Friendship Day 2022: नरसिम्हा राव ने वाजपेयी को ना कही होती ये बात तो शायद देश नहीं बन पाता परमाणु संपन्न!
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Friendship Day 2022: नरसिम्हा राव ने वाजपेयी को ना कही होती ये बात तो शायद देश नहीं बन पाता परमाणु संपन्न!

friendship day 2022: देश की राजनीति में कई ऐसे नेता हुए हैं, जिन्होंने अलग-अलग राजनीतिक पार्टी और वैचारिक मतभेदों के बावजूद एक दूसरे के साथ दोस्ती निभाई. ऐसी ही एक दोस्ती पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी और पीवी नरसिम्हा राव के बीच भी थी. तो आइए जानते हैं कि उनकी दोस्ती के मशहूर किस्से....

Friendship Day 2022: नरसिम्हा राव ने वाजपेयी को ना कही होती ये बात तो शायद देश नहीं बन पाता परमाणु संपन्न!

नितिन गौतमः देश को नई दिशा देने वाले नेताओं का जब भी जिक्र किया जाएगा, तब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पीवी नरसिम्हा राव का नाम जरूर शामिल किया जाएगा. साल 1991 में जहां देश दिवालिया होने के कागार पर पहुंच गया था, वहां पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में ही देश में उदारीकरण की नीति लागू की गई, जिसने देश की अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाईयों पर पहुंचा दिया है. वहीं दूसरी तरफ अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में ही देश ने भारी दबाव के बावजूद परमाणु परीक्षण किया और देश परमाणु शक्ति संपन्न बना. अलग-अलग पार्टियों में होते हुए भी दोनों नेताओं के बीच गजब का तालमेल और दोस्ती थी. कई मौकों पर नरसिम्हा राव ने अपनी पार्टी के नेताओं के बजाय अटल बिहारी वाजपेयी पर भरोसा जताया और उन्हें अहम जिम्मेदारियां दीं. 

संयुक्त राष्ट्र में दी अहम जिम्मेदारी
साल 1994 में पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में कश्मीर में हो रहे कथित मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर प्रस्ताव रखा. मुस्लिम देशों के संगठन ओआईसी ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया. अगर यह प्रस्ताव पास हो जाता तो भारत को कड़े आर्थिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता. उस समय केंद्र में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी. मामले की गंभीरता को देखते हुए नरसिम्हा राव ने संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए खुद एक टीम बनाई. इस टीम में अटल बिहारी वाजपेयी को भी शामिल किया गया.  वाजपेयी उस समय विपक्ष के नेता थे लेकिन संकट के समय सभी राजनीतिक दलों ने एकजुटता का परिचय दिया. यहां नरसिम्हा राव और अटल बिहारी वाजपेयी के बीच की दोस्ती भी साफ दिखी कि किस तरह वैचारिक मतभेदों को दूर रखकर दोनों नेता साथ आए और देश सेवा की. 

दोनों के तालमेल से भारत बना परमाणु संपन्न राष्ट्र
ऐसा बताया जाता है कि साल 1995 में ही देश के वैज्ञानिकों ने परमाणु बम तैयार कर लिया था लेकिन अमेरिका और अन्य दबाव के चलते तत्कालीन पीएम नरसिम्हा राव परमाणु बम का परीक्षण नहीं कर सके थे. साल 1996 में आम चुनावों में हार के बाद पीवी नरसिम्हा राव ने तब अपने वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को अपने कार्यालय बुलाया था. वहां देश के अगले प्रधानमंत्री बनने जा रहे अटल बिहारी वाजपेयी भी मौजूद थे. एस.एम खान की किताब द पीपल्स प्रेसीडेंट के अनुसार, उस बैठक में नरसिम्हा राव ने भारत के परमाणु कार्यक्रम के बारे में अटल बिहारी वाजपेयी को जानकारी दी थी. 

इसके बाद जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने सदन में बहुमत पेश कर दिया और वह राष्ट्रपति भवन में पीएम पद की शपथ ले रहे थे. उसी दौरान नरसिम्हा राव ने वाजपेयी को चुपचाप एक नोट थमाया था. जिसमें उनके अधूरे काम को पूरा करने की बात लिखी गई थी. माना जाता है कि यह काम कुछ और नहीं परमाणु परीक्षण ही था. हालांकि सरकार गिरने के चलते अटल बिहारी वाजपेयी उस काम को पूरा नहीं कर पाए लेकिन जब 1998 में वह बहुमत के साथ सत्ता में लौटे तो उन्होंने परमाणु परीक्षण को अंजाम दिया. 

दोनों नेता एक दूसरे की कितनी इज्जत करते थे, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब नरसिम्हा राव के निधन के बाद अटल बिहारी वाजपेयी उन्हें श्रद्धांजलि देने गए थे तो उन्होंने कहा था कि परमाणु बम तो नरसिम्हा राव ही कर गए थे उन्होंने तो बस विस्फोट किया. 

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