भिंड जिले में चंबल नदी बेकाबू हो गई है, जिस वजह 25 से अधिक गांव डूब गए है. पानी लगातार बढ़ रहा है, कई घरों में बाढ़ का पानी घुसा है. ऐसे में लोग अपनी गृहस्ती छतों पर रखने को मजबूर है.
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प्रदीप शर्मा/ भिंड: भिंड के अटेर में कई गांव बाढ़ से जूझ रहे है. इस बाढ़ से जूझते 25 गांवों में से एक गांव देवालय के लोग अब टापू बने इलाक़ों में फंसे हुए हैं. प्रशासन की अपील के बाद भी अपनी पूंजी,गल्ला ओर मवेशियों का मोह उन्हें गांव से बाहर नहीं निकलने दे रहा है.
खेतों में 30 से 40 फ़ीट बाढ़ का पानी
ये गांव ऊंचाई पर है लेकिन घरों में पानी घुस चुका है. लोग अपनी गृहस्ती समेट रहे हैं, आधे से ज़्यादा गांव में लोग अपना अनाज, फर्नीचर बिछौने और मवेशियों को बचाने में लगे हैं. खेती पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है और गांव का विकास दशकों पीछे चल गया है. देवालय गांव की हर छत पर बाढ़ से बचने का प्रयास कर रहे ग्रामीण और उनका सामान है. जिन गरीबों के घर पूरी तरह डूब गए है. वे ऊंचाई पर बने दूसरों के घरों में शरण ले रहे हैं.
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गांव के एक बुजुर्ग ने बताया कि पानी लगातार बढ़ रहा है, कई घरों में बाढ़ का पानी घुसा है. ऐसे में लोग अपनी गृहस्ती छतों पर रखने को मजबूर है. घर ख़ाली कर दिए हैं, लेकिन प्रशासन की मदद नहीं मिलने से एक दूसरे का सहारा बन रहे हैं. गांव में रहने वाले एक आर्मी से रेटायर सूबेदार राकेश ने बताया की उनका लाखों का नुक़सान हो रहा है. घर में लाखों रुपये का फ़र्नीचर लगवाया है. मेहनत से कमाया पैसा इस तरह डूबता नज़र आ रहा है. इससे आहत हैं और सरकार से मांग कर रहे हैं कि बाढ़ पीड़ितों को किसी ऊँचे स्थान पर इस बाढ़ प्रभावित क्षेत्र से दूर विस्थापित किया जाए या कोई ऊंची सड़क बनाई जाए. जिससे आवागमन में परेशानी ना हो, लोग अपना घरबार, मवेशियों को लेकर कहाँ जाएँ? फ़सलों का नुक़सान तो हो चुका, लेकिन सिर्फ़ मुआवज़े से कब तक पूर्ति होगी, सरकार को इस पर प्लानिंग करना चाहिए.
हर गांव के ये ही हालत
हालत सिर्फ़ देवालय नही बल्कि उन तमाम गांव के हैं, जो चम्बल नदी के किनारे बसे हुए हैं. वर्तमान हालात में चम्बल का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है, और सरकार खुद अभी और पानी बढ़ने की सम्भावना जाता रही है. ऐसे में समय रहते प्रशासन इन ग्रामीणों को समझा बुझा कर रेस्क्यू नहीं करती है तो कौन जाने आगे क्या परिणाम देखने को मिले. ग्रामीणों को अपना गांव और मवेशियों का मोह उन्हें गांव से बाहर आने नहीं दे रहा.
100 साल का टूटा रिकार्ड,
कुछ ग्रामीणों का कहना हैं कि उनके जीवनकाल और उनके बुजुर्गों के जीवन काल में भी चंबल इस प्रकार कभी नहीं चढ़ी है. बाढ़ तो पहले भी कई बार आई लेकिन इस प्रकार का जलजला उन्होंने पहली बार देखा है.