थी. हैरान मत होइए, द्रोपदी मुर्मी ने अपने करियर की शुरुआत ओडिशा सरकार के सिंचाई विभाग में बतौर Clerk की थी. हालांकि इसके बाद उन्होंने नौकरी बदली और वो अपने गृह जिले के एक कॉलेज में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर छात्रों को पढ़ाने लगीं. यानी वो पहले Clerk थीं. इसके बाद वो शिक्षक बन गईं. लेकिन उनके जीवन में सबसे बड़ा Turning Point तब आया, जब वो वर्ष 1997 में मयूरभंज से वॉर्ड पार्षद चुनी गईं. इसके बाद उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

वो ओडिशा से दो बार विधायक बनी. वर्ष 2000 से 2004 तक ओडिशा की सरकार में राज्यमंत्री भी रहीं. वर्ष 2015 में उन्हें झारखंड की राज्यपाल नियुक्त किया गया था. उस समय वो राष्ट्रपति भवन में रामनाथ कोविंद से भी मिली थी. शायद तब उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि जिस राष्ट्रपति भवन (Presidential Election 2022) में वो बतौर राज्यपाल राष्ट्रपति से मिलने के लिए गई हैं. एक दिन वही राष्ट्रपति भवन उनका नया घर होगा.

स्वभाव से विनम्री लेकिन कड़क हैं द्रौपदी

द्रोपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) को विनम्र स्वभाव की होने के साथ एक कड़क नेता भी माना जाता है. जो अक्सर अपने फैसलों को लेकर अडिग रहती हैं. वर्ष 2017 में जब झारखंड में बीजेपी की सरकार थी और रघुबर दास राज्य के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने CNT ऐक्ट और SPT ऐक्ट में कुछ संशोधन किए थे. ये कानून, आदिवासी समुदाय की ज़मीनों की सुरक्षा से जुड़े थे लेकिन तत्कालीन सरकार ने इनमें संशोधन किया और इन्हें उस समय विधान सभा से पास भी करा लिया. लेकिन जब ये कानून तत्कालीन राज्यपाल द्रोपदी मुर्मू के पास मंज़ूरी के लिए भेजे गए तो उन्होंने इस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया और इन्हें वापस लौटा दिया. द्रोपदी मुर्मू का कहना था कि ये कानून आदिवासी समुदाय के हित में नहीं है. उस समय रघुबर दास दिल्ली आए और उन्होंने इन कानूनों को पास करने के लिए काफी दबाव बनाया लेकिन द्रोपदी मुर्मू अपने फैसले से पीछे नहीं हटीं.

इसी तरह जब झारखंड की मौजूदा हेमंत सोरेन की सरकार ने 2019 में एक संशोधित कानून द्रोपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) के पास मंजूरी के लिए भेजा तो उन्होंने उसे भी न्यायसंगत नहीं माना था और इस कानून को वापस लौटा दिया था. यानी द्रोपदी मुर्मू एक ऐसी राज्यपाल थीं, जिन्होंने अपने विवेक से फैसले लिए. वो ना तो किसी के दबाव में आईं और ना ही सरकार की Rubber Stamp बनीं.

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