Supreme Court: 28 साल पहले किया था अप्लाई, अब होगी ज्‍वाइनिंग; रीजन जानकर रह जाएंगे हैरान
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Supreme Court: 28 साल पहले किया था अप्लाई, अब होगी ज्‍वाइनिंग; रीजन जानकर रह जाएंगे हैरान

Delhi News: दिल्ली में मनपसंद नौकरी और अपने हक की आवाज उठाने के लिए एक शख्स ने जिंदगी के 28 साल अदालतों के चक्कर काटने में बिता दिए, लेकिन हार नहीं मानी जिसका नतीजा ये हुआ कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने उसके मामले में दखल देते हुए उसे उसका जायज हक दिलवाया है. 

Supreme Court: 28 साल पहले किया था अप्लाई, अब होगी ज्‍वाइनिंग; रीजन जानकर रह जाएंगे हैरान

Postal Job Case Supreme Court: जहां चाह वहां राह. कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती. 'हिम्मते मर्दा... मदद ए खुदा'. ऐसी तमाम कहावतों को सच साबित करके दिखाया है अंकुर गुप्ता नाम के उस शख्स ने जिसने 1995 में डाक विभाग में डाक सहायक के पद के लिए आवेदन किया था मगर ज्वाइनिंग देने के बाद उन्हें अयोग्य ठहरा दिया गया. नौकरी के लिए अंकुर ने अपनी अयोग्यता के खिलाफ अदालतों के चक्कर काटे. उन्हें तारीख पर तारीख मिली लेकिन इंसाफ नहीं मिल रहा था. आखिर अंकुर की मेहनत रंग लाई और उसे उसका हक किस तरह मिला आइए जानते हैं.

कैट से लेकर इस तरह सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला

दरअसल अंकुर गुप्ता को ट्रेनिंग के लिए चुने जाने के बाद बाद में लिस्ट से इस आधार पर हटा दिया गया था क्योंकि उन्होंने 12वीं की पढ़ाई-लिखाई 'व्यावसायिक स्ट्रीम' से की थी. सपनों की नौकरी जाने से निराश अंकुर इस फैसले के खिलाफ कुछ अन्य असफल उम्मीदवारों के साथ केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) का रुख किया, जिसने 1999 में उनके पक्ष में अपना फैसला सुनाया. ऐसे में डाक विभाग ने न्यायाधिकरण के आदेश को चुनौती देते हुए 2000 में इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया. हाईकोर्ट ने 2017 में डाक विभाग की याचिका खारिज करते हुए कैट का आदेश बरकरार रखा. इसके बाद हाईकोर्ट में एक पुनर्विचार याचिका दायर की गई वो भी चार साल तक चली सुनवाई के बाद 2021 में खारिज कर दी गई. इसके बाद डाक विभाग ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. वहां से भी डाक विभाग को निराशा हाथ लगी.  

सर्वोच्च अदालत का 'सुप्रीम' फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने विभाग को 28 साल बाद अंकुर गुप्ता की नियुक्ति का आदेश देते हुए कहा है कि उन्हें पद के लिए अयोग्य ठहराने में गलती हुई थी. ऐसे में उन्हें उनका हक दिया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने कहा- ' इस मामले की बात करें तो शुरुआत में ही अभ्यर्थी की उम्मीदवारी को खारिज नहीं किया गया, उसे चयन प्रक्रिया में शामिल होने दिया गया. अभ्यर्थी का नाम वरीयता सूची में आया. इस तरह किसी उम्मीदवार को उसकी नियुक्ति का दावा करने का अपरिहार्य अधिकार नहीं है, लेकिन उसके पास निष्पक्ष और भेदभाव-रहित व्यवहार का सीमित अधिकार है. अंकुर गुप्ता से भेदभाव हुआ उन्हें मनमाने तरीके से उन्हें परिणाम के लाभ से वंचित रखा गया. ऐसे में उसकी नौकरी बहाल की जाती है.'

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