Sept 13 1948, Operation Polo: देश के बाहर दुश्मनों का सामना करने के लिए हमारी फौज काफी है, लेकिन परेशानी तब होती है जब दुश्मन अपने घर में बैठा हो. दीमक की तरह अपने देश को अंदर से खोखला कर रहा हो. ऐसे घर में बैठे छलावा करने वालों के लिए ही सरदार वल्लभ भाई पटेल 'काल' थे. 13 सितंबर 1948. ये वो तारीख है जब भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन पोलो' की शुरुआत की और रजाकारों को उनकी औकात दिखाई.
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Operation Polo in Hyderabad: 13 सितंबर 1948. ये वो तारीख है जब भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन पोलो' की शुरुआत की और रजाकारों को उनकी औकात दिखाई. मकसद था हैदराबाद का भारत में विलय. हैदराबाद ने अलग मुस्लिम देश के मंसूबे पाल रखे थे. वह पाकिस्तान की दिखाई राह पर चलना चाहता था. सरदार पटेल ने हैदराबाद के निजाम के मंसूबों को भांप लिया था. उन्होंने 13 सितंबर 'ऑपरेशन पोलो' पर मुहर लगा दी. महज पांच दिनों में हैदराबाद भारत का हिस्सा बन गया. इस ऐक्शन पर पाकिस्तान सिर्फ छटपटाता रह गया था. आइए जानते हैं कैसे हुआ हैदराबाद का भारत में विलय, क्या है 'ऑपरेशन पोलो' की कहानी.
हैदराबाद रियासत खुद का देश बनाना चाहता था
ऐसी नौबत आने के पीछे की कहानी आजादी के बाद से शुरू होती है. 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ. इस आजादी की मिट्टी ने बड़ी कीमत चुकाई. देश दो हिस्सों- भारत और पाकिस्तान में बंट गया. चुनौती यहीं खत्म नहीं हुई थी. उस समय 500 से ज्यादा रियासतें थीं जिन्हें एक करना किसी टेढ़ी खीर से कम नहीं था. कुछ रियासतें ऐसी भी थीं जो भारत या पाकिस्तान का हिस्सा बनने के बजाय अलग देश बनने का ख्वाब संजोने लगीं. उन्हीं में जूनागढ़, कश्मीर और हैदराबाद की रियासतें भी शामिल थीं. भारत की स्वतंत्रता के समय ब्रिटिश भारत स्वतंत्र राज्य और प्रांतों से मिलकर बना था, जिन्हें भारत, पाकिस्तान में शामिल होने या स्वतंत्र रहने के विकल्प दिए गए थे. जिन लोगों ने निर्णय लेने में काफी समय लगाया उनमें से एक हैदराबाद के निजाम भी थे.
उस्मान अली खान आसिफ हैदराबाद के निजाम
उस्मान अली खान आसिफ उन दिनों हैदराबाद के निजाम हुआ करते थे. यह सूबा बेहद संपन्न था. यहां ज्यादातर आबादी हिंदुओं की थी. लेकिन, शासक मुस्लिम थे. अंग्रेजों ने हैदराबाद को अलग स्टेट बने रहने की हवा भर रखी थी. ऐसे में तत्कालीन निजाम हवा हवाई बातें कर रहे थे. लेकिन, सरदार पटेल को एक-एक बात की जानकारी थी.
पटेल को मिली जिम्मेदारी
हालांकि, सरदार वल्लभ भाई पटेल पर जिम्मेदारी थी, देश को एकजुट करने की. उन्होंने 500 से अधिक रियासतों को एकजुट करना शुरू किया. अधिकतर रियासतें तो विलय के लिए राजी हो गई, लेकिन हैदराबाद में उन रियासतों में से एक थी, जिसने विलय से इनकार कर दिया. यहीं से होती है ऑपरेशन पोलो की शुरुआत. दरअसल, 11 सितंबर को पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की मौत हुई और उसके एक दिन बाद यानि 12 सितंबर को भारतीय सेना ने हैदराबाद में सैन्य अभियान शुरू किया.
रजाकारों के हाथों में थी सत्ता
सेना के लिए हैदराबाद को फतह करना इसलिए भी बड़ी चुनौती थी, क्योंकि सत्ता तो निजामों के पास थी लेकिन कमान रजाकारों के हाथों में थी. निजाम ने रजाकार सेना बनाई थी. मुस्लिम सैनिकों की ख्वाहिश हैदराबाद को अलग मुल्क बनाने की थी. निजाम के पास अपना तेज दिमाग और अंग्रेजों से दोस्ती के अलावा जो सबसे बड़ी ताकत थी, वो थे रजाकार.
अब आपके मन में सवाल ये होगा कि आखिर 'रजाकार' थे कौन?
रजाकार एक अरबी शब्द है, जिसका मतलब है 'स्वयंसेवक'. ये आम लोगों से बनी एक फोर्स थी, जिसके पास हथियार चलाने का थोड़ा-बहुत अनुभव होता था. उस समय हैदराबाद में 85 प्रतिशत आबादी हिंदू की थी, जबकि शेष मुस्लिम थे. लेकिन एक सोची समझी साजिश के तहत सभी ऊंचे पदों पर मुसलमानों का कब्जा था. यहां तक कि रियासत में ज्यादातर टैक्स हिंदुओं से ही वसूले जाते. बहुसंख्यकों पर लादे इन्हीं करों से शाही खजाना बढ़ता चला गया. हिंदुओं का आर्थिक तौर पर शोषण तो हो ही रहा था साथ ही उनको शारीरिक ज्यादतियों का भी शिकार होना पड़ा रहा था. निजाम की सरपरस्ती में रजाकार आपे से बाहर हो रहे थे. खुलेआम कत्लेआम मचा रखा था. जबरन धर्म परिवर्तन कराया जा रहा था. ये अत्याचार बढ़ता चला गया और एक दिन ऐसा आया जब हिंदुओं ने इसके खिलाफ आवाज उठाई.
13 सितंबर 1948 को भारतीय सेना 'ऑपरेशन पोलो'
13 सितंबर 1948 को भारतीय सेना 'ऑपरेशन पोलो' के तहत हैदराबाद में प्रवेश किया. भारतीय सेना और रजाकारों के बीच करीब पांच दिनों तक संघर्ष चला और फिर निजाम ने हथियार डाल दिए. हैदराबाद का भारत में विलय हो पाया. रिपोर्ट के मुताबिक, इस अभियान में 27 से 40 हजार जानें गई थी. हालांकि, जानकार ये आंकड़ा दो लाख से भी ज्यादा बताते हैं.
ऑपरेशन पोलो नाम के पीछे की कहानी
भारतीय सैना की कार्रवाई को ऑपरेशन पोलो नाम दिया गया था. ऐसा इसलिए था क्योंकि हैदराबाद में दुनिया में सबसे ज्यादा 17 पोलो के मैदान थे. भारतीय सेना के सामने निजाम की फौज ने 5 दिन में घुटने टेक दिए. 17 सितंबर की शाम को हैदराबाद की सेना ने सरेंडर कर दिया. इस तरह से 17 सितंबर 1948 को हैदराबाद का भारत में विलय हो गया. इनपुट आईएनएस से भी.