31 अगस्त को विघ्नहर्ता भगवान गणेश घर-घर विराजित होंगे. 10 दिनों तक चलने वाला यह उत्सव गणेश चतुर्थी से शुरू होकर अनंत चतुर्दशी तक चलेगा.
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नई दिल्ली: 31 अगस्त को विघ्नहर्ता भगवान गणेश घर-घर विराजित होंगे. 10 दिनों तक चलने वाला यह उत्सव गणेश चतुर्थी से शुरू होकर अनंत चतुर्दशी तक चलेगा. देश के कोने-कोने में गणेश उत्सव की धूम रहेगी. इस दौरान श्री गणेश के भक्त उनकी प्रतिमा को पूरे हर्षोल्लास के साथ घर पर लाते हैं और स्थापित करते हैं. यही नहीं गली और मोहल्लों में भी भगवान गणेश की आकर्षित मूर्तियां स्थापित की जाती हैं. लेकिन मूर्ति स्थापित करने को लेकर आपको कुछ बातों का धयान रखना बहुत जरुरी है नहीं तो यह अशुभ माना जाता है और आपको धन हानि और कष्टों का सामना करना पड़ सकता है. यहां जानिए घर में सुख समृद्धि पाने के लिए गणपतिजी की मूर्ति को कहां और कैसे विराजित करें.
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इस दिशा में स्थापित करें गणेशजी की मूर्ति
वास्तु शास्त्र के अनुसार गणेश जी को विराजमान करने के लिए पूर्व दिशा और उत्तर पूर्व कोना शुभ माना गया है. ऐसा करने से मंगलदायक परिणाम की प्राप्ति होती है. लेकिन भूलकर भी इन्हें दक्षिण और दक्षिण पश्चिम कोण में नहीं रखें इससे हानि होती है. इसके अलावा भी आपको कुछ नियमों का पालन करना बहुत जरुरी है जैसे भगवान गणेश की प्रतिमा को साफ सुथरी जगह पर रखें. प्रतिमा के आसपास कूड़ा कचरा न हो और घर का टॉयलेट नहीं होना चाहिए. घर में भगवान गणेश का स्थान सीढि़यों के नीचे नहीं होना चाहिए क्योंकि दिन में हम कई बार सीढियों से आना-जाना करते हैं और प्रतिमा के उपर से जाना अशुभ माना जाता है. इस बात का खास ख्याल रखें कि घर में एक ही जगह पर गणेश जी की दो मूर्ति एक साथ नहीं रखें.वास्तु शास्त्र के अनुसार इससे उर्जा का आपस में टकराव होता है जो अशुभ फल देता है.
मूर्ति खरीदते समय रखें इन बातों का ध्यान
बाजार में आजकल तरह-तरह की आकर्षित मूर्तियां मिलती हैं. लेकिन वास्तु शास्त्र के अनुसार इसके भी कुछ नियम हैं जैसे गणेशजी की मूर्ति धातु, गोबर या फिर मिट्टी की हो तो ज्यादा लाभदायक होता है. आप इस बात का भरपूर ख्याल रखें कि प्लास्ट ऑफ पेरिस की मूर्ति ना खरीदें क्यों कि यह पर्यावरण के लिए भी हानिकारक है. गणेश जी मूर्ति में विराजित अवस्था में होने चाहिए. गणपति की सूंड बाईं तरफ मुड़ी होनी चाहिए. ध्यान रहे कि भगवान गणेश की पीठ दीवार की तरफ होनी चीहिए यानि आपको पीठ के दर्शन ना हो क्योंकि उनके पृष्ठ भाग पर दुख और दरिद्रता का वास माना गया है। यह सब छोटी-छोटी बातें हैं जिनका पालन नहीं किया गया तो इसका जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ सकता है.