बस्तर के भविष्य का शुभ संकेत; नक्सल प्रभावित 5 गांवों ने शान से फहराया तिरंगा
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बस्तर के भविष्य का शुभ संकेत; नक्सल प्रभावित 5 गांवों ने शान से फहराया तिरंगा

बस्तर के बीहड़ों में नक्सलियों की गहरी पैठ वाले 5 गांवों में ग्रामीणों ने नक्सलियों की चुनौती के बीच उनकी नाक के नीचे देश का राष्ट्रीय ध्वज फहरा दिया है. 

बस्तर के भविष्य का शुभ संकेत; नक्सल प्रभावित 5 गांवों ने शान से फहराया तिरंगा

अविनाश प्रसाद/बस्तर:  देश की आज़ादी के 75वें वर्षगांठ पर बस्तर के नक्सल गढ़ से एक बेहद सकारात्मक खबर निकल कर आयी है. बस्तर के बीहड़ों में नक्सलियों की गहरी पैठ वाले 5 गांवों में ग्रामीणों ने नक्सलियों की चुनौती के बीच उनकी नाक के नीचे देश का राष्ट्रीय ध्वज फहरा दिया है. ग्रामीणों ने नक्सलियों के गढ़ में बाकायदा रैली भी निकाली, जिसमें नन्हे-मुन्ने बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक ने अपने हाथों में तिरंगा थामें भारत माता की जय के उद्घोष से नक्सल गढ़ को गुंजायमान बना दिया. ज़ी मीडिया की टीम उफनते नालों, गहरी घाटियों, पहाड़ियों को पार कर इस ऐतिहासिक पल की साक्षी बनी है. 

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छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर संभाग के जिले सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर और बस्तर के अंदरूनी इलाकों में 3 दशक ने नक्सलियों की गहरी पैठ रही है. देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था का बहिष्कार करने वाले नक्सली इन इलाकों में काले झंडे फहराते रहे हैं. बस्तर के दर्जनों ऐसे गांव है, जहां नक्सल भय के बीच तिरंगा फहराने की कल्पना करना भी मौत को दावत देने जैसा रहा है. देश की आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ पर मोदी सरकार की घर घर तिरंगा की अपील इन इलाकों में बड़ी चुनौती थी. लेकिन बस्तर के बीहड़ों में रहने वाले देशभक्त ग्रामीणों के ज़ज़्बे ने इसे संभव कर दिखाया है.

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सुकमा जिले के मीनपा, पोटकपल्ली, एलमागुंडा, के साथ-साथ दूसरे 3 गांव और बस्तर जिला के चांदामेटा ऐसे गांव हैं, जहां कई दशकों से तिरंगा नहीं फहराया जाता है. यहां नक्सली तिरंगे का बहिष्कार करते हैं और काले झंडे फहराते हैं. लेकिन इस बार इन गांवों के ग्रामीणों ने नक्सलियों को सीधी चुनौती देते हुए ना केवल उनके इलाके में तिरंगा रैली निकाली बल्कि तिरंगा फहराया भी है. 

 

इन्हीं में से बस्तर जिले के एक गांव चांदामेटा में नक्सली दो दशकों से काले झंडे लहराते रहे हैं. लेकिन इस बार ज़ी मीडिया की टीम जान जोखिम में डालकर इस गांव में मौजूद रही. चांदामेटा की दूरी जगदलपुर से 80 किलोमीटर है लेकिन पहुंच विहीन इलाका होने के कारण यहां तक पहुंच पाना बेहद दुर्गम है. मानसून के समय में बरसाती नालों और पहाड़ियों को पार कर ज़ी मीडिया की टीम बड़ी मुश्किल से चांदामेटा गांव तक पहुंची. पहले इस गांव के 6 ग्रामीण नक्सलियों के संगठन में शामिल थे. जो बीते कुछ वर्षों में एनकाउंटर में मारे गए है. इसी गांव के तीन युवक अभी नक्सल संगठन से जुड़े हुए हैं और वे गांव छोड़कर काफी पहले जा चुके हैं. इसी इलाके से लगे झीरम घाटी में 25 मई 2013 को नक्सलियों ने कांग्रेस के काफिले पर हमला कर वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं समेत 32 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. 

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नक्सल प्रभावित क्षेत्र में फहराया तिरंगा
पहुंच विहीन इलाका होने और नक्सल आतंकी वजह से इस इलाके का विकास कभी नहीं हो पाया. इस गांव में ना तो स्कूल है ,ना सड़क मार्ग है, ना स्वास्थ्य सुविधाएं और ना ही अन्य मूलभूत सुविधाएं. इस गांव में पुलिस ने हाल ही में एक कैम्प स्थापित करना शुरू किया है. लेकिन बीहड़ इलाका होने की वजह से यह कैंप स्थापित करना एक बड़ी चुनौती है. ग्रामीणों को जैसे ही जानकारी मिली कि अब इस इलाके में कैम्प की स्थापना की जा रही है. ग्रामीणों ने इस वर्ष अपने गांव में स्वतंत्रता दिवस समारोह मनाने और तिरंगा फहराने की इच्छा जताई. सुरक्षा बलों ने उन्हें सुरक्षा प्रदान करने का आश्वासन दिया. ग्रामीणों ने योजना तैयार कर ली. स्वतंत्रता दिवस की अलसुबह ग्रामीण दूर-दूर से पैदल चलकर पहाड़ी रास्ते को पार कर पुलिस के कैंप में पहुंचने लगे. सबसे पहले पुलिस के कैप में स्वतंत्रता दिवस का समारोह प्रारंभ किया गया. ग्रामीणों की मौजूदगी में यहां ध्वजारोहण किया गया. इसके बाद ग्रामीणों ने हाथों में तिरंगा लेकर रैली निकाली. इस रैली में नन्हे-मुन्ने बच्चों समेत युवक युवतियां और बुजुर्ग भी शामिल थे. भारत माता की जय, वंदे मातरम के नारों से नक्सलियों का गढ़ कहे जाने वाले चांदामेटा की पहाड़ियां गूंज उठी.

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गुलामी की जंजीरों को तोड़ा
इसके बाद ग्रामीण जंगल से एक लंबा बांस ले आए. सुरक्षा बलों के सहयोग से इस बांस में राष्ट्रीय ध्वज को स्थापित किया गया. गांव के एक बुजुर्ग और युवक युवती ने मिलकर सबसे पहले ध्वज के सम्मान में पूजा अर्चना की ,अगरबत्तियां जलाई, नारियल फोड़े और उसके बाद ससम्मान उन्होंने ध्वजारोहण किया. ग्रामीण मधु ने बताया कि नक्सली तिरंगे का बहिष्कार करते रहे हैं और उनके इलाके में लाल और काले झंडे लहराते रहे. लेकिन इस बार यह पहला अवसर है, जब यहां ग्रामीणों में तिरंगा फहराया है. अब वे ऐसा महसूस कर रहे हैं मानो गुलामी की जंजीरों को तोड़ कर वे अब एक स्वतंत्र जीवन जी रहे हैं.

बस्तर के उज्जवल भविष्य का संकेत
पुलिस के अधिकारियों ने बताया कि ये इलाका नक्सलियों का स्वतंत्र इलाका रहा है और इस इलाके में कैंप स्थापित कर पाना ग्रामीणों के लिए मूलभूत सुविधाएं मुहैया करवा पाना बेहद मुश्किल है. यह एक बेहद संवेदनशील क्षेत्र है और यहां पर ग्रामीणों के द्वारा ध्वजारोहण किया जाना एक बेहद शुभ संकेत है. चांदामेटा की पहाड़ियों में देश के ध्वज का लहराना बस्तर के उज्जवल भविष्य का शुभ संकेत दे रहा है. माओवादियों की हिंसात्मक विचारधारा से दूर बस्तर के ग्रामीण अब लोकतंत्र की उन्मुख हवा में सांस लेने को आतुर हैं.

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