India-China to disengage at LAC: ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान जिस अंदाज में पीएम मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग से मुलाकात की थी, उससे लग गया था कि दोनों के बीच दुश्मनी की खाई कम होने वाली है, तभी तो दोनों देशों ने पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर गश्त और सैनिकों को पीछे हटाने पर सहमति बन गई थी. आखिर चार साल बाद चीनी सैनिक अपने तंबू को उखाड़ने लगे हैं. जानें पूरा मामला.
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India-China disengagement: रूस के कजान में हुए ब्रिक्स सम्मेलन में शामिल जब पीएम मोदी जा रहे थे तभी भारत ने सोमवार को 'सैनिकों की गश्त' को लेकर समझौता होने की घोषणा कर दी थी. भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने बताया था कि 'इस समझौते से दोनों देशों के बीच सीमा पर साल 2020 से पहले की स्थिति बहाल होगी.' यानी कि साल 2020 में भारतीय सैनिक जिस हद तक गश्त कर रहे थे, अब फिर से वहीं तक गश्त कर सकेंगे.
सीमा पर तनाव खत्म?
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय और चीनी सैनिकों ने पूर्वी लद्दाख के देपसांग और डेमचोक में चरणों में सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया शुरू कर दी है, जबकि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को कहा कि समान और पारस्परिक सुरक्षा के सिद्धांतों पर कुछ क्षेत्रों में "ज़मीनी स्थिति" को बहाल करने के लिए "व्यापक सहमति" बन गई है.
उखाड़े जा रहे तंबू
एक सूत्र ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि मई 2020 के बाद दोनों टकराव स्थलों पर बनाए गए अस्थायी चौकियों और ढांचों को हटाने का काम शुरू हो गया है. बनाए गए सैनिकों की तरफ से तंबू उखाड़े जा रहे हैं. उन्होंने कहना है कि सैन्य टुकड़ियों को हटाने और पीछे हटने में लगभग एक सप्ताह का समय लगेग.
गश्ती पर भी बनी सहमति
दोनों देशों ने गश्ती पर भी सहमति बना ली है. गश्त शुरू होने से पहले स्थानीय कमांडर एक-दूसरे को बताएंगे फिर इसकी पुष्टि करेंगे. जिससे एलएसी पर गश्ती दल आमने-सामने आने से बचेंगे. भारत-चीन के बीच ‘गश्त व्यवस्था’ पर हुए नए समझौते के अनुसार, चीनी सैनिक अब रणनीतिक रूप से स्थित डेपसांग मैदानों में ‘बॉटलनेक’ क्षेत्र में भारतीय सैनिकों को नहीं रोकेंगे, जो भारत द्वारा अपने क्षेत्र माने जाने वाले क्षेत्र से लगभग 18 किलोमीटर अंदर है.
जानें चीन और भारत में क्या हुआ समझौता
सूत्रों के मुताबिक भारतीय सैनिक क्षेत्र में चीनी गश्ती दल को भी नहीं रोकेंगे. आमने-सामने टकराव से बचने के लिए दोनों सेनाएं एक-दूसरे को अपनी गश्त की तारीख और समय के बारे में पहले से सूचित करेंगी.
भारतीय पक्ष को उम्मीद है कि उसके सैनिक अब डेपसांग में अपने गश्ती बिंदु 10, 11, 11ए, 12 और 13 तक जा सकेंगे, जो उत्तर में महत्वपूर्ण दौलत बेग ओल्डी और काराकोरम दर्रे की ओर 16,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित महत्वपूर्ण टेबल-टॉप पठार पर है.
बफर जोन पर अभी नहीं बनी है बात
डेमचोक के पास चारडिंग निंगलुंग नाला जंक्शन पर भी सैनिकों की वापसी चल रही है, जहां पीएलए ने भारतीय क्षेत्र में टेंट लगाए हैं. नया समझौता देपसांग और डेमचोक तक सीमित है और इसमें पूर्वी लद्दाख में पहले बनाए गए ‘बफर जोन’ शामिल नहीं हैं. एलएसी के भारतीय हिस्से में 3 किमी से 10 किमी तक के नो पेट्रोल बफर जोन गलवान, पैंगोंग त्सो के उत्तरी तट, कैलाश रेंज और बड़े गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र में सैनिकों की वापसी के बाद बनाए गए थे, सूत्र ने कहा, बफर जोन पर गश्त के सवाल पर बाद में विचार किया जाएगा.
जानें कैसे भारत ने चीन को किया राजी?
जून 2020 में गलवान घाटी में हुई भीषण झड़प के बाद, दोनों एशियाई देशों के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए थे. भारत और चीन ने जिस तरह गश्त और पूर्वी लद्दाख में एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) पर सैनिकों को पीछे हटाने के लिए एक समझौता किया है जो चार साल से अधिक समय से जारी गतिरोध को समाप्त करने की दिशा में एक बड़ी सफलता है. आपको बता दें कि पिछले चार सालों में भारत-चीन सीमा मामलों पर डब्ल्यूएमसीसी की कुल 31 दौर की वार्ताएं और भारत-चीन कोर कमांडर स्तर की 21 दौर की बैठकें हो चुकी हैं.
दोनों देश हुए सहमत
पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति पांच साल बाद ब्रिक्स सम्मेलन में मिलते हैं. दोनों देश आपसी रिश्तों में मधुरता लाने की बात कहते हैं और लंबे समय से चल रहे भारत और चीन के बीच सीमा विवाद पर बनी सहमति पर एक मत होते हैं. इससे एक बात तो तय है कि भारत का एजेंडा बिल्कुल क्लियर था कि जब तक चीन पीछे नहीं हटेगा, भारत भी पीछे नहीं हटने वाला.