Morbi Bridge Collapse: मोरबी के सिविल अस्पताल का तो मानो कायाकल्प ही कर दिया गया. वो भी रातों-रात. ये सिस्टम की इच्छाशक्ति का कमाल है. अगर सिस्टम की ये इच्छाशक्ति पहले जाग गई होती तो शायद मोरबी में इतना बड़ा हादसा ना हुआ होता. इतने लोगों की जान ना गई होती .
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Gujarat Bridge Accident: सिस्टम अगर ठान ले तो ना सिर्फ नामुमकिन को मुमकिन कर सकता है बल्कि चमत्कार भी कर सकता है. सिस्टम ने ऐसा ही एक चमत्कार गुजरात के मोरबी में किया है, जहां सस्पेंशन पुल गिरने की घटना के दो दिन बाद पीएम मोदी का दौरा हुआ. जिसके लिए सिस्टम ने पूरी तैयारी की हुई थी. इसके बारे में हम आपको आगे बताएंगे, पहले आपको मोरबी हादसे पर पीएम मोदी की संवेदनशीलता की तस्वीरें दिखाते हैं.
शाम करीब चार बजे पीएम मोदी सबसे पहले हादसे वाली जगह पर गए और मच्छू नदी पर टूटे ब्रिज का जायज़ा लिया. उनके साथ गुजरात के गृह राज्यमंत्री हर्ष सांघवी रहे, जिनसे पीएम मोदी ने इस हादसे की जानकारी ली. पुल टूटने की वजह और रेस्क्यू ऑपरेशन की सिचुएशन के बारे में पूछा. पीएम मोदी काफी देर तक टूटे हुए पुल के एंट्री टॉवर पर खड़े होकर घटनास्थल का जायजा लेते रहे. पीएम मोदी के हाव-भाव बता रहे थे कि वो इस हादसे को लेकर कितने गंभीर हैं.
घायलों से मिले पीएम मोदी
इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मोरबी हादसे में घायल हुए लोगों से मुलाकात करने सिविल अस्पताल पहुंचे. वहां पीएम मोदी ने घायलों का हालचाल जाना. यहां छह घायल भर्ती हैं. पीएम मोदी ने उनके जल्द ठीक होकर घर जाने की कामना भी की. इस दौरान पीएम मोदी ने एक-एक घायल के बेड पर जाकर उनसे बात की.
इसके बाद पीएम मोदी एसपी दफ्तर पहुंचे, जहां उन्होंने इस हादसे में जान गंवाने वाले लोगों के परिवारवालों से मुलाकात की. अबतक इस हादसे में 135 शव बरामद हुए हैं. पीएम मोदी ने उन्हें न्याय का भरोसा दिलाया और हरसंभव मदद का आश्वासन दिया.
साथ ही पीएम मोदी ने एसपी दफ्तर में हाईलेवल मीटिंग भी की. इस मीटिंग में राज्य के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए. मीटिंग के दौरान पीएम मोदी ने निर्देश दिए कि अधिकारियों को प्रभावित परिवारों के संपर्क में रहना चाहिए और ये सुनिश्चित करना चाहिए कि इस दुखद घड़ी में उन्हें हर संभव मदद मिले.
ये बताता है कि प्रधानमंत्री मोदी मोरबी पुल हादसे से कितने आहत हैं, दुखी हैं. उनका घटनास्थल पर जाकर इस हादसे की सारी डिटेल्स बारीकी से समझना. अस्पताल जाकर घायलों से मिलना. मृतकों के परिवारजनों से मिलकर संवेदनाएं प्रकट करना और अधिकारियों को दोषियों के खिलाफ सख्त से सख्त एक्शन लेने के निर्देश देना और रेस्क्यू टीमों से मिलकर पूरे ऑपरेशन के बारे में जानकारी हासिल करना. पीएम मोदी को जब पुल गिरने की खबर मिली तो वो भावुक भी हो गये थे.
सिस्टम कमियां छिपाने में लगा था
तो एक तरफ पीएम मोदी थे जो मोरबी हादसे को लेकर अपना Concern जता रहे थे और दूसरी तरफ सिस्टम का पूरा Concern इस बात को लेकर था कि वो इस हादसे की असली वजह को पीएम मोदी की नजरों से कैसे छिपाए और इस हादसे के दोषियों को कैसे बचाए . पूरे सिस्टम ने मिलकर कैसे प्रधानमंत्री मोदी की आंखों में धूल झोंकी है. इस पर आधारित हमारी रिपोर्ट देखकर आपको अंदाजा होगा कि हमारे देश में सिस्टम आम लोगों की जान की परवाह नहीं करता और अपनी जान बचाने के लिए प्रधानमंत्री को भी धोखा दे सकता है.
पुल टूटने की घटना के करीब 46 घंटे बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जबतक मच्छू नदी पर टूटे ब्रिज का जायजा लेने पहुंचते तब तक तो सिस्टम ने पूरे घटनास्थल का मानो जीर्णोद्धार ही कर दिया था. प्रधानमंत्री के पहुंचने से पहले ही घटनास्थल पर लगा ओरेवा कंपनी का एक बोर्ड ढक दिया गया. ओरेवा वही कंपनी है जिसने इस मोरबी सस्पेंशन ब्रिज का रिनोवेशन किया था.
#DNA: PM ने वही देखा, जो सिस्टम ने दिखाया ?
#Gujarat @irohitr pic.twitter.com/HDy0Y5zUxA— Zee News (@ZeeNews) November 1, 2022
सिस्टम ने ढका सच
प्रधानमंत्री के ठीक ऊपर जो पर्दा लगा हुआ है, जिस पर लिखा गया था ओरेवा, अब उसे सफेद कपड़े से ढक दिया गया है. ओरेवा नाम को और पीएम मोदी पूरी जानकारी लेने के बाद सीएम और हर्ष संघवी के साथ मुआयना किया. अब सिस्टम की कर्मठता के एक और उदाहरण पर गौर कीजिए.
ब्रिज पर चढ़ने वाले लोहे के जिस टॉवर पर खड़े होकर पीएम मोदी ने हादसे की जानकारी ली. वो लोहे का टॉवर दूर से ही Shine मार रहा था.
यकीन करना मुश्किल हो रहा था कि पीएम मोदी जिस टॉवर पर खड़े थे, ये वही टावर है जो कल तक जगह जगह से टूटा हुआ था और जिस पर जंग की मोटी परत चढ़ी हुई थी. दूर से देखने पर लगता है कि पूरे टॉवर को ही पेंट कर दिया गया है.
ऐसा क्यों किया गया है, ये बताने की नहीं देखने की बात है. देख लीजिये. ये रेलिंग हादसे के वक्त जैसी थी. अगर वैसी ही दिख रही होती तो पीएम मोदी का मन इस पर हाथ रखने का बिलकुल नहीं करता. इससे लगता है कि जैसे यहां असली मेंटनेंस तो पुल गिरने के बाद हुई है.
ये जो काम किया गया, उसमें पुराने जो स्ट्रक्चर था. उसमें लकड़ा लगाया गया था, जिसपर लोग खड़े होते थे उसे रिप्लेस कर एल्युमिनियम किया गया जबकि जो केबल है, वो केबल रिप्लेस नहीं किया गया..कुछ केबल के हिस्से को कलर कर दिया गया. सिस्टम की कोशिश थी कि उसकी किसी कमी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नजर ना पड़ जाए इसलिए पूरा सिस्टम अपने ही रेस्क्यू मिशन में जुटा था.
नदी के दौरे के वक्त बदला दिखा सीन
नदी में रेस्क्यू ऑपरेशन सोमवार को ही लगभग पूरा हो चुका था. आज वहां पीएम मोदी के दौरे के वक्त सीन बदला हुआ था. हादसे के बाद एनडीआरएफ और बचाव दलों के गोताखोर और रेस्क्यू बोट्स नदी में दूर-दूर तक सर्च ऑपरेशन चला रहे थे. पीएम मोदी के दौरे के वक्त एनडीआरएफ और बचाव दलों की 20 से ज्यादा रेस्क्यू बोट्स नदी में कंधे से कंधा मिलाकर उतरी हुई थीं और प्रधानमंत्री की नजरों के ठीक सामने सर्च ऑपरेशन चला रहीं थीं.
ये महज तस्वीरें नहीं सिस्टम की कर्मठता का अद्वितीय उदाहरण है, जो अपनी जान बचाने के लिए रातों-रात घटनास्थल का रिनोवेशन कर देता है. लेकिन आम लोगों की जान की कोई कीमत नहीं समझता.
सिस्टम के इसी धोखे का शिकार बनकर सैकड़ों लोगों ने अपनी जान गंवा दी. लेकिन सिस्टम नहीं सुधरा और उसने पीएम मोदी की आंखों में भी धूल झोंकने में कोई कमी नहीं छोड़ी. हमारा सवाल है कि जो पुल टूटा, वो जैसा दिखता था वैसा ही पीएम मोदी को क्यों नहीं दिखाया गया.
सिस्टम ने झोंकी आंखों में धूल
ये सब जानकर आपको अंदाजा लग ही चुका होगा कि सिस्टम कितना शातिर हो सकता है, जो इतने बड़े हादसे के बाद भी अपनी जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं है. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की आंखों में धूल झोंकने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देता है और अभी तो आपने सिस्टम के धोखे की सिर्फ एक पिक्चर देखी है एक और पिक्चर तो अभी बाकी है.
मोरबी के सिविल अस्पताल में जहां पुल गिरने के बाद करीब सौ शव पहुंचे थे. सोमवार शाम तक अस्पताल में चीखें और मातम पसरा था और रात होते ही वहां रिनोवेशन शुरू हो गया. रंग-रोगन का काम होने लगा. रातों-रात बाहरी दीवारों को पेंट कर दिया गया. पुरानी और गंदी टाइलें उखाड़कर नई चमचमाती टाइलें लगाई गईं. पुराने वॉटर कूलर की जगह नया वॉटर कूलर लगा दिया गया. अस्पताल की छतों पर जमी सीलन की पपड़ियां उतार दी गई. देर रात सरकारी अस्पताल में झाड़ू लगते हुए भी देखी गई.
मोरबी के सिविल अस्पताल का तो मानो कायाकल्प ही कर दिया गया. वो भी रातों-रात. ये सिस्टम की इच्छाशक्ति का कमाल है. अगर सिस्टम की ये इच्छाशक्ति पहले जाग गई होती तो शायद मोरबी में इतना बड़ा हादसा ना हुआ होता. इतने लोगों की जान ना गई होती .
इस अस्पताल के अधिकारियों की इच्छाशक्ति भी नहीं जागती, अगर पीएम मोदी ने मोरबी हादसे के बाद इस अस्पताल में भर्ती घायलों से मिलने की इच्छा प्रकट नहीं की होती. प्रधानमंत्री मोदी के दौरे से पहले मोरबी के इस सिविल अस्पताल के जीर्णोंद्धार पर सवाल उठ रहे हैं. जो भी इन तस्वीरों को देखेगा तो यही कहेगा कि पीएम मोदी को अस्पताल की असलियत पता ना चले, इसके लिए सिस्टम ने ये पूरा प्रबंध किया है. भले ही अब ये अस्पताल एकदम चकाचक लग रहा हो, लेकिन इसमें सिस्टम की गंदी सोच झलकती है . सोचिए, अस्पताल के अंदर सैकड़ों लाशों का ढेर है...पूरा देश...मोरबी हादसे से गमज़दा है..उसी मोरबी के सिविल अस्पताल में आधी रात को रंगाई-पुताई का काम चल रहा है . आखिर ऐसी भी क्या इमरजेंसी थी.
विपक्ष ने चलाए तीर
सिस्टम की इस शातिर चाल ने विपक्षी दलों को राजनीति चमकाने का मौका दे दिया है. कांग्रेस ने अपने आधिकारिक हैंडल से हिन्दी में ट्वीट किया - कल PM मोदी मोरबी के सिविल अस्पताल जाएंगे... उससे पहले वहां रंगाई-पुताई का काम चल रहा है... चमचमाती टाइल्स लगाई जा रही हैं... PM मोदी की तस्वीर में कोई कमी न रहे, इसका सारा प्रबंध हो रहा है...
आम आदमी पार्टी ने भी अस्पताल के इस Instant जीर्णोद्धार की तस्वीरें ट्वीट की हैं और कहा है कि प्रधानमंत्री के फोटोशूट में कोई कमी न रह जाए, इसलिए अस्पताल की मरम्मत की जा रही है.AAP ने ट्वीट में लिखा कि अगर BJP ने 27 वर्ष में काम किया होता, तो आधी रात को अस्पताल को चमकाने की ज़रूरत न पड़ती..."
अधिकारियों को चमकानी थी इमेज
पीएम मोदी अस्पताल में घायलों से मिलने गए थे. क्या हो जाता अगर पीएम मोदी टूटे-फूटे और गंदे अस्पताल में घायलों से मिल लेते . लेकिन अधिकारियों को तो अपनी इमेज चमकानी थी. पीएम मोदी को दिखाना था कि वो कितना शानदार अस्पताल चला रहे हैं. पीएम मोदी की नजरों में नंबर बढ़ाने के लिए अस्पताल के अधिकारियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी. लेकिन अगर सिस्टम की नजरों में आम आदमी की भी इतनी अहमियत और इज्जत होती तो प्रधानमंत्री मोदी को मोरबी आकर घायलों से मिलने की जरूरत नहीं पड़ती.
आपने ये देखा या सुना होगा कोई बच्चा अपनी खराब रिपोर्ट कार्ड को घरवालों को दिखाने से बचने के लिए उसपर फर्जी हस्ताक्षर करके स्कूल में जमा कर देता है, जिससे घरवाले उसके खिलाफ गुस्सा नहीं करें या उसके साथ सख्ती नहीं बरते. लेकिन जब आपको पता चलता है कि बच्चे ने इतनी बड़ी जालसाजी की है तो आप गुस्सा होते हैं, सख्ती भी करते हैं . अब आप सोचिए इस देश का सिस्टम ऐसे ही सच को छिपाने पर उतर जाए तो क्या होगा.
पीएम मोदी को सच जानने का अधिकार
लेकिन आज ऐसा हुआ है. वो भी 135 लोगों की मौत का सच छिपाने का अपराध किया गया है. इस देश के सिस्टम की ताकत को देखिए, उसकी जुर्रत को समझिए और उसकी शर्मिंदगी को जानिए कि कैसे उसने उस सच को ही छिपा दिया जिसे देखने के लिए प्रधानमंत्री आज पहुंचे थे. प्रधानमंत्री जो इस देश के सिस्टम के शीर्ष पर हैं, उन्हें भी झूठ दिखाया गया यूं कहें सच पर परदा डाल दिया गया. ये सबकुछ रात के अंधेरे में नहीं, दिन के उजाले में हुआ, कैमरे के सामने हुआ. प्रधानमंत्री जिन्हें सच जानने का ना केवल अधिकार है बल्कि उनका कर्तव्य भी है . लेकिन आज उनके कर्तव्य पथ पर इस सिस्टम ने कांटे बिछा दिए. क्योंकि सिस्टम को पता है कि उसे कैसे बचना है, दशकों से यही तो हो रहा है. इसलिए सिस्टम की इतनी हिम्मत हो गई कि उसने प्रधानमंत्री को ही धोखा दे दिया . जी हां प्रधानमंत्री के साथ धोखा किया गया है लेकिन आज सिस्टम को हम बेनकाब करेंगे और वो सच दिखाएंगे जो इस पुल हादसे की वजह थी और जिसे छिपा दिया गया .
अभी तक आपने प्रधानमंत्री मोदी के घटनास्थल के दौरे की तस्वीरें देखी है. पुल पर पेंट कर दिया गया, सफेद कपड़े से लिपटी टेंपरेरी रेलिंग लगा दी गई और प्रधानमंत्री के सामने बिल्कुल साफ-सुथरी तस्वीर पेश की गई लेकिन ये सच नहीं था जैसे कल हमने आपको बताया था कि FIR में किसी कंपनी या व्यक्ति का नाम नहीं लिखकर इस घटना पर लीपापोती की कोशिश की गई, वैसा ही आज भी किया गया. सिस्टम ने बड़ी चालाकी से प्रधानमंत्री को धोखे में रखा लेकिन आज सच का सामने आना जरूरी है. DNA में हम हर सच को दिखाते हैं और यही हम आज भी करेंगे.
चालाकी से बदल दी पहचान
ये उस पुल की केबल की तस्वीर है जो रविवार शाम टूट गयी थीं. आपको एक दो नहीं कई तस्वीरें दिखाते हैं. इन तस्वीरों को देखिए ये उस मोरबी पुल के केबल की है जिसको 6 महीने की मरम्मत के बाद शुरू किया गया था. इन सभी तस्वीरों में आप देखिए केबल में ज़ंग लगी है, लेकिन सिस्टम इसे प्रधानमंत्री से छिपा गया...क्या सिस्टम ने इसपर कोई जवाब दिया, क्या सिस्टम ने प्रधानमंत्री को ये तस्वीरें दिखाई, क्या सिस्टम ने ये बताया कि 6 महीने की मरम्मत के बाद भी ज़ंग लगी केबल पर लोग निश्चिंत होकर घूमने आए थे, पैसे देकर इस ऐतिहासिक पुल पर घूम रहे थे. लोगों को तो पता ही नहीं था कि कंपनी और मोरबी में सिस्टम को ज़ंग लग चुकी है उसे आपकी जान की नहीं... कमाई की परवाह है . तो क्या आज ये सारी तस्वीरें प्रधानमंत्री को दिखाई गई . सिस्टम चालाक है इसलिए उसने बड़ी चालाकी से पुल की पहचान ही बदल दी...
एक तरफ वो ज़ंग लगी केबल है जिसको रंग दिया, जिससे ऐसा लगे कि वो नया है, दूसरी तरफ वो रेलिंग है जिसपर कपड़ा लपेट दिया जिससे प्रधानमंत्री को सच नहीं दिखे. सोचिए सिस्टम ने कैसे सच को बड़ी सफाई से छिपा दिया. सच तो ये है कि खुद को बचाने के लिए सिस्टम ने बहानेबाजी की पूरी डिक्शनरी खोल दी. बेशर्मी का वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया . इसलिए तो प्रधानमंत्री को जो सच देखना चाहिए था, जो सच बताया जाना चाहिए था उसे छिपा दिया गया . इन दोनों तस्वीरों में मोरबी पुल का पूरा सच दिख रहा है क्योंकि प्रधानमंत्री को अर्धसत्य दिखाया गया...शायद यहां अर्धसत्य कहना भी गलत होता, प्रधानमंत्री के सामने झूठ की पूरी दुकान सजा दी गई थी.
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