azadi ki kahani : आज आजादी के 75 साल पूरा होने पर Zee Media ने बात की रतलाम के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राजमल चौरड़िया से जिन्होंने रतलाम में क्रांति की आग को सुलगाया और उसके बाद इंदौर जाकर कई आंदलनों का हिस्सा बने. पढ़िये चौरड़िया ने उस दौर की यातनाओं के बारे में क्या बताया...
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चन्द्रशेखर सोलंकी/रतलाम: आजादी की 75वीं वर्षगांठ को अमृत महोत्सव के रूप में बड़े उत्साह और गौरव के साथ मनाया जा रहा है. अस दिन के लिए हमारे देश के कई लोगों जंगें लड़ी है, तो कइयों ने जान कुरबान की है. कुछ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आज भी हमारे बीच हैं. इन्हें में से एक हैं रतलाम के राजमल चौरड़िया जिन्होंने अंग्रेजों से महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई यातनाएं सही. Zee Media स्वतंत्रता दिवस के मौके पर उनसे बात की और उस दोर की कहानी जानी.
104 साल स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राजमल चौरड़िया
रतलाम में 104 साल स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राजमल चौरड़िया चौमुखी पूल क्षेत्र में निवासरत हैं. उनका जन्म रतलाम में ही हुआ था, लेकिन होश संभालने की छोटी उम्र से ही आज़ादी के महायज्ञ के वह भी अपनी आहुति के लिए मन बना चुके थे. आज भी 104 वर्ष की उम्र में भी उनकी याददाश्त कमजोर नही हुई है. चेहरे पर झुर्रियों के बावजूद अंग्रेजी तानाशाही रवैये के लिए आज भी उनका गुस्सा झलकता है.
अंग्रेजों की यातनाएं झेलने के बाद मिली है आजादी
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राजमल चौरड़िया ने बताया कि आज आजाद भारत की उस तस्वीर को वो देख रहे हैं, जो उन्हें और उनके जैसे कई सेनानियों को अंग्रेजों की यातमाएं झेलने के बाद मिली है. चौरड़िया ने बताया कि अंग्रेजों के खिलाफ रतलाम में लड़ाई उन्होंने ही शुरू की थी. इसके बाद उन्होंने इंदौर में भी कई आंदोलनों में भाग लिया और अंग्रेजों के खिलाफ प्रदर्शन किया.
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रतलाम में जलाई थी क्रांति की आग
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राजमल चौरड़िया ने बताया कि रतलाम से ही उन्होंने आज़ादी की लड़ाई शुरू की थी. सबसे पहले उन्होंने रतलाम में विड्ढी कपड़ो और समान की होली जलाकरअंग्रेजों के खिलाफ बड़ा प्रदर्शन किया था. इसके बादो अंग्रेजी हुकूमत के निशाने पर आ गए. इससे बचने के लिए उन्हें रतलाम से इंदौर जाना पड़ा. हालांकि यहां भी उन्होंने क्रांति की मशाल जलाए रखी.
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इंदौर में दी गई महिलाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी
इंदौर में भी राजमल चौरड़िया ने अपनी क्रांति की मशाल जलाए रखी और साल 1942 में एक बार अंग्रजो से छुपकर चल रही आज़ादी की मीटिंग में वे शामिल हुए. यह मीटिंग अंग्रेजों से छुपकर गुप्त रूप से रखी गयी थी और इस मीटिंग में शामिल महिलाओं की सुरक्षा की जवाबदारी राजमल चौरड़िया को दी गई थी, लेकिन अंग्रेजो को जानकारी लग गयी और अंग्रेजो ने वहां सभी क्रांतिकारियों को लाठियों से पीटना शुरू कर दिया.
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सिर में चोट आई, हाथ टूटा फिर भी दे दिया अंग्रेजों को चकमा
राजमल चौरड़िया ने बताया कि उस दौरान उन्होंने अंग्रेजों की नजर से महिलाओं को सुरक्षित छुपाया था. जब अंग्रेजो को महिलाओं की जानकारी नहीं अंग्रजों ने उन्हें पीटना शुरी कर दिया. इस दौरान उनके सिर में चोट भी आई और एक हाथ भी फ्रैक्चर हो गया, लेकिन जुनून इतना था कि यहां भी उन्होंने अंग्रेजों को चकमा दे दिया और भागकर अस्पताल पहुंच गए.
आजादी के बाद वापस आए इंदौर
इंदौर की इस घटना के बाद राजमल चौरड़िया कई अलग-अलग जगहों पर रहकर आज़ादी की लड़ाई लड़ते रहे. देश आजाद होने के बाद वो काफी समय तक इंदौर में रहे उसके बाद 1982 में वापस रतलाम आ गए. आज स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राजमल चौरड़िया 104 साल के हो गए हैं. उन्हें अंग्रेजी दौर की यातनाएं उतनी ही याद हैं और आज भी उन घटनाओं को लेकर गुस्सा जिंदा है.